बच्चे के जन्म की सूचना हमें उसके रोने से ही मिलती है क्योंकि उस समय हम सब तो बाहर ही होते हैं .बच्चे के इस रोने के कारण और इसके महत्व को मैंने खुद कभी इतनी गंभीरता से नहीं समझा था. हम तो यही समझते थे कि बच्चा जन्मते ही बाहर के वातावरण का आदी नहीं होता है इसलिए वो रोता है. जब इस डगर चले तो पता चला कि ऐसा नहीं है . इस रोने से बच्चे का सारा जीवन जुड़ा होता है. जब तक शिशु माँ के गर्भ में रहता है वह सारी जीवनी शक्तियां माँ से ही ग्रहण करता है. जन्म लेते ही वह तेजी से रोता है क्योंकि बाहर के वातावरण से उसका पहला स्पर्श होता है. इस रोने की क्रिया से ही शिशु के फेफड़े खुलते हैं और वह आक्सीजन ग्रहण करता है. उसके मस्तिष्क की जितनी भी नसें होती हैं वे आक्सीजन से ही सक्रिय होती हैं और उनमें रक्त संचार आरम्भ होता है. यह एक स्वस्थ शिशु के लिए अत्यंत आवश्यक होता है , इसमें ही उसके शारीरिक विकास और सक्षमता का राज छिपा होता है. इसके विपरीत अगर बच्चा नहीं रोता है तो डॉक्टर उसको तुरंत मार कर रुलाने का प्रयास करती है क्यों? क्योंकि उसका तुरंत रोना आवश्यक होता है और यदि इसके बाद भी बच्चा नहीं रोता है तो उसको वेंटिलेटर पर रख दिया जाता है या उसको यथाशक्ति शीघ्र आक्सीजन देने की व्यवस्था की जाती है . अगर इस प्रक्रिया में ५ मिनट की भी देरी हो जाती है तो शिशु के पूर्ण रूप से स्वस्थ होने की संभावना पर प्रश्न चिह्न लग जाता है. ऐसा इसलिए होता है कि अगर मष्तिष्क की नसों में रक्त संचार तुरंत नहीं हुआ तो कृत्रिम साधनों से दी जाने वाली आक्सीजन से सारी नसे नहीं खुल पाती हैं और जो इस बीच चिपक जाती हैं, उनको फिर नहीं खोला जा सकता है और वे जिन अंगों तक मष्तिष्क की निर्देशन तरंगों को ले जाने वाली होती है - वह अंग विकलांगता के शिकार हो जाते हैं. ये जन्मजात शारीरिक विकलांगता का कारण होता है.
इसके अतिरिक्त इस प्रक्रिया के बाधित होने से मानसिक विकलांगता भी होती है, जिसमें शिशु शारीरिक रूप से पूर्ण रूप से स्वस्थ होता है किन्तु उसका मष्तिष्क किसी दृष्टि से अक्षम होता है. इसको सामान्य व्यक्ति नहीं समझ सकता है .
और इस कमी के बारे में बचपन में पता भी नहीं चलता है, जब बच्चा बड़ा होता है तब उसकी शारीरिक और मानसिक क्रियाओं से ये स्पष्ट हो पाता है.
विगत कुछ वर्षों में संचार के साधनों ने इस तरह के कुछ बच्चों या व्यक्तियों की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए कुछ फिल्मों और टीवी सीरियल का निर्माण किया गया है. इस लिए कुछ प्रारंभ में रोगों के बारे में उनके अनुसार ही बताती हूँ ताकि सभी समझ सकें कि हाँ ऐसा क्यों होता है?
तारे जमीं पर -- इस फ़िल्म में मुख्य पात्र 'डिस्लेक्सिया' नामक रोग से ग्रसित होता है. जिसमें पीड़ित अध्ययन के दौरान अक्षरों के बीच भेद नहीं कर पाता है. वह ' b ' को 'd ' पढता है और 'p ' को 'q ' समझ सकता है. इसको माता - पिता सामान्य त्रुटि मानते हैं और उसकी लापरवाही मान कर उसको प्रताड़ित करते हैं. वास्तव में यह एक मानसिक अक्षमता है. फिर यदि ऐसे बच्चों के लिए समुचित व्यवस्था की जाय तो वे उसके अनुसार शिक्षित किये जाते हैं.
माई नेम इज खान -- इस फ़िल्म का नायक शाहरुख़ खान 'एस्पर्जास सिंड्रोम' का शिकार था. जिसमें पीड़ित गुरुत्वाकर्षण की असुरक्षा का शिकार होता है. जिसमें वह जमीं पर देख कर चल सकते हैं क्योंकि उनकी मानसिकता ऐसी होती है के अगर वे नीचे देख कर नहीं चलेंगे तो गिर जायेंगे. किसी स्थिति में उनको झूला झूलने से ही डर लगता है और किसी स्थिति में वह तेज तेज झूलना ही पसंद करता है. इसमें एक स्थिति के दोनों ही रूप संभव होते हैं.
आपकी अंतरा -- यह एक TV सीरियल आया था, जिसमें की बच्ची को 'स्पेक्ट्रम डिसआर्डर ' का शिकार दिखाया गया . इसमें जो भी क्रिया होती है वह दोनों ही रूपों में हो सकती है. जैसे कि अंतरा बिल्कुल चुप और निष्क्रिय रहती थी और कभी बच्चा इसके ठीक विपरीत अतिसक्रिय भी हो सकता है जैसे कि वह सारे घर में दौड़ता ही रहे या फिर बहुत शोर मचने वाला भी हो सकता है. इन बच्चों को यदि कहा जाय कि ये बिल्कुल ठीक हो सकते हैं ऐसी संभावना बहुत कम होती है लेकिन इनको संयमित किया जा सकता है और इनके व्यवहार में परिवर्तन लाया जा सकता है.
