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सोमवार, 30 जनवरी 2012

चुनौती जिन्दगी की: संघर्ष के वे दिन !

जिन्दगी वह महा समर है जिसको जीतने के लिए शायद ही कोई ऐसा होगा जिसने जीवन में संघर्ष किया होऐसा नहीं इसके कुछ अपवाद होते हें जिन्होंने कभी इस प्रकार का कोई भी अनुभव जीवन में लिया हो लेकिन ९९ प्रतिशत जीवन ऐसे होते हें - जिन्हें खुद को स्थापित करने में सामाजिक , पारिवारिक , आर्थिक या फिर अपने कार्यक्षेत्र में संघर्ष का सामना करना ही पड़ा होगा
इस संघर्ष के बिना शायद जीवन का स्वाद कुछ अधूरा ही रहता हैकिसी ने जन्म से मृत्यु तक सिर्फ संघर्ष और संघर्ष ही किया और करते करते ही चले गए, लेकिन हारे नहींऐसी ही एक जिन्दगी मैंने भी देखी बचपन से लेकर मृत्यु तक 'हादसों की जिन्दगी ' नाम से वे कहानी लिख गएउस कहानी ने ही ये प्रेरणा दी की सबके जीवन में झांक कर देखा जाय कितना कुछ झेल कर वे इस मुकाम तक पहुंचे हें और फिर भी मुस्करा रहे हेंअपनी उपस्थिति इस जगत में दर्ज करा कर अपने संघर्ष पर विजय की पताका फहरा रहे हें
आज के दौर में बढ़ती युवा आत्महत्या हो या फिर समाज में प्रतिष्ठित लोगों द्वारा के गयी आत्माहत्या - यह एक हारे हुए जीवन की कहानी बन जाती हैवे जो लड़ नहीं सके और मन से हार गए , उनके अन्दर हालातों से संघर्ष करने की क्षमता ही शेष रहीकाश को ऐसा मिल जाता जो उन्हें इस दौर से उबार लेता या फिर ऐसी कोई संघर्ष गाथा जो उन्हें संबल देती इस लड़ाई को लड़ने की की जीवन हार जाने की
इस विषय को मैं आप सबके बीच ले रही हूँ और हम भी इंसान है कोई फरिश्ते नहीं सबने अपने अपने ढंग से जीवन में संघर्ष किया है और इसी लिए सबके अनुभव लेकर एक श्रृंखला तैयार करने का मेरा इरादा है जिससे के युवा पीढ़ी हमारे जैसे हालातों में पड़ कर जीवन हारने की सोचने के स्थान पर इन अनुभवों को अपना संबल बनाये और सोचे की अगर वे लड़ कर निकल सकते हें तो हम भी इन हालातों को जीत कर आगे बढ़ सकते हेंये तो निश्चित है कि दूसरे का ज्यादा दर्द देख कर इंसान अपना दर्द भूल जाता है और सोचता है की हम तो इनसे बेहतर हें इस तरह तड़प तो नहीं रहे हें
मेरा अपना जीवन भी इससे इतर नहीं है , आज के हालात पर आने तक बहुत कुछ झेला है लेकिन हारी और साथ वाले को हारने दियाबस आज एक झलक ही दिखाऊंगी
बात १०८१ की है मेरी बड़ी बेटी का जन्म हुआ और मेरा बी एड में एडमिशनबस एक महीने की हुई कि क्लास के लिए जाना थाउस समय मैं कानपुर विश्वविद्यालय परिसर में रहती थी , वहाँ से मेरा कॉलेज बहुत दूर थाबी एड करने की ठान ही ली थी सो कॉलेज के पास कोई कमरा देखा गया जहाँ रहकर मैं बी एड कर लूं और कॉलेज से बीच बीच में अगर बेटी को भी देख सकूं
उस समय कानपुर में मिलें चल रहीं थी सो वहाँ के मजदूरों के रहने के लिए लोगों ने छोटे छोटे कमरे बनवा रखे थे जिनमें रोशनी और खिड़की होती थीमुझे एक घर मिला उन मजदूरों के बीच ही एक कमरा उसके आगे बंद बरामदा सिर्फ एक दरवाजा और वह भी ऊपर की मंजिल पर एकदम नीची छतलेकिन वह उस समय मेरी जरूरत बन चुका थासो सासुजी को लेकर हम दोनों वहाँ पहुँच गएगर्मी में ये आलम होता कि सासू तो बाहर खुली छत पर सो जाती लेकिन हम उस कमरे में सीलिंग फैन भी नहीं लग सकता था और गर्मी इतनी कि रात में सो नहीं सकते थे तब हम एक बाल्टी में पानी रख कर लेटते थे और चादर उस पानी से भिगो कर लेटते टेबल फैन से हवा लगती तो कुछ देर ठंडक लगती तो एक आध झपकी मार लेते और फिर जब चादर सूख जाती तो वही काम करतेइस तरह से गर्मियां गुजारी हमने और ये हमारी जिन्दगी का एक ऐसा अनुभव था कि सारी सुविधा उपलब्ध होने पर भी इंसान को हालात कैसी परीक्षा में डाल देता है कि वह एक बार उन लोगों की समस्या को सोचने के लिए मजबूर हो जाता हैवहा रहने वाले मजदूर उनके कमरे के आगे तो बंद बरामदा भी नहीं था सीधी धूप पड़ती सारा दिन और फिर उस कमरे में रहना जिसमें पंखा भी नहीं होता थाकमरे के बाहर सोते तो एल्गिन मिल विक्टोरिया मिल म्योर मिल की चिमनियों से निकलने वाला धुआं कार्बन के छूटे छोटे टुकड़े बनकर सब कुछ काला कर चुका होता था
आगे अपने और साथियों की संघर्ष गाथा लेकर आ रही हूँ, जो प्रेरणा बनेंगी और खासतौर पर उन लोगों के लिए जो अभी इस दौर से गुजर रहे हैं ।

7 टिप्‍पणियां:

  1. प्रेरक प्रसंग है और बेहद उम्दा कार्य कर रही है आप जो सबके अनुभवों और संघर्षों को समेट रही हैं ताकि आगे आने वाली पीढी के लिये वो ऊर्जा का स्त्रोत बन सके।

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  2. अच्छी श्रृंखला है..आप लोगों की संघर्ष की कहानी से और लोगों को भी प्रेरणा मिलेगी.

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  3. bahut prerak aur sarthak prayas... rekha di jindagi me aage badhne k liye sach me bahut mehnat karni hoti hai aur fir bhi aage nahi padh pate......

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  4. संघर्षों की गाथा पढने का हमारा भी मन है, इन्‍तजार रहेगा।

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  5. जिजीविषा बनी रहे, समस्यायें सुलझने लगती हैं।

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