महात्मा ! तुमने आदमी को
प्यार, अहिंसा और सद्भावना देनी चाही
कैसी जुर्रत की तुमने गाँधी ?
कैसा था दुह्साहस ?
ऐसा ही दुह्साहस किया था यीशु
फिर यीशु से इतर तुम्हारी परिणति क्या होती?
यह अंत कितना अपूर्व है,
कितना मोहक?
क्या मौत इतनी मेहरबान होती है?
अगर ऐसी मौत मिलनी हो तो
मैं आज ही
आज ही नहीं अभी इसी क्षण मरना चाहूँगा।
मृत्यु इतनी श्लाघ्य !
मृत्यु इतनी वरेण्य !
ऐसी ही मृत्यु मुझे भी देना मेरे अंतर्यामी ।
प्यार, अहिंसा और सद्भावना देनी चाही
कैसी जुर्रत की तुमने गाँधी ?
कैसा था दुह्साहस ?
ऐसा ही दुह्साहस किया था यीशु
फिर यीशु से इतर तुम्हारी परिणति क्या होती?
यह अंत कितना अपूर्व है,
कितना मोहक?
क्या मौत इतनी मेहरबान होती है?
अगर ऐसी मौत मिलनी हो तो
मैं आज ही
आज ही नहीं अभी इसी क्षण मरना चाहूँगा।
मृत्यु इतनी श्लाघ्य !
मृत्यु इतनी वरेण्य !
ऐसी ही मृत्यु मुझे भी देना मेरे अंतर्यामी ।
जूझना मृत्यु से अधिक पीड़ादायक हो जाता है बहुधा..
जवाब देंहटाएंऐसी मृत्यु की चाह केवल वे कर सकते हैं जिन्होंने गांधी जी या पेड्रिस लुमुम्बा जैसा जीवन जिया हो।
जवाब देंहटाएंवाह रेखा जी वास्तव मे दुर्लभ कृति पढवा दी………आभार्………बापू की पुण्यतिथि पर विनम्र श्रद्धांजलि .
जवाब देंहटाएंबापू की पुण्यतिथि पर विनम्र श्रद्धांजलि .
जवाब देंहटाएंयह रचना पढवाने के लिए आभार ... बापू को नमन और विनम्र श्रद्धांजलि
जवाब देंहटाएंऐसी ही मृत्यु मुझे भी देना मेरे अंतर्यामी । ... इस एक पंक्ति में पूरी निष्ठा है
जवाब देंहटाएंयह रचना पढवाने के लिए आभार ... बापू को नमन और विनम्र श्रद्धांजलि
जवाब देंहटाएंगाँधी जी को नमन।
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ठ अभिव्यक्ति ... शत् शत् नमन
जवाब देंहटाएंkin shabdon men dhanyavad dun.
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