उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अपनी युवा सोच के प्रयोग का प्रयास कर रहे या फिर राजनीतिक निर्णयों की उलटफेर कर पिछली सरकार के कदमों पर चलने का प्रयास कर रहे हैं। प्रदेश का पिछले वर्षों क्या विकास हुआ इससे हर वाकिफ है . सिर्फ प्रदेश का सुन्दरीकरण हुआ , जिलों के नाम बदल कर अपने पूर्वाग्रह से ग्रसित होने की बात की पुष्टि की गयी। उनका ख्याल था कि प्रदेश के इतिहास में याद रखा जाएगा की मायावती जी ने इन प्रदेशों के नाम रखे थे। अब वही काम अखिलेश यादव करने जा रहे हैं कि वह जिलों के पुराने नाम बहाल करने जा रहे हैं। प्रदेश का खजाना पहले ही पार्कों और पत्थरों में खाली हो चुका है। एक बार जिलों का नाम बदला जाता है तो फिर लाखों रुपये का खर्च बढ़ जाता है। हर जिले में उसके नाम के प्रयोग किया जाने स्टेशनरी दस्तावेज कार्यालयों और मुख्य मुख्य स्थानों पर लगाये जाने वाले बोर्ड, होर्डिन्ग आदि पर आने वाला खर्च पुराने नाम से होने पर व्यर्थ हो जाता है और नए नाम से पुनः निर्मित में करवाने में उससे कई गुना ज्यादा खर्च .होगा . क्या हर पांच साल बाद इसी तरह से प्रदेश अपने नए शासक की इच्छानुसार अपनी पहचान बदलता रहेगा और पैसे की बर्बादी होती रहेगी क्योंकि यहाँ तो अपने अहम् का उठ खड़ा हुआ है।
कुछ सार्थक और जनहित में प्रदेश में परिवर्तन किया जाय तो बात बुद्धिमानी की बात कही जायेगी। जो लाखों रुपये नाम बहाल करने पर खर्च किये जायेंगे , अगर उनके स्थान पर खुले में सड रहे गल्ले को सुरक्षित करने में किया जाता तो प्रदेश में अन्न की कमी और महंगाई को कुछ कम किया जा सकता है। जो शहर की सडकों की खस्ताहाल स्थिति है उसको ठीक करने में खर्च किया जाना ज्यादा जरूरी है। प्रदेश के विकास में सार्थक कदम और निर्णय लेने की महती आवश्यकता है न कि ये गैर जरूरी कामों को करने में। प्रदेश में प्राथमिक विद्यालयों की स्थिति खस्ताहाल है , ये बात मुख्यमंत्री तक पहुँच रही होगी . फिर क्या ऐसे गैर जरूरी कामों के पीछे उनके खास सलाहकारों का कोई स्वार्थ जुड़ा हुआ है. अगर नहीं तो फिर एक युवा और विचारशील व्यक्ति ऐसे निर्णय क्यों ले रहा है? वह इस प्रदेश का मुखिया है फिर उसे समस्याएं नीचे उतर कर देखनी चाहिए . उनके अनुसार लखनऊ से कानपुर तक के राजमार्ग के सुन्दरीकरण में करोड़ों रुपये लगाये जायेंगे , अरे पहले प्रदेश के अन्दर मुख्य शहरों के मार्ग को चलने काबिल बनाने की बात सोचिये . सुन्दरीकरण तब अच्छा लगता है जब सारे मार्ग सुगम रूप से चलने के काबिल हों। वही गलती न दुहरायें जो पिछली सरकार करती रही थी।
अपने सलाहकारों को मान दें लेकिन ऐसे नहीं कि अपने निर्णय को वापस लेना पड़े और जो अपनी ही छवि को धूमिल करने वाला हो।
