जिन्दगी जितने लोगों की हैं उसके उतने ही रंग देखने को मिलते हैं यह बात नारी में ही देखने को मिलाती है की वह कितने धैर्य से अपने गिरे संघर्ष के दिनों को हौसले से काट कर निकल आती है और तभी तो उसके हौसले को सलाम करने का मन होता है. जब हम औरों के संघर्ष हैं तो लगता है की अगर हमने अपने जीवन में संघर्ष किया है तो उसके आगे बौना सा लगता है या बड़ा भी हो तो हौसला हमें भी मिलता है.
आज की इस व्यक्तित्व की प्रस्तुति दे रही हैं नीलिमा शर्मा जी .
नीरू दी !! हाँ यही तो नाम था उनका ... मेरी बहन की सहेली नीरा ... प्यारी सी सूरत ....... शायद कवियों की सारी उपमाये उनको ही समर्पित होती थी .... तीन भाइयो की छोटी बहन ... जुड़वाँ बहन मीरा के साथ पैदा हुए थी परन्तु ईश्वर ने इनको ही उम्र का वरदान दिया था ... सातवे दशक में जब लडकिया कम ही को - एड कालेज में पढ़ती थी उस वक़्त में नीरू दी जब कालेज जाती थी तो कई दिल आहे भरते थे सुन्दरता और सहजता - सरलता का ऐसा अनोखा संगम कम ही देखने को मिलता था उस वक़्त मैं यही कोई पांचवी छठी में पढ़ती थी . मेरी दी और नीरू दी अक्सर गप्पे लड़ाती थी और मुझसे चाय बनवाई जाती थी बदले में मुझे उन दोनों की चप्पल पहने को मिलती थी या कोई भी नई माला . या टॉप्स .उस उम्र में ख्वाहिशे भी कितनी होती हैं ,बड़ी बहनों के सामान पर अधिकार ज़माना बहुत अच्छा लगता था कभी लगता ही नही था कि वो बहन की सहेली हैं ...छोटी बहन की तरह उनसे जमकर लडाई झगड़ा करना आदतों में शुमार था .... अभी बीए फाइनल में ही आई थी मेरी सबसे बड़ी बहन के पति अपने दोस्त का रिश्ता नीरू दी के लिय ले आये लड़का बैंक में ऑफिसर , दो भाई एक बहन की फॅमिली , चंडीगढ़ जैसा शहर .. बस नीरू दी की बीजी को सब कुछ पसंद आ गया और तीन महीनो में दी की शादी भी हो गयी दीपक जीजू बहुत ही अच्छे ..लगे मुझे कम ही बात करती थी मैं उनसे लेकिन सब से जितना सुना अच्छा ही लगता था . दी शादी के बाद और भी प्यारी लगने लगी बीच - बीच में बडी दी आकर बताती कि नीरू दी की सास से नही बन रही .... दादी उनको ज्यादा प्यार करती हैं या उनकी ननद उनको परेशान करती हैं
लाड़ - प्यार से पली दी अब सिर्फ घरेलू महिला बनकर रह गयी सास उस ज़माने में भी ताश पार्टिया - किटी पार्टिया करती थी .... आधुनिकता में भी भी रूढ़िवादिता कि बहु सारा घर सम्हाले .. छोटी छोटी बाते जब बढ़कर कलह का रूप लेने लगी तो जीजू के डैडी ने जीजू से कही बाहर तबादला करने को कह दिया और जीजू का ट्रांसफर अहमदाबाद हो गया तब तक दी दो-दो बेटो की माँ बन चुकी थी
बैंक में कiम का प्रेशर बढ़ रहा था ,परन्तु उस हिसाब से पैसा नही मिलता था . गुजराती लोगो के बीच जीजू को भी ज्यादा पैसे कमाने की ललक उठी और चिट फंड का काम शुरू कर दिया बैंक की नौकरी छोड़ कर . इधर दी ने भी गुजराती लोगो के शहर में अपना पंजाबी सुट्स बनाने का बुटीक खोल लिया ... दी की मीठे बोली और उनका अप्रितम सौन्दय आस पास की महिलाओ को अपनी और खीचने लगा धीरे धीरे दी का काम चल निकला बच्चे भी स्कूल में जाने लगे दी ने जीजू से कहा के आप अपने काम पर ध्यान दे घर मैं चला लूंगी . तीन साल बीत गये , दी का बुटीक अच्छे से चलने लगा था इधर पैसे कमाने के चक्कर में न जाने जीजू कहा चूक गये बाकी हिस्से दार उनको धोखा देकर सारा पैसा हड़प गये और जीजू को सब लोगो ने घेर लिया कि हमारा पैसा वापिस दो .घर के बाहर नारे लगने लगे पुलिस में कंप्लेंन की गयी और दी से बात करने का भी मौका नही मिला और जीजू सलाखों के पीछे डाल दिए गये .... दो बच्चे . जहाँ कोई अपना नही . सब ताने मारने वाले के इसका पति सारा पैसा खा गया बड़ी पैसे वाली बनती थी .