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शनिवार, 14 मई 2011

विश्व परिवार दिवस !


प्राणी जगत में परिवार सबसे छोटी इकाई है या फिर इस समाज में भी परिवार सबसे छोटी इकाईहै। यह सामाजिक संगठन की मौलिक इकाई है। परिवार के अभाव में मानव समाज के सञ्चालन की कल्पना भीदुष्कर है। प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी परिवार का सदस्य रहा है या फिर है। उससे अलग होकर उसके अस्तित्वको सोचा नहीं जा सकता है। हमारी संस्कृति और सभ्यता कितने ही परिवर्तनों को स्वीकार करके अपने कोपरिष्कृत कर ले, लेकिन परिवार संस्था के अस्तित्व पर कोई भी आंच नहीं आई। वह बने और बन कर भले टूटे होंलेकिन उनके अस्तित्व को नकारा नहीं जा सकता है। उसके स्वरूप में परिवर्तन आया और उसके मूल्यों मेंपरिवर्तन हुआ लेकिन उसके अस्तित्व पर प्रश्नचिह्न नहीं लगाया जा सकता है। कितनी आधुनिक विचारधारा में हमपल रहे हो लेकिन अंत में अपने संबंधों को विवाह संस्था से जोड़ कर परिवार में परिवर्तित करने में ही संतुष्टिअनुभव करते हैं।
वास्तव में परिवार को जैवकीय संबंधों पर आधारित एक सामाजिक समूह के रूप में परिभाषित कियाजा सकता है जिसमें माता पिता और उनकी संतति होती है। जिसका उद्देश्य अपने सदस्यों के लिए सामान्यनिवास, आर्थिक सहयोग , प्रजनना, समाजीकरण और शिक्षण आदि की सुविधाएँ जुटाना है।
१५ मई को विश्व परिवार दिवस है। ये तो परिवार बनाने की परंपरा सम्पूर्ण विश्व में है . ये बात और हैकि परिवार से सम्बंधित नियमों और दायित्वों और उनके स्थायित्व में विभिन्नता पाई जाती है।
हमारा विषय अपने ही भारतीय परिवारों को बनाया जा सकता है। जीवन मूल्यों में तेजी से परिवर्तनहोने लगा है और परिवार कभी जिसमें दो से लेकर चार और पांच पीढ़ियों के लोग भी रहते थे धीरे धीरे बिखर करअब सिर्फ एकल परिवार के रूप में दिखलाई देने लगे हैं। जो आज के परिप्रेक्ष्य में परिवार की भूमिका को निभा नहींपा रहे हैं। समाज में घटित होने वाली अधिकांश घटनाएँ समुचित पारिवारिक वातावरण के अभाव में ही हो रही हैं। इनमें से चाहे आत्महत्या का मामला हो, बच्चों के बहकते कदम हों या फिर आभासी दुनियाँ में खोते जा रहे बच्चोंसे लेकर युवा तक के लोग हों।
इस आभासी दुनियाँ में खोने के लिए सबसे बड़ा कारण है कि बच्चे जब परिवार में अपने माता पिता कासानिंध्य नहीं प्राप्त कर पाते हैं तो वे अपनी बातों को शेयर करने के लिए किसी को खोजते हैं। यह आवश्यक नहींकि वे परिपक्व हों बस उन्हें जरा सी सहानुभूति मिली कि वे अपना दिल खोल कर रख देते हैं। उन्हें अपने जैसे हीलोग मिल भी जाते हैं और कुछ लोग ऐसे भावुक बच्चों की भावनाओं का फायदा भी उठाने लगते हैं। परिवार केपास इतना समय नहीं होता है कि वे देखें कि उनके बच्चे क्या कर रहे हैं? हाँ सारी आधुनिक सुविधायों को जुटानेको ही वे अपने दायित्वों कि पूर्ति समझ बैठते हैं।
परिवार में खुद पति पत्नी पैसे कमाने की आपाधापी में दिन में १७-१८ घंटे काम में लगे रहते हैं और उनकेपास इतनी ऊर्जा शेष नहीं रहती है कि वे दिन भर के अपने सुख और दुःख को बाँट सकें। या फिर बच्चों के साथबैठ कर उनसे कुछ शेयर कर सकें । बच्चों के मन में दिन भर के बाद ढेर सी बातें होती हैं कि वे मम्मी और पापाको बताएँगे लेकिन मिलता उनको कुछ भी नहीं है।
'हम बहुत थके हैं बेटा, फिर कभी करेंगे इस बारे में बात। '
'बहुत परेशान करोगे तो हम तुम्हें होस्टल में डाल देंगे।'
आज बहुत छोटी उम्र के किशोरों में विपरीत लिंगी के प्रति आकर्षण किस बात का प्रतीक है कि वे घरसे उपेक्षित हैं तो इस उम्र में प्यार की तलाश शुरू हो जाती है उनके अन्दर विवेक और निर्णय लेने की क्षमता तोपरिपक्व नहीं होती हैं लेकिन वे क्षणिक आकर्षण को ही सब कुछ मान बैठते हैं फिर उसके परिणाम कुछ अच्छेनहीं मिल रहे हैं। परिवार से जुड़े मुख्य मुद्दों में विवाह और संतानोत्पत्ति को रखा जा सकता है लेकिन उसके लिएआप अगर मानसिक रूप से तैयार नहीं हैं तो परिवार बनाने का कोई औचित्य नहीं रह जाता है। जिस संस्था कीआप नींव डाल रहे हैं उसके बारे में कुछ दूर तक सोच कर ही निर्णय लेने चाहिए। चाहे इसके लिए आप अपने कामसे समय निकलिये अथवा अपनी जरूरतों के अनुसार अपनी व्यस्तता को कम करके समय निकलिये।
इस सृष्टि का आधार परिवार ही है, हम कितने ही आधुनिक हो जाएँ लेकिन विवाह और परिवार संस्थाके प्रति उदार नहीं हो सकते हैं। उन्हें अपने मूल्यों को नहीं खोना चाहिए। जिस संस्था के निर्माण के लिए हमजिम्मेदार हैं उसके प्रति अपने दायित्वों के प्रति भी हम ही जिम्मेदार हैं। तलाक की सूली पर लटका विवाह यापरिवार एक स्वस्थ मानसिकता का प्रतीक हरगिज नहीं हो सकता है।
परिवार के प्रति अगर न्याय करना है और बच्चों को संस्कार देने हैं तो अपनी जीवन शैली में परिवर्तनआवश्यक है। बल्कि यों कहिये कि वह संयुक्त परिवार जिसे हम पीछे छोड़ा है और आगे बढ़ने में अपनी प्रगतिदेखते हैं वापस उसमें झांक कर देखिये तो पता चलेगा कि भटकते बचपन, बच्चों के प्रति असुरक्षा और उनकेसंस्कारों के प्रति जिम्मेदारी से आप मुक्त ही नहीं होते बल्कि अपने माता पिता की छत्रछाया में उनको सुरक्षा कीभावना का भी विकास हो सकेगा । वे अपने को अकेले नहीं बल्कि सुरक्षित महसूस कर सकेंगे और आपनिश्चिन्त। अपने आपसी संबंधों में भी आप माता पिता कि छाया में रहने से जल्दबाजी वाले निर्णय नहीं ले सकतेहैं। उनके पास अपनी सोच के अनुसार बहुत सारे समाधान होते हैं। आप पर एक नैतिक दबाव भी होता है औरपरिवार संस्था के मूल्यों कि इससे रक्षा भी होती है।
आज के दिन परिवार को स्थायी और सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों को बचाए रखने वाली संस्थाही बनाये रखने के लिए संकल्प लेना होगा। एक शांत मष्तिष्क से अगर विचार करेंगे तो पाएंगे कि पैसे से सिर्फभौतिक सुखों को तो खरीदा जा सकता है लेकिन अगर आप मानसिक सुख शांति और सुरक्षा खरीदना चाहे तो वहसंभव ही नहीं है।