कुछ सार्थक और जनहित में प्रदेश में परिवर्तन किया जाय तो बात बुद्धिमानी की बात कही जायेगी। जो लाखों रुपये नाम बहाल करने पर खर्च किये जायेंगे , अगर उनके स्थान पर खुले में सड रहे गल्ले को सुरक्षित करने में किया जाता तो प्रदेश में अन्न की कमी और महंगाई को कुछ कम किया जा सकता है। जो शहर की सडकों की खस्ताहाल स्थिति है उसको ठीक करने में खर्च किया जाना ज्यादा जरूरी है। प्रदेश के विकास में सार्थक कदम और निर्णय लेने की महती आवश्यकता है न कि ये गैर जरूरी कामों को करने में। प्रदेश में प्राथमिक विद्यालयों की स्थिति खस्ताहाल है , ये बात मुख्यमंत्री तक पहुँच रही होगी . फिर क्या ऐसे गैर जरूरी कामों के पीछे उनके खास सलाहकारों का कोई स्वार्थ जुड़ा हुआ है. अगर नहीं तो फिर एक युवा और विचारशील व्यक्ति ऐसे निर्णय क्यों ले रहा है? वह इस प्रदेश का मुखिया है फिर उसे समस्याएं नीचे उतर कर देखनी चाहिए . उनके अनुसार लखनऊ से कानपुर तक के राजमार्ग के सुन्दरीकरण में करोड़ों रुपये लगाये जायेंगे , अरे पहले प्रदेश के अन्दर मुख्य शहरों के मार्ग को चलने काबिल बनाने की बात सोचिये . सुन्दरीकरण तब अच्छा लगता है जब सारे मार्ग सुगम रूप से चलने के काबिल हों। वही गलती न दुहरायें जो पिछली सरकार करती रही थी।
अपने सलाहकारों को मान दें लेकिन ऐसे नहीं कि अपने निर्णय को वापस लेना पड़े और जो अपनी ही छवि को धूमिल करने वाला हो।
अखिलेश अभी नए हैं। दो चार बार मुख्यमंत्री बन जाएंगे तो वह उत्तर प्रदेश को अच्छी तरह ख़ुशहाल बना देंगे। उनके वालिद साहब ने भी उत्तर प्रदेश की तरक्की में अपना पूरा जीवन खपा दिया है।
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट का प्रिंट निकाल कर मुख्यमंत्री साहब को डाक से भेजें। जिनके लिए आपने लिखा है। अगर उन्होंने ही आपका मज़मून नहीं पढ़ा तो फिर यह लिखना बेकार जाएगा।
सहमति है आपसे।
जवाब देंहटाएंव्यक्ति के पास जितनी अक्ल होती है वह उतना ही कार्य कर सकता है।
जवाब देंहटाएंअजित जी,
हटाएंऐसी बात नहीं है बल्कि मुख्यमंत्री जी के सुयोग्य सलाहकारों की सलाह पर आँखें मूँद कर अमल करने पर कुछ ऐसी ही स्थिति सामने आ जाती है. युवा मुख्यमंत्री से जो आशाएं की जाती हें कि वह प्रदेश के हालात से वाकिफ हें और उस पर विचारपूर्ण ढंग से कार्य करने की योजना बनायेंगे न कि पहले निर्णय लें और बाद में वापस लें उनकी ही छवि को धूमिल करता है.
सुन्दरी कारण के इलावा विधायकों के लिये बीस बीस लाख की गाडी! जहाँ लोग भूखे मर रहे हों वहाँ जनता के प्रतिनिधियों का ये हाळ?शर्म आती है ऐसे नेताओं पर।
जवाब देंहटाएंहाँ निर्मला जी, मुख्यमंत्री जी को कुछ विधायक इतने गरीब लग रहे थे कि उनके जनसंपर्क के लिए आने जाने के लिए २० लाख की गाड़ी का प्रस्ताव रखा था. ये भूल गए कि जो चुनाव लड़ता है वह चुनाव में लाखों रुपये खर्च करके विधान सभा में पहुँचते हें फिर गरीब कौन है? इसका आकलन तो मुख्यमंत्री जी जो कर लेने की क्षमता है ही. लेकिन इसके पीछे कोई बड़ी साजिस होगी और सार्वजनिक विरोध के चलाते ये निर्णय वापस ले लिया गया.
हटाएंएक और सार्थक पोस्ट पढ़ने को मिली ...
जवाब देंहटाएंबस ये ही कहूँगी कि अक्ल बड़ी या भैंस ....