ऐसे वक़्त में ससुराल वाले भी और मायके वाले भी महज तमाशबीन बनकर खड़े हो गये थे . दी ने अपना सारा गोल्ड बेच दिया सब कुछ बेचकर लोगो को उनका पैसा वापिस किया और जीजू के साथ जा खड़ी हुए जीजू को आजीवन कारावास सुनाया गया 14 साल की सजा सुनकर भी दी नही टूटी और बच्चो को हौसला दिया और दूर दिल्ली पढने भेज दिया बिना किसी रिश्तेदार का सहारा लिए . बच्चे भी समझदार थे माँ का दर्द जानते थे . पढ़ लिखकर बहुत ही उच्चे पद पर आसीन हैं .... दोनों बच्चे आज गुडगाँव में रहते हैं .... दी ने जीजू के बिना ही बड़े बेटे की शादी की ... उनकी बहु एक प्राइवेट बैंक की चीफ मेनेजर हैं ... दी का काम आज भी बहुत अच्छे से चल रहे हैं .... जिस अनजान शहर ने उनको गालियाँ दी थी आज उनकी मेहनत की तारीफ करते नही थकता हैं जीजू अब जेल से आने वाले है अगले साल तो दी अब बच्चो के पास दिल्ली शिफ्ट करना चाहती हैं परन्तु उस से पहले वो अपने आपको आर्थिक रूप से सुदृढ़ करना चाहती हैं ताकि बच्चो पर बोझ न बने . यह सब मुझे अभी पिछले ही हफ्ते दी से बात करने पर पता चला जब उनको अचानक करोल बाग में घुमते देखा .... 50 साल की दी ने 30 साल की शादीशुदा जिन्दगी में न जाने कितने रंग देख लिए थे वक़्त के साथ अपनों का अपनापन भी ....और मुझे ऐसे गले मिली कि जैसे हम बचपन में मिलते थे और वही बहस भी हुआ कि कहाँ थी इतने साल :)) सच में ,दी के हौसले को प्रणाम की ... उन्होंने अपने पति का साथ नही छोडा बच्चो को अच्छे संस्कार भी दिए और अपने को आर्थिक रूप से मजबूत भी बनाया ..... नारीवाद का झंडा उठाकर अपने पति पर आरोप , दी भी लगा सकती थी ,परन्तु उन्होंने उन हिस्सेदारों को भी माफ़ कर दिया उनके संस्कार ऐसे थे . कहकर ..... कोइ कुछ भी कहे मैं तो यही कहूँगी की यह होती हैं नारी जो सब त्याग भी करती हैं और उनका बखान भी नही करती .
आज की इस व्यक्तित्व की प्रस्तुति दे रही हैं नीलिमा शर्मा जी .
नीलिमा शर्मा |
नीरू दी !! हाँ यही तो नाम था उनका ... मेरी बहन की सहेली नीरा ... प्यारी सी सूरत ....... शायद कवियों की सारी उपमाये उनको ही समर्पित होती थी .... तीन भाइयो की छोटी बहन ... जुड़वाँ बहन मीरा के साथ पैदा हुए थी परन्तु ईश्वर ने इनको ही उम्र का वरदान दिया था ... सातवे दशक में जब लडकिया कम ही को - एड कालेज में पढ़ती थी उस वक़्त में नीरू दी जब कालेज जाती थी तो कई दिल आहे भरते थे सुन्दरता और सहजता - सरलता का ऐसा अनोखा संगम कम ही देखने को मिलता था उस वक़्त मैं यही कोई पांचवी छठी में पढ़ती थी . मेरी दी और नीरू दी अक्सर गप्पे लड़ाती थी और मुझसे चाय बनवाई जाती थी बदले में मुझे उन दोनों की चप्पल पहने को मिलती थी या कोई भी नई माला . या टॉप्स .उस उम्र में ख्वाहिशे भी कितनी होती हैं ,बड़ी बहनों के सामान पर अधिकार ज़माना बहुत अच्छा लगता था कभी लगता ही नही था कि वो बहन की सहेली हैं ...छोटी बहन की तरह उनसे जमकर लडाई झगड़ा करना आदतों में शुमार था .... अभी बीए फाइनल में ही आई थी मेरी सबसे बड़ी बहन के पति अपने दोस्त का रिश्ता नीरू दी के लिय ले आये लड़का बैंक में ऑफिसर , दो भाई एक बहन की फॅमिली , चंडीगढ़ जैसा शहर .. बस नीरू दी की बीजी को सब कुछ पसंद आ गया और तीन महीनो में दी की शादी भी हो गयी दीपक जीजू बहुत ही अच्छे ..लगे मुझे कम ही बात करती थी मैं उनसे लेकिन सब से जितना सुना अच्छा ही लगता था . दी शादी के बाद और भी प्यारी लगने लगी बीच - बीच में बडी दी आकर बताती कि नीरू दी की सास से नही बन रही .... दादी उनको ज्यादा प्यार करती हैं या उनकी ननद उनको परेशान करती हैं
