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सोमवार, 20 फ़रवरी 2012

चुनौती जिन्दगी की: संघर्ष भरे वे दिन (९)






प्रियंका श्रीवास्तव (सोनू)

ये संघर्ष जिसका है वो मेरी बेटी है लेकिन लिखा उसकी कलम से ही गया हैमैं उसके संघर्ष की क़द्र करती हूँ क्योंकि मन तो सिर्फ उसको संभाल रहे थे वह दर्द और कष्ट तो उसने ही सहा है और कितने बार तो वह बताती भी नहीं थीरात में मैं सोयी होती तो वह बिल्कुल भी आवाज नहीं निकालटी थी क्योंकि उसे पता होता था कि मुझे सुबह से फिर उन्हीं कामों में जुटना हैमैं अपनी बेटी पर गर्व करती हूँ

वैसे तो मेरी माँ मेरे सभी संघर्षों की भागीदार रही हें लेकिन जब मैंने अपनी दृष्टि से देखा तो पाया कि मेरी नजर में कौन सा वक़्त सबसे अधिक कठिन रहा और मैंने उसको पीछे छोड़ कर अपने को इस मुकाम पर पहुँचाया वैसे मेरा संघर्ष अभी ख़त्म नहीं हुआ है लेकिन इस के साथ जीने की आदत तो डालनी ही होगी क्योंकि ये प्रकृतिदत्त कष्ट है और इसको एक कोने में रख कर आगे बढ़ना है मुझे फाइब्रोमाइलीजिय नामक रोग है और जिसका दवा से कोई इलाज संभव नहीं हैविभिन्न क्रियाएं ही इसमें आराम दिला पाती हें
यह बात २००५ - की है , मैं अपने कॉलेज की प्रेसिडेंट थी और अचानक मुझे क्या हुआ कि मैं भीषण दर्द की शिकार होने लगी इतनी भयंकर पीड़ा होती थी कि बस जान ही नहीं निकलती थी माँ मुझे अपने आगोश में दबा कर कस कर बैठ जाती थी जिससे कुछ आराम मिलता था लेकिन पूरा तो कभी ही नहीं पापा सारा काम छोड़ कर मुझे डॉक्टर को दिखाने के लिए दौड़ते रहते अब तो एक काम यह भी हो गया था कि मुझे वे कॉलेज छोड़ें और फिर छुट्टी के समय लें शाम को एक्यूप्रेशर के लिए ले जाएँ जहाँ जिसने जो बताया वह किया शायद ही कोई ऐसी थेरेपी बची हो जो पापा ने मेरे ऊपर अपने होमंदिर मस्जिद और गुरुद्वारे पर भी जाकर दुआ मांगी लेकिन मेरा रोग जैसा था वैसा ही रहाउसका पता भी कई महीनों बाद संजय गाँधी संस्थान में लगा कि मुझे रोग क्या है? और उसका कोई भी स्थायी निदान नहीं हैपेन किलर भी इसमें कोई राहत नहीं दे सकती है

मेरी पढ़ाई तो बिल्कुल ही डूबने लगी थी मन में एक बात ये भी थी कि अगर इंटर में मार्क्स अच्छे आये तो मेरी तो सारी इज्जत मिट्टी में मिल जायेगी मुझे याद है कि मेरे दर्द में तड़पते देख कर जब माँ भी रोने लगती तो मैं उन पर चिल्ला देती कि क्म से क्म तुम तो मत रोया करो मुझे कैसे समजाओगी लेकिन वो माँ का दिल मैं सब समझती थी लेकिन मुझे आज भी अपनी माँ की आँखों में आंसूं अच्छे नहीं लगते हें मैं सहन नहीं कर पाती हूँ
जब मेरे एक्जाम का समय आया तो पढ़ाई बहुत जरूरी थी माँ मुझे अपने गोद में दबा कर बैठ जाती और मैं किताब खोल कर लेटे लेटे पढ़ती लेकिन दर्द की तीव्रता में वह भी नहीं हो पाता माँ सारी रात बैठी रहती और मैं जितना संभव होता पढ़ लेती और फिर सुबह चल देती लेकिन दर्द क्या एक्जामिनेशन हाल में मुझे बख्श देता था नहीं मैं किस तरह से उस दर्द को पीकर पेपर देती सिर्फ मैं और मैं जानती हूँलेकिन उस समय मुझे सबसे अधिक सहारा दिया मेरी माँ पापा और मेरी दीदी की सहेली बेबी दीदी ने जिसने माँ के ऑफिस जाने पर मुझे माँ की तरह ही अपनी गोद में लिटा कर सुलाया हैजब माँ ऑफिस में होती तो वो मेरे दर्द बढ़ने पर मेरे पास होतीजब पापा माँ को फ़ोन करते कि जाओ सोनू को बहुत दर्द हो रहा है तो वो कहती नहीं आंटी को मत बुलाइए मैं संभाल लूंगी
मेरी जीत तब हुई जब मैंने यूं पी बोर्ड से ७७ प्रतिशत अंकों से इंटर की परीक्षा पास की

