मैं नेट से जुड़ कर भी ब्लॉग से परिचित न थी . ऑरकुट पर ब्लॉग का विकल्प देखती और किसी किसी के प्रोफाइल में उसको देखती तो मेरी कुछ समझ नहीं आता था. फिर एक दिन कमांड के सहारे सहारे मैंने "hindigen " नाम से अपना ब्लॉग बना लिया . फिर वह कहीं खो गया. मैंने उसको खोजने की बहुत कोशिश की लेकिन मिला नहीं. और मैं भी उसको भूल गयी अपने काम में व्यस्त हो गयी. कई महीने बाद फिर सोचा कि चलो दूसरा ब्लॉग बना लें फिर देखें कि इसमें कैसे काम किया जाता है? दूसरा बनाने चली तो जैसे ही ईमेल ID डाला hindigen भी मिल गया. बस बना लिया था उसमें डाला कुछ भी नहीं.
इसी बीच अजय ने कहा कि मैं उसके चवन्नी चैप के लिए अपने युवाकाल के फिल्मी माहौल पर कुछ लिखूं. मैंने उसके लिए लिखा लेकिन मुझे उसको अजय तक पहुँचने में बहुत पापड़ बेलने पड़े खैर वह किसी तरह से पहुँच भी गयी और publish भी हो गयी. उसके बाद मैंने उसी को "hinidgen " पर सबसे पहले डाल दिया. अब मैंने अपनी कविताओं को इस पर डालना शुरू कर दिया. पर मैं यह नहीं जानती थी कि कैसे और लोगों के ब्लॉग पर जाऊं और कहाँ से उसके बारे में जानकारी मिलेगी. मुझे सिर्फ अपने काम में ही महारत हासिल थी शेष कुछ भी नहीं पता . मैं ऑरकुट पर ही व्यस्त रहती थी.
ब्लॉग से ही मेरा परिचय रचना सिंह से हुआ और मैंने "नारी" और "नारी की कविता " सबसे पहले ज्वाइन किया.
मैं आरम्भ से ही नारीवादी हूँ क्योकि मैंने इतने करीब से इतने सारे जीवन देखे हैं तभी तो उसके प्रति न्याय और अन्याय या प्रगति सभी के प्रति संवेदनशील रही. पहले भी मेरे लेखन का विषय यही था अब तो क्षेत्र विस्तृत हो चुका है. मैं अपनी नारी सम्बन्धी कविता सिर्फ "नारी की कविता" पर ही देती थी. ब्लॉग्गिंग की प्रारंभिक बातें मुझे रचना ने ही सिखाई थी.
इसके बाद मुझे मिली "रश्मि रवीजा" हम ब्लॉग के सहारे नहीं बल्कि और स्रोतों से मिले. वह बहुत अच्छी चित्रकार और अब ब्लॉगर भी है. जब हम मिले थे तब वह ब्लॉगर नहीं बनी थी. उसकी कहानियां रेडिओ पर प्रसारित होती थी. फिर उसने ब्लॉग बनाया और उसके ब्लॉग बनाने से उसका तो हुआ मेरा भी बहुत फायदा हुआ कि ब्लॉग के लिए कैसे कैसे रास्तों से गुजरते हुए हम सबके संपर्क में आ सकते हैं ये उसी ने सिखाया. कैसे ब्लोग्वानी और चिट्ठाजगत में अपनी पोस्ट को दिखाना है ये सारे गुर उसी ने सिखाये हैं. वह मेरी छोटी गुरु है. उसने मेरा परिचय वंदना दुबे अवस्थी से कराया और बात की तो पता चला की हम लोग रिश्तेदार हैं. चौंकिए मत कहाँ हम कायस्थ और कहाँ वह ब्राह्मण फिर रिश्तेदारी का क्या सवाल ? सवाल है - हमारी कस्बाई संस्कृति में रिश्तेदार सिर्फ रक्त सम्बन्धी ही नहीं होते बल्कि गाँव और पड़ोस के लोग भी रिश्तेदार होते हैं और हमारे कुछ ऐसे रिश्ते हैं कि हम रिश्तेदार ही हैं.