11 टिप्‍पणियां:

  1. आज के दिन आपने हमारी सच्चाई बता दी की हम कितने संवेदनहीन है

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  2. आज के समय में परिवार को एक साथ रखने की लाख कोशिशे भी बेकार हो जाती है लेकिन दूरी होने पर भी दिल से दूर न हो जाएँ बस यह कोशिश जारी रहती है..

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  3. बहुत अच्छा और विचारोत्तेजक आलेख। परिवार के महत्त्व को नकारा नहीं जा सकता।

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  4. परिवार अभी भी सशक्त ईकाई है मानवता की, इसकी शक्ति बची रहे।

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  5. बसुधैव कुटुम्बकम में विश्वास करने वाले देश में परिवार तो आत्मा समान है . आपको शुभकामनाये.

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  6. परिवार दिवस पर आप सबको बहुत बहुत बधाई /बहुत अच्छा लेख परिवार पर /बिना परिवार के ना सुख में अच्छा लगता है और दुःख में तो परिवार की जरुरत सबसे अधिक होती है /परन्तु आज लोग अपने मतलब ,.अहम् के कारण परिवार को तोड़ने में ज्यादा विस्वास करने लगें हैं./आज के हालातों के उपर लिखी एक बहुत ही भावमयी रचना /बधाई आपको

    please visit my blog and leave the comments also.thanks

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  7. मैरा तो हर पल परिवार के नाम से होता हे, फ़िर सिर्फ़ एक दिवस कैसे परिवार के नाम कर दुं, रचना बहुत सुंदर लगी, बहुत पसंद आई धन्यवाद

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