इन बच्चों के लिए ही इस प्रकार की चिकित्सा पद्धति का प्रयोग किया जाता है. इस प्रकार के बच्चों को मनोचिकित्सक इलाज नहीं कर सकता है, क्योंकि मनोरोग और मानसिक अपंगता दो अलग अलग स्थितियां हैं और इसके बारे में अगली किश्त में ............
(क्रमशः)
इसके अतिरिक्त इस प्रक्रिया के बाधित होने से मानसिक विकलांगता भी होती है, जिसमें शिशु शारीरिक रूप से पूर्ण रूप से स्वस्थ होता है किन्तु उसका मष्तिष्क किसी दृष्टि से अक्षम होता है. इसको सामान्य व्यक्ति नहीं समझ सकता है .
और इस कमी के बारे में बचपन में पता भी नहीं चलता है, जब बच्चा बड़ा होता है तब उसकी शारीरिक और मानसिक क्रियाओं से ये स्पष्ट हो पाता है.
विगत कुछ वर्षों में संचार के साधनों ने इस तरह के कुछ बच्चों या व्यक्तियों की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए कुछ फिल्मों और टीवी सीरियल का निर्माण किया गया है. इस लिए कुछ प्रारंभ में रोगों के बारे में उनके अनुसार ही बताती हूँ ताकि सभी समझ सकें कि हाँ ऐसा क्यों होता है?
तारे जमीं पर -- इस फ़िल्म में मुख्य पात्र 'डिस्लेक्सिया' नामक रोग से ग्रसित होता है. जिसमें पीड़ित अध्ययन के दौरान अक्षरों के बीच भेद नहीं कर पाता है. वह ' b ' को 'd ' पढता है और 'p ' को 'q ' समझ सकता है. इसको माता - पिता सामान्य त्रुटि मानते हैं और उसकी लापरवाही मान कर उसको प्रताड़ित करते हैं. वास्तव में यह एक मानसिक अक्षमता है. फिर यदि ऐसे बच्चों के लिए समुचित व्यवस्था की जाय तो वे उसके अनुसार शिक्षित किये जाते हैं.
माई नेम इज खान -- इस फ़िल्म का नायक शाहरुख़ खान 'एस्पर्जास सिंड्रोम' का शिकार था. जिसमें पीड़ित गुरुत्वाकर्षण की असुरक्षा का शिकार होता है. जिसमें वह जमीं पर देख कर चल सकते हैं क्योंकि उनकी मानसिकता ऐसी होती है के अगर वे नीचे देख कर नहीं चलेंगे तो गिर जायेंगे. किसी स्थिति में उनको झूला झूलने से ही डर लगता है और किसी स्थिति में वह तेज तेज झूलना ही पसंद करता है. इसमें एक स्थिति के दोनों ही रूप संभव होते हैं.
आपकी अंतरा -- यह एक TV सीरियल आया था, जिसमें की बच्ची को 'स्पेक्ट्रम डिसआर्डर ' का शिकार दिखाया गया . इसमें जो भी क्रिया होती है वह दोनों ही रूपों में हो सकती है. जैसे कि अंतरा बिल्कुल चुप और निष्क्रिय रहती थी और कभी बच्चा इसके ठीक विपरीत अतिसक्रिय भी हो सकता है जैसे कि वह सारे घर में दौड़ता ही रहे या फिर बहुत शोर मचने वाला भी हो सकता है. इन बच्चों को यदि कहा जाय कि ये बिल्कुल ठीक हो सकते हैं ऐसी संभावना बहुत कम होती है लेकिन इनको संयमित किया जा सकता है और इनके व्यवहार में परिवर्तन लाया जा सकता है.
इन बच्चों के लिए ही इस प्रकार की चिकित्सा पद्धति का प्रयोग किया जाता है. इस प्रकार के बच्चों को मनोचिकित्सक इलाज नहीं कर सकता है, क्योंकि मनोरोग और मानसिक अपंगता दो अलग अलग स्थितियां हैं और इसके बारे में अगली किश्त में ............
(क्रमशः)
बहुत उपयोगी जनकारी दी है आपने। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंऔर समय ठहर गया!, ज्ञान चंद्र ‘मर्मज्ञ’, द्वारा “मनोज” पर, पढिए!
आपकी ये पोस्ट हमे ऐसे तथ्यों से अवगत कराती है जो बहुत महत्वपूर्ण है और जीवन में लाभदायक भी . एकदम नया कांसेप्ट. आभार
जवाब देंहटाएंमहत्वपूर्ण जानकारी. आभार.
जवाब देंहटाएंतथ्यपरक जानकारी जो अधिकॉंश को ज्ञात नहीं होती।
जवाब देंहटाएंफिल्मों और धारावाहिकों के माध्यम से मानसिक अपंगता के प्रति जागरूक किया जा सकता है ...
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी ...
आभार !
upyogi jaankari........di aapne to pura reserch kiya hai.......abhaar!!
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत उपयोगी जानकारी ..
जवाब देंहटाएंसराहनीय उपयोगी जानकारी
जवाब देंहटाएंबहुत ही उपयोगी जानकारी....कई सारी बीमारियों के बारे में अपने बताया जिससे लोग अवेयर नहीं हैं...
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