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सोमवार, 18 मार्च 2013

हौसले को सलाम (५)

                  जिन्दगी सबकी  में  अपने अपने नजरिये का एक स्वरूप होती है. दूसरे की जिन्दगी  किसी के लिए उपहास का  कभी  का सबब  जाती है लेकिन  जिन्दगी खुद  लिए   है?और  उसने किस  से जिया और किस तरह से उससे जूझ कर अपने और अपने  के लिए रस्ते बनाये यह तो वही बता सकता है. हम सिर्फ उसके   जानकर उसको व्यक्त कर सकते है। आज एक संघर्ष गाथा की प्रस्तुति है गुंजन श्रीवास्तव  की . 



मुझे याद है ...वो मिली थीं मुझे एक यज्ञ समारोह में .....स्टोर का सामान सहेजती हुई ..... बड़े घर की सभ्रांत महिला थीं ....कुछ दिन साथ रहे तो निकटता हो गयी ....एक बार कटनी से गुज़रीं तो मैंने घर पर आमंत्रित कर लिया .... साथ बैठे तो पुरानी यादों की पोटली खुल गयी ....वो मायके से बहुत बड़े घर की थीं ....अब तो सब उन्हें अम्माजी कहते थे .... तो मैं भी उन्हें अम्माजी कहने लगी ....उनका ब्याह भी सम्पन्न घर में हुआ था ....पर छोटी जगह और परदे में बहुओं को रखा जाता था .....यहाँ तक कि साड़ी वाले , चूड़ी वाले और सुनार भी अपनी दूकान लेकर घर आते थे .....पति के साथ सुख से रह रही थीं और बिजनेस पति और नंदोई मिलकर संभाल रहे थे ......सब कुछ बहुत अच्छा था ...अचानक पति को बुखार आया ....छोटी जगह पर पर्याप्त इलाज के अभाव में वो स्वर्गवासी हो गए ... उस समय अम्माजी की उम्र मात्र 30 साल थी और बड़ा बेटा 11 साल का जबकि छोटा बेटा मात्र 6 साल का था ....बड़ी दो बेटियाँ भी थीं ....पति के निधन के बाद नंदोई का रवईया बेईमानी भरा था ....पर अम्माजी ने कभी उन्हें व्यापार से अलग नहीं किया ...वो कहते थे पूरा व्यापार मेरे नाम कर दो पर अम्माजी कहती थीं की जब मेरे बच्चे बड़े होंगे तो कहाँ जायेंगे ...नंदोई आये दिन दूकान बंद करने की धमकी देते ...अम्माजी उन्हें मना लेतीं .....जैसे तैसे उन्होंने 3 साल गुज़ारे .....बेटे को ग्यारहवीं तक पढ़ने दिया ....उसके बाद उन्होंने अपने बेटे से कहा ....अब तुम गद्दी सँभालो ......बेटे की पढ़ाई छुडाने के दुःख में अम्माजी खूब रोयीं .... बेटियों की शादी उन्होंने अच्छा घर न देखकर बल्कि अच्छा लड़का देखकर कर दी ... सारे समाचार पत्र घर मँगवाती थीं ...ताकि देश और दुनिया की खबरें परदे के भीतर भी आ पायें .... बेटे बेटियों दोनों को घर , बाहर के सारे काम भी सिखाये और अच्छे संस्कार भी दिए ...बेटे को ऊँची तालीम न दिला पाने का प्रायश्चित कुछ इस तरह किया कि शहर में एक कन्या महा विद्यालय खोला जो अभी भी चल रहा है .. उनका कहना है कि कब कैसा वक़्त आये कोई नहीं जानता इसलिए हर लड़की को आत्म निर्भर ज़रूर होना चाहिए ...खुद समाज सेवी संस्थाओं में जाकर यथा सम्भव मदद करती हैं ...बहुत सादा जीवन व्यतीत किया पर कभी किसी से कर्ज नहीं लिया ......हमेशा आवश्यकतों को सीमित रखा ....उनका कहना था ''न कूदकर चलो न मुँह के बल गिरो'' .....व्यवहार ऐसा कि हर किसी को लगता है की वही उनके लिए ख़ास है ..... उनका वह विश्वास कि मैं दूसरे के सहारे हूँ .....अगर व्यापार से मिले 80 पैसे भी वो ले लेगा तो भी 20 पैसे तो मेरे बच्चों के लिए मिलेंगे ......अपनाने लायक है .....आज भी पूरे गाँव में उनका बहुत सम्मान है ।।

10 टिप्‍पणियां:

  1. गुंजन जी आप अपने ब्लॉग के टेम्पलेट की चौड़ाई को समायोजित करनें कि कृपा करें ! अभी चौड़ाई सही नहीं होनें के कारण शब्द कट रहें हैं जिसके कारण सही तरीके से पढ़ा नहीं जा रहा है !!

