वैसे तो मेरा पड़ाव पहले नासिक ही रहा लेकिन मैंने सबसे पहले त्रयम्बकेश्वर से ही अपनी यात्रा आरम्भ करती हूँ. नासिक रोड स्टेशन से लगभग २८ किलोमीटर कि दूरी पर पहाड़ियों के बीच में स्थित है. यहाँ की प्राकृतिक सुन्दरता देखते ही बनती है.
इस स्थान का विहंगम दृश्य देख कर ही पता चलता है कि इसकी सुन्दरता तो अद्भुत ही है, साथ ही इसके लिए हिन्दू धर्म में जो आस्था जुड़ी है उसने इसको और अधिक महत्वपूर्ण बना दिया है. भारत भूमि पर स्थित १२ ज्योतिर्लिंगों में से एक यहाँ पर है. यहाँ पर दर्शन के लिए लाइन में लगे लोगों को देख कर ही वहाँ के लोग बता देते हैं कि अभी ४ घंटे की लाइन लगी है. यहाँ पर सिर्फ त्रयम्बकेश्वर का ही महत्व नहीं हैं बल्कि गोदावरी नदी और ब्रह्मगिरी पर्वत को भी उतना ही महत्वपूर्ण मना जाता है.
त्रयम्बकेश्वर मंदिर का निर्माण नासिक के समीप त्रयम्बक नामक स्थान पर श्रीमंत बालाजी बाजीराव उर्फ नानासाहिब पेशवा द्वारा १७५५ में आरम्भ किया गया था और १९८६ में इसका कार्य पूर्ण हुआ था. . उस समय इस मंदिर के निर्माण में १६ लाख मुद्रा और ३१ वर्ष का समय लगा था.
इसमें जो ३ लिंग स्थापित है , वे ब्रह्मा (सृष्टि के सृजक), विष्णु ( सृष्टि के पालक ) और महेश (सृष्टि के संहारक) के प्रतीक माने जाते हैं. शेष ज्योतिर्लिंगों में सिर्फ भगवान शिव के लिंग को ही देखा जा सकता है. ये लिंग प्राकृतिक हैं और गंगा का पवित्र जल शिवलिंग के ऊपर बहता है. ये लिंग जल के नीचे ही रहते हैं. पुजारी यहाँ पर दिन में तीन बार पूजा करते हैं और इसके लिए उनको १००० रुपये का प्रतिदिन का अनुदान प्राप्त होता है. प्रदोष काल में विशेष पूजा का प्रावधान है.
इस मंदिर कि वास्तु काला और प्राचीन स्थापत्य काल को देख कर सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि पत्थरों पर की गयी उत्कीर्णन का कार्य कितना उत्कृष्ट और अनुपम होता था. सदियों से खड़ा ये मंदिर आज भी अपनी कथा स्वयं कह रहा है .
मंदिर की स्थापत्य काला का नमूना यहीं देख सकते हैं .
त्रयम्बक में स्थित ये कुण्ड गोदावरी नदी के उद्गम से बना स्थल मान जाता है. गोदावरी नदी का उद्गम ब्रहाम्गिरी पर्वत से ही माना जाता है और इसको गंगा की तरह ही पवित्रतम नदी माना जाता है. रामायण युग में सीता के इस गोदावरी में स्नान के लिए विशेष प्रेम की कथाएं सुनने को मिलती हैं.
इस बारे में इतना अवश्य कहा जा सकता है कि अगर देर रात्रि नासिक से त्रयम्बक पहुंचना हो तो वहाँ के रास्ते इतने सुनसान हैं कि किसी भी दुर्घटना से इनकार नहीं किया जा सकता है. चारों ओर पहाड़ियों के बीच होने के कारण वहाँ पर जन जीवन भी बहुत अधिक नहीं है. वहाँ पर पूजा और धार्मिक संस्कारों से जुड़े कार्यों के लिए विशेष महत्व का स्थान माना जाता है.
त्रयम्बक की रोचक यात्रा करवाने के लिए शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंबहुत रोचक वर्णन....चलिए हम भी इस यात्रा में शामिल हो गए...और चित्रों ने तो बिलकुल दर्शन भी करा दिए....आभार
जवाब देंहटाएंअभी लेख तो नही पढा मगर आपको बताना चाहुँगी कि आज के हिन्दुस्तान मे आपके ब्लोग की चर्चा पढी तो बहुत अच्छा लगा।बहुत बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर यात्रा विवरण...हमारी भी यादें ताज़ा हो गयीं....सच मंदिर तक पहुँचने के उत्साह में पहाड़ी की चढ़ाई भी कुछ नहीं लगती...और हरीतिमा से आच्छादित मंदिर...बहुत ही रमणीक यात्रा है...और मंदिर का महात्म्य तो है ही..
जवाब देंहटाएंसुन्दर पोस्ट.
अरे आप तो हमारे पडौस की यात्रा कर आयीं...त्रयम्बकेश्वर हमारे घर से मात्र साढ़े चार घंटे की दूरी पर है...गोदावरी का उद्गम जो ऊपर पहाड़ों पर है तक जाने के लिए बहुत समय और ऊर्जा लगती है...दर्शन के लम्बी लाइन लगती है लेकिन वहां घूम रहे दलाल आपको पचास / सौ रुपये में जल्द दर्शन करवा देते हैं...वहां पर फैली गंदगी और भ्रष्टाचार चाहे श्रधालुओं को न दिखे लेकिन आम इंसान को देख कर बहुत दुःख होता है...
जवाब देंहटाएंनीरज
atisundar.
जवाब देंहटाएंआपके साथ यह यात्रा बहुत सुखद रही ..चित्रों के साथ वर्णन मनमोहक है.बहुत ही सुन्दर पोस्ट
जवाब देंहटाएंcचलो आपकी पोस्ट के साथ हम ने भी त्रयम्बक की रोचक यात्रा कर ली तस्वीरें मनभावन हैं धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंब्रह्मा , विष्नू महेश के दर्शन का आनंद ... त्रम्ब्केश्वर ज्योतिर्लिंग के महत्व और यात्रा व्रतांत को बाखूबी पेश किया है आपने ... सुंदर चित्रों से सजी पोस्ट ...
जवाब देंहटाएंत्रयम्बकेश्वर पिछली भारत यात्रा के दौरान गये थे...दर्शन करने.
जवाब देंहटाएंyaatra achhi rahi
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर वर्णन और ज्ञानवर्धक जानकारी ! कुछ साल पहले मुझे भी त्रयम्बकेश्वर जाने का अवसर मिला था और वो सब दृश्य आपको पढ़ कर और सुन्दर चित्रों ने फिर से तरो ताज्जा कर दिए !
जवाब देंहटाएंसुन्दर वर्णन :):) यूँ ही लिखते रहें :)
सुन्दर वर्णन...धार्मिक यात्रा का जूनून ही अलग होता होगा...
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