ये आम बात है लेकिन इतने हद जाना हर किसी की वश की बात नहीं। आज घर के बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार करना आम बात है, उन्हें घर से बाहर निकाल देना भी अब कोई बड़ी बात नहीं रही। फिर भी कुछ इंसान ऐसे भी होते हैं वैसे तो उन्हें इंसान कहना ही गलत है लेकिन और क्या कहा जाय? जहाँ इंसानियत भी शर्मिंदा होकर मुंह फेर ले वहां हम किसे क्या कहें?
आज सुबह के अखबार ने उन गुमनाम हैवान के विषय में जानकारी दी एक बुजुर्ग को उनके परिजन मरणासन्न अवस्था में सड़क पर लिटा गए पास में उनके कपडे एक बैग में थे और पीने के लिए पानी एक डोलची में रखा था लेकिन वह पानी पीने की स्थिति में नहीं थे। वह तो बेहोशी की हालत में थे। फिर किसी इंसान ने उन्हें एक रिक्शे में डाल कर सरकारी अस्पताल में पहुँचाया तो वहां भी एक महान इंसान बैठे हुए थे। बोले क्या सारे लावारिस यही लेकर चले आते हो और बाद में इस बात से इनकार कर दिया। उन्हें किसी तरह से भरती कर दिया गया। पर आत्मा रो दी क्यों रोई ? इसके पीछे कोई भावना तो रहती ही है . फिर अपनी ये एक कविता याद आई जिसे किसी ऐसे ही घटना के क्षणों में मैंने लिखा था --
सुबह का अखबार
जब हाथ में आया
नजर पड़ी
एक तस्वीर पर
फिर उसका शीर्षक पढ़ा
सड़क पर फ़ेंक दिया
किसी सपूत ने
अपने अपाहिज और मृतप्राय पिता को,
उसने पाला होगा
बेटे बेटियों को
एक या दो होंगे
हो सकता है कि चार या पाँच हों।
सबको पाला होगा
हाथ से निवाला बनाकर खिलाया होगा
दुलराया और सहलाया होगा
फिर काबिल बनाकर
चैन की साँस ली होगी
बुढापे की लकड़ी
सहारे के लिए तैयार हो गई.
पर पता नहीं कहाँ भूल हुई?
लकड़ी बीच में ही चटक गई
औ' मृतप्राय जनक को सड़क पर पटक गई,
सड़क पर पड़े पड़े
दम तोड़ दी।
लोगों ने झाँका औ' किनारा कर लिया
शाम होने लगी
पुलिस आई औ' मृत्यु प्रमाण-पत्र बनवाकर
मुर्दाघर में लावारिसों में शामिल कर दिया,
लावारिस बना
दो दिन पड़ा रहा शव
बाद में लावारिस ही दफना दिया
पढ़कर यह दर्द कथा
दो ऑंसू टप-टप
गिरे अखबार पर
अनाम श्रद्धांजलि थी
या भविष्य में होनेवाली आशंका का भय
यह तो तय करेगा समय
यह तो तय करेगा समय।
जब ये कविता मेरी छोटी बेटी सोनू ने पढ़ी तो आखिर की लाइनों को पढ़ कर मुझसे सवाल किया था कि ' ये अपने क्या सोच कर लिखा था? वही की आपके बेटे नहीं है तो फिर हम क्या है? दुबारा इसतरह की बात अगर मैंने पढ़ी या सुनी तो फिर ................' इतना कह कर वह चली गयी थी। ईश्वर ऐसी ही सद्बुद्धि सभी बच्चो को प्रदान करे .