रश्मि के प्रयास से मेरा ब्लॉग जगत में दायरा और समर्पण कि अवधि कुछ बढ़ी. उसने कई लोगों से मेरा परिचय कराया. मुझे अपने काम के कारण समय काम ही मिल पाता है इसलिए लेखन के बाद और ब्लॉग पर जाना कम ही संभव हो पाता है लेकिन मैंने अपनी सखियों से अनुरोध किया है कि अच्छी अच्छी पोस्ट की लिंक मुझे भेज दिया करें ताकि पढ़ सकूं. इस कार्य के लिए मैं सबकी शुक्रगुजार हूँ कि मुझे लिंक भेज देती हैं. ब्लॉग्गिंग के कुछ गुर मैं संगीता स्वरूप, वंदना गुप्ता से भी सीखे क्योंकि मैं तो बिल्कुल अनाड़ी हूँ.
फिर तो मुझे और भी ब्लॉग के आमंत्रण मिले और मैं उनमें सम्मिलित हो गयी और अब तो इसमें मेरी सक्रियता बढ़ गयी है. ऑफिस में बैठ कर डग्गामारी कर लेती हूँ. जब सब लोग चाय पीने और लंच में अपना समय निकल रहे होते हैं तब मैं अपनी ब्लॉग्गिंग में लगी होती हूँ. अब तो ऑफिस आने के बाद सबसे पहले मेल चैक की और सबके कमेन्ट पढ़े और फिर अपना काम. समय निकल कर कमेन्ट का जबाव दे देती हूँ और कई बार तो सिस्टम ही हँग कर जाता है और कुछ भी नहीं हो पाता है.
मैंने अपने ५ ब्लॉग बना रखे हैं और इनकी सार्थकता मैंने अपने ही अनुसार बना रखी है.
१. यथार्थ : वह भोगा हुआ यथार्थ जिसे मैंने जिया है चाहे अपने रूप में या दूसरों के रूप में या फिर किसी और के दर्द के रूप में वही सत्य इसका विषय बनाता है.
http://kriwija.blogspot.com
२. मेरी सोच : किसी भी मुद्दे पर मेरी अपनी सोच या राय या विचार इस पर रखती हूँ. कहीं लगता है कि इसकी परिभाषा गलत हो रही है लेकिन नहीं.
http://rekha-srivastava.blogspot.com
३. मेरा सरोकार: समाज और देश के परिवेश से जुड़ी या घटित होने वाली घटनाओं का विवरण या फिर उससे मेरी सम्बद्धता को उजागर करने वाला मेरा ब्लॉग.
http://merasarokar.blogspot.com
४. "hindigen : मेरी कविताओं का ब्लॉग जिसपर सिर्फ कविताएँ ही रहती हैं.
http://hinidgen.blogspot.com
५. कथा सागर: इसको अलग क्यों बनाया? मैं जितने वर्षों से यहाँ हूँ, मेरी डायरी यहाँ रखी है जिसमें १९९५ से लेकर आगे तक के कथानक लिखे हुए हैं, यहीं बैठकर जिया और सुना और लिख कर हलके हो लिए लेकिन ये धरोहर अभी भी यही रखी है सो सोचा कि इसको अलग ही रखूँ जो कहानी के रूप में ढल रही है. सिर्फ कहानियों के लिए ही बनाया है इस ब्लॉग को.
http://katha-saagar.blogspot.com
बस अब जो भी हूँ, जैसी भी हूँ सारी कहानी आप लोगों के सामने खोल कर रख दी और सबसे ऐसे ही स्नेह की आकांक्षी हूँ.
