रश्मि प्रभा:
गर्मी की छुट्टियां ??????????? छुट्टी तो हमेशा होती थी . पर लगातार घर में रहना गर्मियों में
ही संभव होता . तो उसका ज़िक्र चलिए मैं कर देती हूँ , पर इसके लिए तो मेरी माँ को कलम देनाअधिक
बेहतर होता . .
घटना कहूँ या हादसा या अपनी टोली का हसीन लम्हा ...... छुट्टियों में तो एक तरफ हर वक़्त भूख लगी होती ,
दूसरी तरफ चीजों को अस्त व्यस्त करने की साझेदारी ,और जब माँ की आँख लग रही होती , उसी वक़्त गुत्थम गुत्थी
मारापीटी और एक दर्दीली चीख लगाना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार था ! याद है एक वाक्या ... तंग आकर एक दिन माँ
ने हमें भण्डार में बन्द कर दिया . ओह, बहुत खुश थी हमें सबक सिखाते.... पर उसे क्या पता था कि हमारे चेहरे परकैसी मुस्कान
खिल रही थी. दरवाजे की कुण्डी लगते हम भाई-बहन ग्राहक दुकानदार बन गए . पाँच की टीम थी तो एक दुकानदार, एक उसका सेवक
और तीन ग्राहक . सेर तराजू बटखरा सब मौजूद .... जमीन पर एक तरफ चावल की बोरी उल्टी गई, एक तरफ गेंहू , एकतरफ दाल...
और शुरू हुई हमारी एक्टिंग ... 'कितना चाहिए भईया चावल ?' .... 10 सेर ?
'लो भईया ...एके राम एक एके राम एक .......दू -. दुए राम दू दुए राम.........'
माँ ने जब दरवाज़ा खोला , दृश्य और माँ - दोनों देखने लायक थे ... चावल, दाल, गेंहू लगभग मिल गए थे और हममासूमियत से खड़े थे .
माँ समझ नहीं पा रही थी कि सामान उठाये - वो भी अलग अलग या हमारे कान उमेठे , और वह रोने लगी , हम उसेघेरकर खड़े हो गए उस वक़्त
इस दिलासे के साथ कि आगे से ऐसा नहीं करेंगे . .......
ऐसी छुट्टी की छुट्टी कर देनेवाली कई कहानियाँ पिटारी में हैं , सुनना है ???
हाँ सुनना है रश्मि जी, आप हमें भेजिए हम सब को सुनाते हैं।
(सफर अभी जारी रहेगा )
रेखा जी आप तो उस लड़की में चाभी भर रही हैं , कहने लगी तो आप थक जाएँगी न
जवाब देंहटाएंहा हा!! इस पर तो पहले कान उमेठ ही देना था अम्मा को..तो न और बदमाशी होती और न ही कहानियाँ बनती. :)
जवाब देंहटाएंऔर सुनाईये किस्से!!!!रोचक है!
wah.mujhe bhi bachpan yaad dila diya aapne to
जवाब देंहटाएंबाप रे कितने शैतान थे आप लोग :).
जवाब देंहटाएंniv jee,
जवाब देंहटाएंapake bachpan ke sansmaranon ka yahan par svagat hai. aap mujhe bhej sakate hain.
rekhasriva@gmail.com par.
mujhe intjaar rahega.
आपकी यह उत्कृष्ट प्रविष्टी कल शनिवार के चर्चा मंच पर भी है!
जवाब देंहटाएंHa aur bhi Sunna hai Maa....Ilu..!
जवाब देंहटाएंरोचक संस्मरण।
जवाब देंहटाएंबहुत रोचक ..अब चाभी भर ही दी है तो सुना दीजिए और कहानियाँ ..
जवाब देंहटाएंरोचक स्मृतियाँ।
जवाब देंहटाएंरश्मि जी,
जवाब देंहटाएंऐसी छुट्टी की छुट्टी कर देनेवाली कई कहानियाँ पिटारी में हैं..... हाँ, जरूर सुनना है . बेहद मजेदार पोस्ट ...आभार.
बहुत रोचक संस्मरण।मजेदार पोस्ट ...आभार.
जवाब देंहटाएंइस पिटारी को बन्द मत होने दीजिये ... रोचकता का जादू आपकी शैतानियों से चेहरे पर मुस्कान ले आता है ..बहुत खूब ।
जवाब देंहटाएंमै इसीलिए हमेशा कहती हूँ कि इन बच्चों से कभी पंगा मत लो, अब मिला दिया ना सारा ही चावल-दाल। इन्हें तो खुले मैदान में छोड़ देना चाहिए कि भाई तुम्हारी जंचे जो यहाँ कर लो। आपके संस्मरण सुनकर तो बेचारे माता-पिता डर जाएंगे। कहेंगे की इस शैतान की खाला को दूर ही रखो। हा हा हाहा। और क्या है पिटारे में?
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
जवाब देंहटाएंकुछ चुने हुए खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .
बहुत रोचक..बचपन में शैतानी न हो ऐसा हो ही नहीं सकता..
जवाब देंहटाएंदी, और सुनाइये :)
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