आज सुबह के अखबार ने उन गुमनाम हैवान के विषय में जानकारी दी एक बुजुर्ग को उनके परिजन मरणासन्न अवस्था में सड़क पर लिटा गए पास में उनके कपडे एक बैग में थे और पीने के लिए पानी एक डोलची में रखा था लेकिन वह पानी पीने की स्थिति में नहीं थे। वह तो बेहोशी की हालत में थे। फिर किसी इंसान ने उन्हें एक रिक्शे में डाल कर सरकारी अस्पताल में पहुँचाया तो वहां भी एक महान इंसान बैठे हुए थे। बोले क्या सारे लावारिस यही लेकर चले आते हो और बाद में इस बात से इनकार कर दिया। उन्हें किसी तरह से भरती कर दिया गया। पर आत्मा रो दी क्यों रोई ? इसके पीछे कोई भावना तो रहती ही है . फिर अपनी ये एक कविता याद आई जिसे किसी ऐसे ही घटना के क्षणों में मैंने लिखा था --
सुबह का अखबार
जब हाथ में आया
नजर पड़ी
एक तस्वीर पर
फिर उसका शीर्षक पढ़ा
सड़क पर फ़ेंक दिया
किसी सपूत ने
अपने अपाहिज और मृतप्राय पिता को,
उसने पाला होगा
बेटे बेटियों को
एक या दो होंगे
हो सकता है कि चार या पाँच हों।
सबको पाला होगा
हाथ से निवाला बनाकर खिलाया होगा
दुलराया और सहलाया होगा
फिर काबिल बनाकर
चैन की साँस ली होगी
बुढापे की लकड़ी
सहारे के लिए तैयार हो गई.
पर पता नहीं कहाँ भूल हुई?
लकड़ी बीच में ही चटक गई
औ' मृतप्राय जनक को सड़क पर पटक गई,
सड़क पर पड़े पड़े
दम तोड़ दी।
लोगों ने झाँका औ' किनारा कर लिया
शाम होने लगी
पुलिस आई औ' मृत्यु प्रमाण-पत्र बनवाकर
मुर्दाघर में लावारिसों में शामिल कर दिया,
लावारिस बना
दो दिन पड़ा रहा शव
बाद में लावारिस ही दफना दिया
पढ़कर यह दर्द कथा
दो ऑंसू टप-टप
गिरे अखबार पर
अनाम श्रद्धांजलि थी
या भविष्य में होनेवाली आशंका का भय
यह तो तय करेगा समय
यह तो तय करेगा समय।
जब ये कविता मेरी छोटी बेटी सोनू ने पढ़ी तो आखिर की लाइनों को पढ़ कर मुझसे सवाल किया था कि ' ये अपने क्या सोच कर लिखा था? वही की आपके बेटे नहीं है तो फिर हम क्या है? दुबारा इसतरह की बात अगर मैंने पढ़ी या सुनी तो फिर ................' इतना कह कर वह चली गयी थी। ईश्वर ऐसी ही सद्बुद्धि सभी बच्चो को प्रदान करे .
उत्कृष्ट प्रस्तुति शुक्रवार के चर्चा मंच पर ।।
जवाब देंहटाएंआइये पाठक गण स्वागत है ।।
लिंक किये गए किसी भी पोस्ट की समालोचना लिखिए ।
यह समालोचना सम्बंधित पोस्ट की लिंक पर लगा दी जाएगी 11 AM पर ।।
भावमय करते शब्दों का संगम ... आभार
जवाब देंहटाएंक्या कहें रेखा जी ..सबको सद्बुद्धि दे भगवान.
जवाब देंहटाएंहे भगवान, कहाँ पहुँच गये हैं हम..
जवाब देंहटाएंआपकी संवेदनशीलता का मैं कायल हो चला हूँ. आप भाग्यशाली है.
जवाब देंहटाएंअच्छा लिखा है
जवाब देंहटाएंसत्य लिखा है :
कुछ नहीं है इतिहास है
अपने को दोहरा रहा है
संवेदनाऎं मर रही हैं
आदमी अब वापस
अपनी पुरानी अवस्था
पर जाना चाह रहा है
जानवर से शुरू हुआ था
उसका जो विकास
उसी जानवर को
अपने अंदर पुन:
जगा रहा है
सुन्दर शिक्षाप्रद प्रस्तुति।
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