(इति)
इसी बीच अजय ने कहा कि मैं उसके चवन्नी चैप के लिए अपने युवाकाल के फिल्मी माहौल पर कुछ लिखूं. मैंने उसके लिए लिखा लेकिन मुझे उसको अजय तक पहुँचने में बहुत पापड़ बेलने पड़े खैर वह किसी तरह से पहुँच भी गयी और publish भी हो गयी. उसके बाद मैंने उसी को "hinidgen " पर सबसे पहले डाल दिया. अब मैंने अपनी कविताओं को इस पर डालना शुरू कर दिया. पर मैं यह नहीं जानती थी कि कैसे और लोगों के ब्लॉग पर जाऊं और कहाँ से उसके बारे में जानकारी मिलेगी. मुझे सिर्फ अपने काम में ही महारत हासिल थी शेष कुछ भी नहीं पता . मैं ऑरकुट पर ही व्यस्त रहती थी.
ब्लॉग से ही मेरा परिचय रचना सिंह से हुआ और मैंने "नारी" और "नारी की कविता " सबसे पहले ज्वाइन किया.
मैं आरम्भ से ही नारीवादी हूँ क्योकि मैंने इतने करीब से इतने सारे जीवन देखे हैं तभी तो उसके प्रति न्याय और अन्याय या प्रगति सभी के प्रति संवेदनशील रही. पहले भी मेरे लेखन का विषय यही था अब तो क्षेत्र विस्तृत हो चुका है. मैं अपनी नारी सम्बन्धी कविता सिर्फ "नारी की कविता" पर ही देती थी. ब्लॉग्गिंग की प्रारंभिक बातें मुझे रचना ने ही सिखाई थी.
इसके बाद मुझे मिली "रश्मि रवीजा" हम ब्लॉग के सहारे नहीं बल्कि और स्रोतों से मिले. वह बहुत अच्छी चित्रकार और अब ब्लॉगर भी है. जब हम मिले थे तब वह ब्लॉगर नहीं बनी थी. उसकी कहानियां रेडिओ पर प्रसारित होती थी. फिर उसने ब्लॉग बनाया और उसके ब्लॉग बनाने से उसका तो हुआ मेरा भी बहुत फायदा हुआ कि ब्लॉग के लिए कैसे कैसे रास्तों से गुजरते हुए हम सबके संपर्क में आ सकते हैं ये उसी ने सिखाया. कैसे ब्लोग्वानी और चिट्ठाजगत में अपनी पोस्ट को दिखाना है ये सारे गुर उसी ने सिखाये हैं. वह मेरी छोटी गुरु है. उसने मेरा परिचय वंदना दुबे अवस्थी से कराया और बात की तो पता चला की हम लोग रिश्तेदार हैं. चौंकिए मत कहाँ हम कायस्थ और कहाँ वह ब्राह्मण फिर रिश्तेदारी का क्या सवाल ? सवाल है - हमारी कस्बाई संस्कृति में रिश्तेदार सिर्फ रक्त सम्बन्धी ही नहीं होते बल्कि गाँव और पड़ोस के लोग भी रिश्तेदार होते हैं और हमारे कुछ ऐसे रिश्ते हैं कि हम रिश्तेदार ही हैं.
रश्मि के प्रयास से मेरा ब्लॉग जगत में दायरा और समर्पण कि अवधि कुछ बढ़ी. उसने कई लोगों से मेरा परिचय कराया. मुझे अपने काम के कारण समय काम ही मिल पाता है इसलिए लेखन के बाद और ब्लॉग पर जाना कम ही संभव हो पाता है लेकिन मैंने अपनी सखियों से अनुरोध किया है कि अच्छी अच्छी पोस्ट की लिंक मुझे भेज दिया करें ताकि पढ़ सकूं. इस कार्य के लिए मैं सबकी शुक्रगुजार हूँ कि मुझे लिंक भेज देती हैं. ब्लॉग्गिंग के कुछ गुर मैं संगीता स्वरूप, वंदना गुप्ता से भी सीखे क्योंकि मैं तो बिल्कुल अनाड़ी हूँ.