लाड़ - प्यार से पली दी अब सिर्फ घरेलू महिला बनकर रह गयी सास उस ज़माने में भी ताश पार्टिया - किटी पार्टिया करती थी .... आधुनिकता में भी भी रूढ़िवादिता कि बहु सारा घर सम्हाले .. छोटी छोटी बाते जब बढ़कर कलह का रूप लेने लगी तो जीजू के डैडी ने जीजू से कही बाहर तबादला करने को कह दिया और जीजू का ट्रांसफर अहमदाबाद हो गया तब तक दी दो-दो बेटो की माँ बन चुकी थी
बैंक में कiम का प्रेशर बढ़ रहा था ,परन्तु उस हिसाब से पैसा नही मिलता था . गुजराती लोगो के बीच जीजू को भी ज्यादा पैसे कमाने की ललक उठी और चिट फंड का काम शुरू कर दिया बैंक की नौकरी छोड़ कर . इधर दी ने भी गुजराती लोगो के शहर में अपना पंजाबी सुट्स बनाने का बुटीक खोल लिया ... दी की मीठे बोली और उनका अप्रितम सौन्दय आस पास की महिलाओ को अपनी और खीचने लगा धीरे धीरे दी का काम चल निकला बच्चे भी स्कूल में जाने लगे दी ने जीजू से कहा के आप अपने काम पर ध्यान दे घर मैं चला लूंगी . तीन साल बीत गये , दी का बुटीक अच्छे से चलने लगा था इधर पैसे कमाने के चक्कर में न जाने जीजू कहा चूक गये बाकी हिस्से दार उनको धोखा देकर सारा पैसा हड़प गये और जीजू को सब लोगो ने घेर लिया कि हमारा पैसा वापिस दो .घर के बाहर नारे लगने लगे पुलिस में कंप्लेंन की गयी और दी से बात करने का भी मौका नही मिला और जीजू सलाखों के पीछे डाल दिए गये .... दो बच्चे . जहाँ कोई अपना नही . सब ताने मारने वाले के इसका पति सारा पैसा खा गया बड़ी पैसे वाली बनती थी .ऐसे वक़्त में ससुराल वाले भी और मायके वाले भी महज तमाशबीन बनकर खड़े हो गये थे . दी ने अपना सारा गोल्ड बेच दिया सब कुछ बेचकर लोगो को उनका पैसा वापिस किया और जीजू के साथ जा खड़ी हुए जीजू को आजीवन कारावास सुनाया गया 14 साल की सजा सुनकर भी दी नही टूटी और बच्चो को हौसला दिया और दूर दिल्ली पढने भेज दिया बिना किसी रिश्तेदार का सहारा लिए . बच्चे भी समझदार थे माँ का दर्द जानते थे . पढ़ लिखकर बहुत ही उच्चे पद पर आसीन हैं .... दोनों बच्चे आज गुडगाँव में रहते हैं .... दी ने जीजू के बिना ही बड़े बेटे की शादी की ... उनकी बहु एक प्राइवेट बैंक की चीफ मेनेजर हैं ... दी का काम आज भी बहुत अच्छे से चल रहे हैं .... जिस अनजान शहर ने उनको गालियाँ दी थी आज उनकी मेहनत की तारीफ करते नही थकता हैं जीजू अब जेल से आने वाले है अगले साल तो दी अब बच्चो के पास दिल्ली शिफ्ट करना चाहती हैं परन्तु उस से पहले वो अपने आपको आर्थिक रूप से सुदृढ़ करना चाहती हैं ताकि बच्चो पर बोझ न बने . यह सब मुझे अभी पिछले ही हफ्ते दी से बात करने पर पता चला जब उनको अचानक करोल बाग में घुमते देखा .... 50 साल की दी ने 30 साल की शादीशुदा जिन्दगी में न जाने कितने रंग देख लिए थे वक़्त के साथ अपनों का अपनापन भी ....और मुझे ऐसे गले मिली कि जैसे हम बचपन में मिलते थे और वही बहस भी हुआ कि कहाँ थी इतने साल :)) सच में ,दी के हौसले को प्रणाम की ... उन्होंने अपने पति का साथ नही छोडा बच्चो को अच्छे संस्कार भी दिए और अपने को आर्थिक रूप से मजबूत भी बनाया ..... नारीवाद का झंडा उठाकर अपने पति पर आरोप , दी भी लगा सकती थी ,परन्तु उन्होंने उन हिस्सेदारों को भी माफ़ कर दिया उनके संस्कार ऐसे थे . कहकर ..... कोइ कुछ भी कहे मैं तो यही कहूँगी की यह होती हैं नारी जो सब त्याग भी करती हैं और उनका बखान भी नही करती .
