रविवार, 1 मई 2011
श्रमिक दिवस किसके लिए ?
विश्व में सभी को एक एक दिन देकर सम्मान किया जाता है , वह सम्मान चाहे सार्थक हो या न हो। इसी क्रम में भूले हम उनको भी नहीं है जिन्होंने कभी हमारे आशियाँ बनाये, कभी हमारे बोझ को अपने कन्धों पर उठाया , कभी हमें बिठा कर खुद सारथी बन कर मंजिल तक पहुँचाया। आज उन्हें सम्मान देने वाला दिन है। आज विश्व श्रमिक दिवस है।
मैं कड़ी धूप में पसीना बहते हुए उन श्रमिकों को सलाम करती हूँ, जिन्हें हमने ये दिन दिया है। पर क्या सिर्फ इस सम्मान के देने से ही हम उनके पसीने की कीमत का आकलन कर पाए हैं। ठेला गाड़ी में टनों लोहे को लाद कर खींचते हुए - वे हाड़ मांस के शरीर हमसे इतर तो नहीं है लेकिन हाथ की लकीरों में जरूर कुछ अंतर तो लेकर आये हैं। हम दाता नहीं फिर भी उनके फैले हुए हाथों पर कुछ कभी न कभी तो रख ही देते हैं और उस पर भी मोल तोल कि इसका इतना नहीं इतना होता है। ये सोचे बगैर जिस पैसे को बचाने की हमारी नियत रहती है उतना हममें से कुछ पान खाकर थूक देते हैं या फिर धुंए में उड़ा देते हैं। अगर उनको दे दें तो शायद वे नमक के साथ रोटी खाने के जगह किसी सब्जी से खाने की सोच सकते हैं।
पूरे विश्व की बात तो नहीं करते हैं लेकिन अगर हम सिर्फ अपने नगर कानपुर की ही बात करें तो कभी भारत का मानचेस्टर कहा जाता था। आज से ३० साल पहले यहाँ पर कपड़े की कई मिलों का धुआ आसमान में उड़ता था और लाखों की संख्या में मजदूर अपने परिवार पालते थे। धीरे धीरे सब बंद हो गयी। मिलों क़ी बड़ी बड़ी बिल्डिंग भी आज खँडहर बन चुकी हैं लेकिन वे मजदूर आज भी आशा लगाये हैं कि शायद फिर से चल पड़े और वे जो उस समय जवान थे आज प्रौढ़ हो चुके हैं और उनके नन्हे बच्चे जवान हो गए हैं। उनके बच्चे भी श्रमिक का ठप्पा लगाये घूम रहे हैं क्योंकि न उनके पास पढ़ने केलिए पैसे थे कि पढ़ सकें और न सरकार के पास उनके लिए कुछ सार्थक सोचने के लिए समय।
सारी सरकारी घोषणाएं सिर्फ कागजों में होती हैं, उनका क्रियान्वयन कभी नहीं होता है अगर हुआ भी तो फायदा कोई और उठाता है वे तो वही खड़े हैं। सँगठित मजदूरों की कितनी संख्या है? सारे असंठित मजदूर हैं और उनके बहते हुए पसीने की कमाई का सिर्फ कुछ प्रतिशत ही उनको मिलता है। सरकार द्वारा मजदूरी निर्धारण के बाद भी वे इस बात से वाकिफ नहीं है और वे जी तोड़ मेहनत करते करते समय से पहले बूढ़े हो जाते हैं और कभी अशक्त होकर कभी किसी बीमारी का शिकार होकर एडियाँ रगड़ते हुए मर जाते हैं। वे पीढ़ी दर पीढ़ी श्रमिक ही बने रहते हैं। उनको मिलने वाली सुविधाएँ तो कोई और खा रहा है।
हम औरों तक क्यों जाएँ? क्या हममें से किसी ने अगर अपने यहाँ कुछ काम करने वाले लोग हैं तो उनको आज छुट्टी दी , क्या हमने उनको कुछ अच्छा खाने के लिए दिया या फिर आज के दिन मनाने के लिए कुछ अतिरिक्त पैसे दिए? शायद नहीं - हम इतना कर ही नहीं सकते हैं। हमारी सोच तो अपने से ऊपर उठ कहाँ पाती है? फिर क्या फायदा इस दिन को मनाने का? अरे कुछ सरकार ही ऐसे प्रकोष्ठ खोले कि आज का दिन उनके लिए विशेष बन जाय। हम भी तो कर सकते हैं अगर हम उनको अपनी तरह से मनुष्य मान कर चलें तो। आज तो गया चलिए आगे के लिए कुछ संकल्प कर लें की उन्हें हम कुछ ऐसा देंगे की वे भी अनुभव करें की उनके लिए विश्व में कोई दिन है जिस दिन उन्हें काम के बिना भी कुछ मिलता है। उनके अस्तित्व को दुनियाँ में कोई समझता है।
तभी ये दिन उनके लिए सार्थक होगा।
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सार्थक लेख ....
जवाब देंहटाएंसार्थक पहल हो जिसका विकास से सीधा सम्बन्ध हो।
जवाब देंहटाएंहम इन मेहनतकशों को सलाम करते हैं!
जवाब देंहटाएंउन्हें बेहतर सुविधाएँ मिलनी चाहिए… पर इसकी चिंता कौन करता है? मालिको के शोषण का शिकार न हों इसके लिये क़ानून तो हैं पर कितने सक्षम, सक्रिय और सफल, यह किसी से छुपा नहीं है।
अगर हम ने इन मजदुरो को सम्मान देना हे तो इन्हे शोषण का शिकार ना होने दे, एक रिक्शा पर एक ही बेठे ओर उन्हे पुरा परिश्ररम दे, मिल मजदुरो को , ओर अन्य मजदुरो को अच्छी तन्खाह के संग अन्य सहुलियत भी मिले, यानि इन लोगो को समाज मे बराबर का स्थान मिले, यह दाने दाने को ना तरसे, यही सच्चा सम्मान होगा,
जवाब देंहटाएंआप की बहुत अच्छी प्रस्तुति. के लिए आपका बहुत बहुत आभार आपको ......... अनेकानेक शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आने एवं अपना बहुमूल्य कमेन्ट देने के लिए धन्यवाद , ऐसे ही आशीर्वाद देते रहें
दिनेश पारीक
http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/
http://vangaydinesh.blogspot.com/2011/04/blog-post_26.html
बिलकुल आपसे सहमत।
जवाब देंहटाएंसरकारी घोषणाएं सिर्फ कागजों में होती हैं, उनका क्रियान्वयन कभी नहीं होता है...
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने.
सामाजिक विचारों के दोहरेपन को बड़ी खूबसूरती से आपने इस लेख के माध्यम से उजागर किया है आपने।
कष्ट पूर्ण जीवन ...शुभकामनायें !!
जवाब देंहटाएंसार्थक चिंतन और उत्तम प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार.
जवाब देंहटाएंआप मेरे ब्लॉग पर आयीं इसके लिए भी आपका आभार.
कृपया ,एक बार फिर आयें, नई पोस्ट आज ही जारी की है.
क्या ब्लॉगर मेरी थोड़ी मदद कर सकते हैं अगर मुझे थोडा-सा साथ(धर्म और जाति से ऊपर उठकर"इंसानियत" के फर्ज के चलते ब्लॉगर भाइयों का ही)और तकनीकी जानकारी मिल जाए तो मैं इन भ्रष्टाचारियों को बेनकाब करने के साथ ही अपने प्राणों की आहुति देने को भी तैयार हूँ. आज सभी हिंदी ब्लॉगर भाई यह शपथ लें
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