फिर तो मुझे और भी ब्लॉग के आमंत्रण मिले और मैं उनमें सम्मिलित हो गयी और अब तो इसमें मेरी सक्रियता बढ़ गयी है. ऑफिस में बैठ कर डग्गामारी कर लेती हूँ. जब सब लोग चाय पीने और लंच में अपना समय निकल रहे होते हैं तब मैं अपनी ब्लॉग्गिंग में लगी होती हूँ. अब तो ऑफिस आने के बाद सबसे पहले मेल चैक की और सबके कमेन्ट पढ़े और फिर अपना काम. समय निकल कर कमेन्ट का जबाव दे देती हूँ और कई बार तो सिस्टम ही हँग कर जाता है और कुछ भी नहीं हो पाता है.
मैंने अपने ५ ब्लॉग बना रखे हैं और इनकी सार्थकता मैंने अपने ही अनुसार बना रखी है.
१. यथार्थ : वह भोगा हुआ यथार्थ जिसे मैंने जिया है चाहे अपने रूप में या दूसरों के रूप में या फिर किसी और के दर्द के रूप में वही सत्य इसका विषय बनाता है.
http://kriwija.blogspot.com
२. मेरी सोच : किसी भी मुद्दे पर मेरी अपनी सोच या राय या विचार इस पर रखती हूँ. कहीं लगता है कि इसकी परिभाषा गलत हो रही है लेकिन नहीं.
http://rekha-srivastava.blogspot.com
३. मेरा सरोकार: समाज और देश के परिवेश से जुड़ी या घटित होने वाली घटनाओं का विवरण या फिर उससे मेरी सम्बद्धता को उजागर करने वाला मेरा ब्लॉग.
http://merasarokar.blogspot.com
४. "hindigen : मेरी कविताओं का ब्लॉग जिसपर सिर्फ कविताएँ ही रहती हैं.
http://hinidgen.blogspot.com
५. कथा सागर: इसको अलग क्यों बनाया? मैं जितने वर्षों से यहाँ हूँ, मेरी डायरी यहाँ रखी है जिसमें १९९५ से लेकर आगे तक के कथानक लिखे हुए हैं, यहीं बैठकर जिया और सुना और लिख कर हलके हो लिए लेकिन ये धरोहर अभी भी यही रखी है सो सोचा कि इसको अलग ही रखूँ जो कहानी के रूप में ढल रही है. सिर्फ कहानियों के लिए ही बनाया है इस ब्लॉग को.
http://katha-saagar.blogspot.com
बस अब जो भी हूँ, जैसी भी हूँ सारी कहानी आप लोगों के सामने खोल कर रख दी और सबसे ऐसे ही स्नेह की आकांक्षी हूँ.
(इति)
nice
जवाब देंहटाएंशानदार रहा सफर और उसके साथी भी ..शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंThanks for remembering me .
जवाब देंहटाएंआपका सफर बहुत शानदार रहा....और मैंने क्या सिखाया?? मुझे पता ही नहीं हा हा हा ....सच कहूँ तो मैं तो अभी भी अनाड़ी हूँ इस ब्लोगिंग की दुनिया में....बस सबसे कुछ ना कुछ सीखने को मिल जाता है...ब्लॉग का रास्ता तो मुझे किसी और ने सुझाया था पर इस पर चलना शिखा ने सिखाया ...बस ऐसे ही कोई ना कोई सिखा ही देता है आगे बढ़ना....फिर भी आपने याद किया...शुक्रिया
जवाब देंहटाएंtabhi to aap khaas hain, apni hain
जवाब देंहटाएंरेखा जी ज्यादा डग्गामारी मत करिए , हा हा हा . मै अनुमान लगा सकता हूँ की एक साथ 4 -5 ब्लोगस पर लिखने के लिए कितना समय देना पड़ता होगा. आपका समय प्रबंधन प्रसंशनीय है आपके लेखन की तरह. बाकी आपकी छोटी गुरु की प्रेरणा की वजह से ही मुझे भी ब्लोगस पढने की लत (अच्छी वाली) लग गयी.
