सबसे पहले मैं ये बता दूं कि ये मेरा क्षेत्र बिल्कुल भी नहीं है लेकिन जब घर के सदस्य इससे जुड़े होते हैं तो कलम उसमें दखल जरूर देने लगती है. उसके ज्ञान को लेकर इस कलम से आप सब तक तो मैं पहुंचा ही सकती हूँ. जो बच्चे या रोगी आज के जीवन में समस्या बने हुए हैं और परिवार परेशान है और इस विषय में उनको अधिक जानकारी नहीं है, वे अपने बच्चों को डॉक्टर के पास लेकर दौड़ते रहते हैं और डॉक्टर कई बार अपने स्वार्थ के लिए गलत दिशा दिखा कर पैसे ऐंठते रहते हैं.
सबसे पहले मैं इस चिकित्सा पद्धति के बारे में परिचय दूं उसके बाद उससे सम्बंधित जानकारी देती रहूंगी. व्यावसायिक चिकित्सा की यह शाखा जो मानसिक विकलांगता या शारीरिक विकलांग से जुड़ी है और ऐसे लोगों के पुनर्वास के सतत प्रयत्न करते हैं कि वे अपने जीवन में आने वाली परेशानियों से मुक्त हो सकें या फिर कम से कम अपने कार्यों के लिए किसी पर निर्भर तो न ही रहें. इस को औक्यूपेशनल थेरपी के नाम से जाना जाता है. इससे सम्बद्ध डॉक्टर इन विकलांग लोगों को उनकी बीमारी के अनुरुप दैनिक जीवन में अपने कार्य हेतु सक्षम बनाने , उन्हें आत्मनिर्भरता की ओर ले जाने की दिशा में कार्य करते हैं. इसके लिए उनको वैकल्पिक या कृत्रिम साधनों का विकास करना ताकि वे अपने जीवन में दूसरों पर आश्रित होने से बचें. इस में जन्मजात विकलांगता या दुर्घटना से आई विकलांगता के शिकार लोगों के लिए सकारात्मक बदलाव लाने के लिए चिकित्सा देते हैं. आम तौर पर इनकी शिक्षा में न्युरोलौजी, एनौटामी , मेडिसिन, सर्जरी , आर्थोपीदिक्स और साइकोलॉजी शामिल होती है और इसके पूर्ण अध्ययन के साथ व्यावहारिक ज्ञान (internship ) के बाद ही चिकित्सा के लिए अनुमति दी जाती है. आमतौर ये आर्थोपीडिक , न्यूरोलौजिकल और साइकोलॉजिकल समस्याओं से ग्रस्त लोगों के इलाज से जुड़े होते हैं. इस तरह के रोगों से ग्रस्त व्यक्ति का सामान्य डॉक्टर के पास इलाज नहीं होता है. इस दिशा में जुड़े लोगों की समाज सेवा और रोगियों के प्रति पूर्ण सहानुभूति ही उनकी सफलता का द्योतक होता है.
(क्रमशः)
सबसे पहले मैं इस चिकित्सा पद्धति के बारे में परिचय दूं उसके बाद उससे सम्बंधित जानकारी देती रहूंगी. व्यावसायिक चिकित्सा की यह शाखा जो मानसिक विकलांगता या शारीरिक विकलांग से जुड़ी है और ऐसे लोगों के पुनर्वास के सतत प्रयत्न करते हैं कि वे अपने जीवन में आने वाली परेशानियों से मुक्त हो सकें या फिर कम से कम अपने कार्यों के लिए किसी पर निर्भर तो न ही रहें. इस को औक्यूपेशनल थेरपी के नाम से जाना जाता है. इससे सम्बद्ध डॉक्टर इन विकलांग लोगों को उनकी बीमारी के अनुरुप दैनिक जीवन में अपने कार्य हेतु सक्षम बनाने , उन्हें आत्मनिर्भरता की ओर ले जाने की दिशा में कार्य करते हैं. इसके लिए उनको वैकल्पिक या कृत्रिम साधनों का विकास करना ताकि वे अपने जीवन में दूसरों पर आश्रित होने से बचें. इस में जन्मजात विकलांगता या दुर्घटना से आई विकलांगता के शिकार लोगों के लिए सकारात्मक बदलाव लाने के लिए चिकित्सा देते हैं. आम तौर पर इनकी शिक्षा में न्युरोलौजी, एनौटामी , मेडिसिन, सर्जरी , आर्थोपीदिक्स और साइकोलॉजी शामिल होती है और इसके पूर्ण अध्ययन के साथ व्यावहारिक ज्ञान (internship ) के बाद ही चिकित्सा के लिए अनुमति दी जाती है. आमतौर ये आर्थोपीडिक , न्यूरोलौजिकल और साइकोलॉजिकल समस्याओं से ग्रस्त लोगों के इलाज से जुड़े होते हैं. इस तरह के रोगों से ग्रस्त व्यक्ति का सामान्य डॉक्टर के पास इलाज नहीं होता है. इस दिशा में जुड़े लोगों की समाज सेवा और रोगियों के प्रति पूर्ण सहानुभूति ही उनकी सफलता का द्योतक होता है.
(क्रमशः)
आपने रोचकता जगा दी। निश्चित ही यह एक उपयोगी शृंखला होने वाली है। बेसब्री से इंतज़ार रहेगा इसके अगले लेख का।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
मशीन अनुवाद का विस्तार!, “राजभाषा हिन्दी” पर रेखा श्रीवास्तव की प्रस्तुति, पधारें
अंक-9 स्वरोदय विज्ञान, आचार्य परशुराम राय, द्वारा “मनोज” पर, पढिए!
सराहनीय शुरुआत.सार्थक पोस्ट.
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी एक सार्थक विषय पर......
जवाब देंहटाएंबहुत ही जानकारीपूर्ण पोस्ट....अगली कड़ियों का इंतज़ार.
जवाब देंहटाएंचीन देश की एक कहावत है 'मुझे बताया जाता है - मैं भूल जाता हूँ; 'मुझे दिखाया जाता है - मैं याद रखता हूँ; 'मैं करता हूँ - मैं समझता हूँ।' आक्यूपेशनल थेरॉपी वस्तुत: इस कहावत का ही एक रूप है, शरीर के जो अंग सामान्य रूप से अपेक्षित कार्य को करने में सक्षम न हों उनसे बार-बार वही कार्य कराया जाये, धीरे-धीरे दिमाग और अंग में अपेक्षित समन्वय स्थापित होने लगेगा। इसकी सफलता का गुरूमंत्र वही है जो साईं बाबा का है, 'श्रद्धा और सबूरी'; और यह डॉक्टर व रोगी के अतिरिक्त रोगी के संबंधियों पर भी लागू होता है।
जवाब देंहटाएंअच्छा विषय लिया है आपने।
बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
जवाब देंहटाएंसाहित्यकार-महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें
सराहनीय सार्थक पोस्ट ...
जवाब देंहटाएंआभार ...
अगली कड़ियों का इंतज़ार है ..!
di ka ek aur achchha kadam..:) aage dekhte hain...!!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी और जानकारीपरक पोस्ट....
जवाब देंहटाएंऐसी चिकित्सा कहाँ उपलब्ध है ,., इसके बारे में यथासंभव विस्तृत जानकारी दें .... उपयोगी जानकारी है
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