चाह ले आदमी तो समंदर की लहरों पर भी चल सकता है ... सीप के मोतियों से जीवन को अद्भुत बना सकता है
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने रश्मि जी बस हौसले बुलंद होने चाहिए
हटाएंहौसले को सलाम आपकी एक बेहतरीन पेशकश है | इस से औरों की हौसला अफजाई होती है |
जवाब देंहटाएंआप का बहुत बहुत धन्यवाद ...सच में मेरी नीरू दी काबिले तारीफ हैं
हटाएंजहाँ चाह हो वहाँ राहें निकल ही आती हैं इस हौसले को सलाम्।
जवाब देंहटाएंआप का बहुत बहुत धन्यवाद ...सच में मेरी नीरू दी का हौसला काबिले तारीफ हैं
हटाएंहौसला बनाये रखने से जीवन स्वतः राह दे देता है।
जवाब देंहटाएंआप का बहुत बहुत धन्यवाद . यह हौसला ही था जिसने आज उनको सर ऊँचा करके जीना सिखाया ..सच में मेरी नीरू दी का हौसला काबिले तारीफ हैं
हटाएंअगर मन में हो हौसला और रिश्तों के प्रति इमानदारी .....तो बड़े से बड़ा संकट भी अपनी सारी ताक़त के बावजूद, घुटने टेक देता है .....वाकई आपकी दीदी को प्रणाम .....!!!!
जवाब देंहटाएंआप का बहुत बहुत धन्यवाद .सही कहा आपने सरस जी यह हौसला ही था जिसने आज उनको सर ऊँचा करके जीना सिखाया ..सच में मेरी नीरू दी का हौसला काबिले तारीफ हैं
हटाएंनीरू के हौंसले को सलाम बहुत अच्छी प्रेरणा मिलती है ऐसी महिलाओं से नीलिमा जी को यह संस्मरण हम से साझा करने के लिए बधाई
जवाब देंहटाएंराजेश जी नीरू दी से जुडी यह बाते सच मैं विपरीत परिस्तिथियों में भी भी हौसला बनाये रखने को प्रेरित करती हैं आप का बहुत बहुत धन्यवाद
हटाएंआप का बहुत बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंआज एक सप्ताह के बाद ऑनलाइन हूँ और अभी देखा नीरू दी का हौसला " मेरा सरोकार " में
जवाब देंहटाएंआप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद
ऐसी शख्शियत को वाकई सेल्यूट करने को दिल करता है.
जवाब देंहटाएंआप का बहुत बहुत धन्यवाद ...सच में मेरी नीरू दी का हौसला काबिले तारीफ हैं
हटाएंकहीं बिजली, कहीं शोला, कहीं मोम हो जाती है ,
जवाब देंहटाएंख़ुदा की अदभुत कौशल की कहानी है नारी "
बहुत - बहुत सलाम नीरू जी के हौसले को.........
आप का बहुत बहुत धन्यवाद ...सच में मेरी नीरू दी का हौसला काबिले तारीफ हैं
हटाएंसलाम है!
जवाब देंहटाएंआप का बहुत बहुत धन्यवाद ...सच में मेरी नीरू दी का हौसला काबिले तारीफ हैं
हटाएंनीलिमा जी की आभारी हूँ कि उन्होंने एक ऐसी शख्शियत से रु ब रु करवाईं जिनके हौसले के मिसाल दिए जा सकते हैं और बहुत कुछ सिखने के लिए है ....
जवाब देंहटाएंहोली की ढेर सारे शुभकामनायें !!
आप का बहुत बहुत धन्यवाद ...सच में मेरी नीरू दी का हौसला काबिले तारीफ हैं
हटाएंहौसले को प्रणाम..........
जवाब देंहटाएंहोली की ढेर सारे शुभकामनायें.........
आप का बहुत बहुत धन्यवाद ...सच में मेरी नीरू दी का हौसला काबिले तारीफ हैं
हटाएंएक हिम्मत वाली नारी का उदाहरण के आगे आज के नारीवादी नारे बेकार है ...हौंसला हो तो क्या कुछ नहीं किया जा सकता.
जवाब देंहटाएंआप का बहुत बहुत धन्यवाद ...सच में मेरी नीरू दी का हौसला काबिले तारीफ हैं
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