जवाब देंहटाएंआशीष ये छोटी गुरु है बहुत गुणी तभी तो सब को दिशा दिखाती रहती है. मुझे तो कुछ भी नहीं आता था सब इसी ने सिखाया है.सारे ब्लॉग पर एक साथ कहाँ आ पाती हूँ, हाँ विषय के अनुरुप सबमें डालती रहती हूँ. वैसे सच तो ये है की अब लगता है की नौकरी छोड़ कर बस अपना लेखन ही किया जाय. कितनी पुरानी डायरियां भरी पड़ी हैं सबको कैसे डाला जा सकता है. वर्तमान ही इतनाहो जाता है.
जवाब देंहटाएंरेखा दी, अब कहाँ जाकर छुप जाऊं? :)...आपने कुछ ज्यादा ही मान दे दिया...ब्लॉगजगत में तो आप पहले से सक्रिय थीं...और यहाँ तो सब एक दूसरे की मदद करते हैं और सीखते हुए आगे बढ़ते हैं.
जवाब देंहटाएंआप लिखती ही इतना अच्छा हैं क़ि सबलोग पढना पसंद करते हैं...बहुत ही प्रेरणादायक और रोचक रही ये संस्मरण यात्रा...हम भी आपके साथ साथ आपकी उन यादों की गलियों में घूमते रहें और आनंद उठाते रहें
@धन्यवाद रश्मि जी आपकी स्नेह छाया में ही रहना चाहती हूँ .
जवाब देंहटाएं@संगीता , इतनी जल्दी भूल गयी की क्या सिखाया है ? चलो हमें याद है .
@रश्मि , कुछ भी हो पहले होने से क्या होता है ? जो सिखाये वह गुरु तभी तो छोटी गुरु कहा है .
आप वास्तव में प्रशंशा की पात्र हैं क्यूँ की आप पांच पांच ब्लॉग एक साथ संभाल पा रही हैं...हमसे तो एक भी बड़ी मुश्किल से संभालता है...आपकी ऊर्जा प्रेरक है...
जवाब देंहटाएंनीरज
रेखाजी
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लगी आपकी यह यात्रा |इतने ब्लॉग आप बड़ी खूबसूरती से संभाल रही है |आपसे बहुत कुछ सीखना है |
मै तो सिर्फ ब्लॉग लिखना ,पोस्ट करना ,चित्र जोड़ना ही ही कर पाती हूँ |आपका लेखन निरंतर अबाध गति से चलता रहे और हम लभान्वित होते रहे |
शुभकामनाये
आपकी स्पष्ट सोच की तरह ही आपके ब्लॉग भी स्पष्ट विषय के साथ उपलब्ध हैं.....
जवाब देंहटाएंआपका लिखा अच्छा है...सरोकारों को पूरी तरह सार्थक करता हुआ....
जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड
रेखा जी, पाँच ब्लाग कैसे सम्भाल लेती हैं, द्रोपदी हो गयी आप तो। अरे हमसे तो एक नहीं सम्भलता। बधाई आपको।
जवाब देंहटाएंaapki is yatra me ab hum bhi hamrahi hain.
जवाब देंहटाएंशानदार रहा सफर और उसके साथी भी ..शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंham bhi guru ke talash me hain........ek to mil chuki hai.....:) .......
जवाब देंहटाएंwaise aapki yaatra achchhi lagi !!
वाह! क्या खूब सफ़र कराया आपने हम सब को. इतने दिनों तक आपके साथ हर गली-मोहल्ले घूमते रहे. इस कड़ी में तो मैं भी मौजूद हूं :) सच कहा. कस्बाई संस्कृति महानगरीय सभ्यता से बहुत अलग होती है. यहां आंटी छोड़, बाकी सब रिश्ते मिल जाते हैं, और खूब निभाते भी हैं.
जवाब देंहटाएंaअप के बारे में जानना अच्छा लगा
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