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  2. han dhang se padh nahi pa rahe hain side se kat raha hai .............vaise samajh to aa gaya hai wakai thodi buddhimatta se insaan jeevan ki kathin se kathin rahon ko saral kar leta hai.

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  3. मुझे याद है ...वो मिली थीं मुझे एक यज्ञ समारोह में .....स्टोर का सामान सहेजती हुई ..... बड़े घर की सभ्रांत महिला थीं ....कुछ दिन साथ रहे तो निकटता हो गयी ....एक बार कटनी से गुज़रीं तो मैंने घर पर आमंत्रित कर लिया .... साथ बैठे तो पुरानी यादों की पोटली खुल गयी ....वो मायके से बहुत बड़े घर की थीं ....अब तो सब उन्हें अम्माजी कहते थे .... तो मैं भी उन्हें अम्माजी कहने लगी ....उनका ब्याह भी सम्पन्न घर में हुआ था ....पर छोटी जगह और परदे में बहुओं को रखा जाता था .....यहाँ तक कि साड़ी वाले , चूड़ी वाले और सुनार भी अपनी दूकान लेकर घर आते थे .....पति के साथ सुख से रह रही थीं और बिजनेस पति और नंदोई मिलकर संभाल रहे थे ......सब कुछ बहुत अच्छा था ...अचानक पति को बुखार आया ....छोटी जगह पर पर्याप्त इलाज के अभाव में वो स्वर्गवासी हो गए ... उस समय अम्माजी की उम्र मात्र 30 साल थी और बड़ा बेटा 11 साल का जबकि छोटा बेटा मात्र 6 साल का था ....बड़ी दो बेटियाँ भी थीं ....पति के निधन के बाद नंदोई का रवईया बेईमानी भरा था ....पर अम्माजी ने कभी उन्हें व्यापार से अलग नहीं किया ...वो कहते थे पूरा व्यापार मेरे नाम कर दो पर अम्माजी कहती थीं की जब मेरे बच्चे बड़े होंगे तो कहाँ जायेंगे ...नंदोई आये दिन दूकान बंद करने की धमकी देते ...अम्माजी उन्हें मना लेतीं .....जैसे तैसे उन्होंने 3 साल गुज़ारे .....बेटे को ग्यारहवीं तक पढ़ने दिया ....उसके बाद उन्होंने अपने बेटे से कहा ....अब तुम गद्दी सँभालो ......बेटे की पढ़ाई छुडाने के दुःख में अम्माजी खूब रोयीं .... बेटियों की शादी उन्होंने अच्छा घर न देखकर बल्कि अच्छा लड़का देखकर कर दी ... सारे समाचार पत्र घर मँगवाती थीं ...ताकि देश और दुनिया की खबरें परदे के भीतर भी आ पायें .... बेटे बेटियों दोनों को घर , बाहर के सारे काम भी सिखाये और अच्छे संस्कार भी दिए ...बेटे को ऊँची तालीम न दिला पाने का प्रायश्चित कुछ इस तरह किया कि शहर में एक कन्या महा विद्यालय खोला जो अभी भी चल रहा है .. उनका कहना है कि कब कैसा वक़्त आये कोई नहीं जानता इसलिए हर लड़की को आत्म निर्भर ज़रूर होना चाहिए ...खुद समाज सेवी संस्थाओं में जाकर यथा सम्भव मदद करती हैं ...बहुत सादा जीवन व्यतीत किया पर कभी किसी से कर्ज नहीं लिया ......हमेशा आवश्यकतों को सीमित रखा ....उनका कहना था ''न कूदकर चलो न मुँह के बल गिरो'' .....व्यवहार ऐसा कि हर किसी को लगता है की वही उनके लिए ख़ास है ..... उनका वह विश्वास कि मैं दूसरे के सहारे हूँ .....अगर व्यापार से मिले 80 पैसे भी वो ले लेगा तो भी 20 पैसे तो मेरे बच्चों के लिए मिलेंगे ......अपनाने लायक है .....आज भी पूरे गाँव में उनका बहुत सम्मान है ।।