15 टिप्‍पणियां:

  1. जिसके पास अपनों की ताकत हो उसके संघर्ष मंजिल तक पहुँचते हैं . इस दर्द से राहत मिले , मेरी दुआएं साथ हैं

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  2. यही दुआ करूँगी सोनू को जल्द से जल्द दर्द से मुक्ति मिले और उसे ज़िन्दगी की हर खुशी मिले…………दर्द को जीतना आसान नही होता फिर भी उसने ये कर दिखाया कोई कम नही है।

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  3. आपकी हिम्मत और हौसले को सलाम ! ये जीवन की परीक्षा की घड़ियाँ हैं और इसमें आप अव्वल आयेंगी यह मेरा विश्वास है !

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    1. bahut bahut dhanyavad sadhana jee, shayad musibat dene se pahale ishvar hi shakti bhi de deta hai aur harane vah kabhi deta nahin hai.

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  4. अपनों का साथ मिले तो मन में हौसला बना रहता है ... शुभकामनायें

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  5. वन्दना ने आपकी पोस्ट " चुनौती जिन्दगी की: संघर्ष भरे वे दिन (९) " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:

    यही दुआ करूँगी सोनू को जल्द से जल्द दर्द से मुक्ति मिले और उसे ज़िन्दगी की हर खुशी मिले…………दर्द को जीतना आसान नही होता फिर भी उसने ये कर दिखाया कोई कम नही है।

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  6. अपनों का साथ ही सपनो का आधार है...

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  7. प्रियंका की हिम्मत और हौंसले को सलाम ...आप सबका साथ यूँ ही बना रहे ...ईश्वर से ये ही प्रार्थना हैं

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  8. आपकी और आपकी माताजी की लगन और जीवटता अनुकरणीय है..

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  9. पढ़ना पढ़ते रहना दुखों से दूर रहने की तरह हैं .पढ़ना खुद एक थिरेपी है .न्यूरोदिजेन रेतिव डिजीज ,अप विकासी रोगों को थाम लेता है पढने का शौक ,दर्द निवारक भी बला का है दर्द से निगाह हटी समस्या घटी .अच्छा प्रेरक संस्

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  10. रेखा
    सोनू के बारे में जान कर बहुत दु:ख हुआ, भगवान उसे इस दर्द को सहने की शक्ति दे, आज कल तो मेडिकल सांइस बहुत तरक्की कर गयी है नेट पर इसका कोई इलाज देखा क्या?
    हमेशा की तरह आज भी आप के ब्लोग का कमैंट बॉक्स नहीं खुल रहा इस लिए यहां ही टिपिया रही हूँ

    अनीता

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  11. नहीं अनीता, इसका मेडिकल साइंस में कोई भी इलाज नहीं है. कुछ एक्सरसाइज और फिजिकल थेरेपी ही इसमें आराम दे सकते है. हमने एम्स और SGPGI सब जगह दिखा लिया है और इसी लिए उसने Occupational Therepy चुनी -- उन बच्चों के बीच खोकर वह सब कुछ भूल जाती है. बच्चों में सुधार देख कर उनके माता पिता के चेहरे पर जो संतोष और ख़ुशी झलकती है वह सारे दर्द को भुला देती है.

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  12. हिम्मत और हौंसले ही हमें विजेता बनाती है, लगन और जीवटता आवश्यक पहलू है ...अपनों का साथ बना रहे यही कामना है !

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  13. हिम्‍मत और हौसले को सलाम।
    आपके पिता जी और माता जी को नमन।

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