राजेश उत्साही :
अनुभव से भरी बचपन की गर्मियां :
बचपन का 1968 से 1974 का समय म.प्र. के मुरैना जिले की सबलगढ़ तहसील में गुजरा है। कुछ साल श्योपुरकलाँ के पास एक छोटे से रेल्वे स्टेशन इकडोरी और उसके गाँव रघुनाथपुर में और कुछ साल सबलगढ़ की गलियों में। आमतौर पर गर्मियों की छुट्टी में हमने भी वह सब किया जो और लोग करते रहे हैं। व्यापार खेला,कंचे चटकाए, अष्टा चंगा और सोलह गोटी खेली। मोहल्ले की लड़कियों को नीम की डाल पर बंधा झूला झुलाया। साइकिल पर भर दोपहरी में आवारागर्दी की। किताबें तो खैर पढ़ते ही थे। यकीन करिए आठवीं तक आते-आते मैं सौ से अधिक उपन्यास पढ़ चुका था। हां ताश के पत्ते नहीं खेले, ताश को हाथ लगाने पर भी प्रतिबंध था। पर कुछ ऐसा भी किया जो सचमुच अलग था। याद रह गया। यह बात सन् 1970 के आसपास की है। पिताजी रेल्वे में थे। उनकी पोस्टिंग एक छोटे स्टेशन पर थी। इसलिए हम सब सबलगढ़ में किराए के घर में रहते थे।
जिस मोहल्ले में हम रहते वे वहाँ गर्मियों की छुट्टियों में लगभग हर तीसरे घर के बाहर कुछ बच्चे गोली-बिस्कुट की छोटी-सी दुकान लगाए नजर आते थे। दो-एक साल मैंने भी ऐसी दुकान लगाई। दुकान के लिए सामान ग्वालियर से खरीदकर लाते थे। शुरू में पचास-साठ रुपए की सामग्री खरीद कर दुकान में रख ली जाती। दुकान का पूरा हिसाब-किताब बच्चों को ही सम्भालना होता। कुछ दुकानें तो एकाध हफ्ते में ही उठ जातीं। क्योंकि उनको सम्भालने वाले बच्चे दुकान का आधे से ज्यादा सामान तो खुद ही खा जाते। लेकिन कुछ दुकानें बाकायदा चलती रहतीं। चलने वाली दुकानों में एक मेरी भी थी। मुझे नहीं पता कि इसको शुरू करवाने वाले के दिमाग में इसके पीछे कोई शैक्षणिक समझ थी या नहीं। शायद मोटी समझ यह रही होगी कि बच्चे धूप में आवारागर्दी न करें। दुकान के बहाने कम से कम दोपहर भर तो घर में बैठेंगे, दरवाजे पर ही सही।
इसके अलावा जहां हम रहते हैं, वहां जिनसे दोस्ती थी, उनकी कपड़े आदि की दुकानें थीं। गर्मियों में उनके मां-बाप अपने बच्चों को दुकान पर ही भेज देते थे। एक साल मैं भी अपने दोस्त के साथ उसकी दुकान पर कुछ दिन गया। हम वहां बैठते, आने वाले ग्राहकों को कपड़े दिखाने में मदद करते। ग्राहकों के चले जाने के बाद कपड़ों को वापस घड़ी करके रखते। इस काम में सचमुच बहुत मजा आता। नए-नए लोगों से मिलने का मौका तो खैर मिलता ही था। यह सुनने और देखने में मजा आता कि दुकानदार ग्राहक को कैसे पटाता है।
दोनों ही अनुभव ऐसे हैं जो भुलाए नहीं भूलते।
बहुत सुन्दर संस्मरण| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंजिन परिवारों में ऐसे व्यापार हैं वहाँ अक्सर किशोर वय के पुत्र दुकान पर ही बैठकर अपनी छुट्टियां बिताते हैं। हम सभी ने एक सा जीवन बिताया है बस आज परिवर्तन आया है।
जवाब देंहटाएंमोल भाव करना, बचपन में देख देख कर सीखा पर अब कभी नहीं करते हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत रोचक!!
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