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  4. मुझे याद है ...वो मिली थीं मुझे एक यज्ञ समारोह में .....स्टोर का सामान सहेजती हुई ..... बड़े घर की सभ्रांत महिला थीं ....कुछ दिन साथ रहे तो निकटता हो गयी ....एक बार कटनी से गुज़रीं तो मैंने घर पर आमंत्रित कर लिया .... साथ बैठे तो पुरानी यादों की पोटली खुल गयी ....वो मायके से बहुत बड़े घर की थीं ....अब तो सब उन्हें अम्माजी कहते थे .... तो मैं भी उन्हें अम्माजी कहने लगी ....उनका ब्याह भी सम्पन्न घर में हुआ था ....पर छोटी जगह और परदे में बहुओं को रखा जाता था .....यहाँ तक कि साड़ी वाले , चूड़ी वाले और सुनार भी अपनी दूकान लेकर घर आते थे .....पति के साथ सुख से रह रही थीं और बिजनेस पति और नंदोई मिलकर संभाल रहे थे ......सब कुछ बहुत अच्छा था ...अचानक पति को बुखार आया ....छोटी जगह पर पर्याप्त इलाज के अभाव में वो स्वर्गवासी हो गए ... उस समय अम्माजी की उम्र मात्र 30 साल थी और बड़ा बेटा 11 साल का जबकि छोटा बेटा मात्र 6 साल का था ....बड़ी दो बेटियाँ भी थीं ....पति के निधन के बाद नंदोई का रवईया बेईमानी भरा था ....पर अम्माजी ने कभी उन्हें व्यापार से अलग नहीं किया ...वो कहते थे पूरा व्यापार मेरे नाम कर दो पर अम्माजी कहती थीं की जब मेरे बच्चे बड़े होंगे तो कहाँ जायेंगे ...नंदोई आये दिन दूकान बंद करने की धमकी देते ...अम्माजी उन्हें मना लेतीं .....जैसे तैसे उन्होंने 3 साल गुज़ारे .....बेटे को ग्यारहवीं तक पढ़ने दिया ....उसके बाद उन्होंने अपने बेटे से कहा ....अब तुम गद्दी सँभालो ......बेटे की पढ़ाई छुडाने के दुःख में अम्माजी खूब रोयीं .... बेटियों की शादी उन्होंने अच्छा घर न देखकर बल्कि अच्छा लड़का देखकर कर दी ... सारे समाचार पत्र घर मँगवाती थीं ...ताकि देश और दुनिया की खबरें परदे के भीतर भी आ पायें .... बेटे बेटियों दोनों को घर , बाहर के सारे काम भी सिखाये और अच्छे संस्कार भी दिए ...बेटे को ऊँची तालीम न दिला पाने का प्रायश्चित कुछ इस तरह किया कि शहर में एक कन्या महा विद्यालय खोला जो अभी भी चल रहा है .. उनका कहना है कि कब कैसा वक़्त आये कोई नहीं जानता इसलिए हर लड़की को आत्म निर्भर ज़रूर होना चाहिए ...खुद समाज सेवी संस्थाओं में जाकर यथा सम्भव मदद करती हैं ...बहुत सादा जीवन व्यतीत किया पर कभी किसी से कर्ज नहीं लिया ......हमेशा आवश्यकतों को सीमित रखा ....उनका कहना था ''न कूदकर चलो न मुँह के बल गिरो'' .....व्यवहार ऐसा कि हर किसी को लगता है की वही उनके लिए ख़ास है ..... उनका वह विश्वास कि मैं दूसरे के सहारे हूँ .....अगर व्यापार से मिले 80 पैसे भी वो ले लेगा तो भी 20 पैसे तो मेरे बच्चों के लिए मिलेंगे ......अपनाने लायक है .....आज भी पूरे गाँव में उनका बहुत सम्मान है ।।

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  5. मुझे याद है ...वो मिली थीं मुझे एक यज्ञ समारोह में .....स्टोर का सामान सहेजती हुई ..... बड़े घर की सभ्रांत महिला थीं ....कुछ दिन साथ रहे तो निकटता हो गयी ....एक बार कटनी से गुज़रीं तो मैंने घर पर आमंत्रित कर लिया .... साथ बैठे तो पुरानी यादों की पोटली खुल गयी ....वो मायके से बहुत बड़े घर की थीं ....अब तो सब उन्हें अम्माजी कहते थे .... तो मैं भी उन्हें अम्माजी कहने लगी ....उनका ब्याह भी सम्पन्न घर में हुआ था ....पर छोटी जगह और परदे में बहुओं को रखा जाता था .....यहाँ तक कि साड़ी वाले , चूड़ी वाले और सुनार भी अपनी दूकान लेकर घर आते थे .....पति के साथ सुख से रह रही थीं और बिजनेस पति और नंदोई मिलकर संभाल रहे थे ......सब कुछ बहुत अच्छा था ...अचानक पति को बुखार आया ....छोटी जगह पर पर्याप्त इलाज के अभाव में वो स्वर्गवासी हो गए ... उस समय अम्माजी की उम्र मात्र 30 साल थी और बड़ा बेटा 11 साल का जबकि छोटा बेटा मात्र 6 साल का था ....बड़ी दो बेटियाँ भी थीं ....पति के निधन के बाद नंदोई का रवईया बेईमानी भरा था ....पर अम्माजी ने कभी उन्हें व्यापार से अलग नहीं किया ...वो कहते थे पूरा व्यापार मेरे नाम कर दो पर अम्माजी कहती थीं की जब मेरे बच्चे बड़े होंगे तो कहाँ जायेंगे ...नंदोई आये दिन दूकान बंद करने की धमकी देते ...अम्माजी उन्हें मना लेतीं .....जैसे तैसे उन्होंने 3 साल गुज़ारे .....बेटे को ग्यारहवीं तक पढ़ने दिया ....उसके बाद उन्होंने अपने बेटे से कहा ....अब तुम गद्दी सँभालो ......बेटे की पढ़ाई छुडाने के दुःख में अम्माजी खूब रोयीं .... बेटियों की शादी उन्होंने अच्छा घर न देखकर बल्कि अच्छा लड़का देखकर कर दी ... सारे समाचार पत्र घर मँगवाती थीं ...ताकि देश और दुनिया की खबरें परदे के भीतर भी आ पायें .... बेटे बेटियों दोनों को घर , बाहर के सारे काम भी सिखाये और अच्छे संस्कार भी दिए ...बेटे को ऊँची तालीम न दिला पाने का प्रायश्चित कुछ इस तरह किया कि शहर में एक कन्या महा विद्यालय खोला जो अभी भी चल रहा है .. उनका कहना है कि कब कैसा वक़्त आये कोई नहीं जानता इसलिए हर लड़की को आत्म निर्भर ज़रूर होना चाहिए ...खुद समाज सेवी संस्थाओं में जाकर यथा सम्भव मदद करती हैं ...बहुत सादा जीवन व्यतीत किया पर कभी किसी से कर्ज नहीं लिया ......हमेशा आवश्यकतों को सीमित रखा ....उनका कहना था ''न कूदकर चलो न मुँह के बल गिरो'' .....व्यवहार ऐसा कि हर किसी को लगता है की वही उनके लिए ख़ास है ..... उनका वह विश्वास कि मैं दूसरे के सहारे हूँ .....अगर व्यापार से मिले 80 पैसे भी वो ले लेगा तो भी 20 पैसे तो मेरे बच्चों के लिए मिलेंगे ......अपनाने लायक है .....आज भी पूरे गाँव में उनका बहुत सम्मान है ।।

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  6. महिलाओं में इसी आत्‍मविश्‍वास और समझदारी की आवश्‍यकता है। फिर कोई कितना भी ताकतवर क्‍यों न हो, महिला को हरा नहीं सकता।

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  7. इसीलिए तो ऊपर वाले ने नारी को छठी इन्द्रियां मुश्किल हालात में निपटने के ही दिया है क्योंकि मुश्किल हालात में पुरुष जल्द ही विवेक से डगमगा जाते हैं ,पर नारी का विवेक सही फैसला ले लेता है |

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  8. नारी अपनी कमजोरियों के कारण ही अबला है, जिद में आने के बाद वो क्या नहीं कर सकती है |

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ये मेरा सरोकार है, इस समाज , देश और विश्व के साथ . जो मन में होता है आपसे उजागर कर देते हैं. आपकी राय , आलोचना और समालोचना मेरा मार्गदर्शन और त्रुटियों को सुधारने का सबसे बड़ा रास्ताहै.