वक़्त जिन्दगी में कैसे कैसे लाता है और उन मोड़ों पर कभी इंसान हार जाता है और कभी बड़ी वीरता और धैर्य से उन्हें पर कर मंजिल पा लेता है . का नाम है जिन्दगी - जन्म से लेकर मृत्यु तक हम यन्त्र चालित से रहते हैं लेकिन उसमें अपने बुद्धि और विवेक से जीतने और हारने में हमारी अपनी ही कुशलता को श्रेय जाता है.
आज की कड़ी की प्रस्तुति है रेखा जोशी जी की .
''ट्रिग ट्रिन ''दरवाज़े की घंटी के बजते ही मीता ने खिड़की से झाँक कर
देखा तो वहां उसने अपनी ही पुरानी इक छात्रा अनन्या को दरवाज़े के
बाहर खड़े पाया ,जल्दी से मीता ने दरवाज़ा खोला तो सामने खड़ी वही मुधुर
सी मुस्कान ,खिला हुआ चेहरा और हाथों में मिठाई का डिब्बा लिए अनन्या खड़ी
थी । ''नमस्ते मैम ''मीता को सामने देखते ही उसने कहा ,''पहचाना मुझे
आपने। ''हाँ हाँ ,अंदर आओ ,कहो कैसी हो ''मीता ने उसे अपने घर के अंदर
सलीके से सजे ड्राइंग रूम में बैठने को कहा । अनन्या ने टेबल पर मिठाई के
डिब्बे को रखा और बोली ,''मैम आपको एक खुशखबरी देने आई हूँ मुझे आर्मी में
सैकिड लेफ्टीनेंट की नौकरी मिल गई है ,यह सब आपके आशीर्वाद का फल है ,मुझे
इसी सप्ताह जाईन करना है सो रुकूँ गी नही ,फिर कभी फुर्सत से आऊं गी ,''यह
कह कर उसने मीता के पाँव छुए और हाथ जोड़ कर उसने विदा ली । अनन्या के जाते
ही मीता के मानस पटल पर भूली बिसरी तस्वीरे घूमने लगी, जब एक दिन वह बी एस
सी अंतिम वर्ष की कक्षा को पढ़ा रही थी तब उस दिन अनन्या क्लास में देर से
आई थी और मीता ने उसे देर से कक्षा में आने पर डांट दिया था और क्लास
समाप्त होने पर उसे मिलने के लिए बुलाया था । पीरियड खत्म होते ही जब मीता
स्टाफ रूम की ओर जा रही थी तो पीछे से अनन्या ने आवाज़ दी थी ,''मैम
,प्लीज़ मुझे माफ़ कर दो ,''और उसकी आँखों से मोटे मोटे आंसू टपकने लगे ।
तब मीता उसे अपनी प्रयोगशाला में ले गई थी ,उसे पानी पिलाया और सांत्वना
देते हुए उसके रोने की वजह पूछी ,कुछ देर चुप रही थी वो ,फिर उसने अपनी
दर्द भरी दास्ताँ में उसे भी शरीक कर लिया था उसकी कहानी सुनने के बाद
मीता की आँखे भी नम हो उठी थी ।उसके पिता का साया उठने के बाद उसके सारे
रिश्तेदारों ने अनन्या की माँ और उससे छोटे दो भाई बहनों से मुख मोड़ लिया
था ,जब उसकी माँ ने नौकरी करनी चाही तो उस परिवार के सबसे बड़े
बुज़ुर्ग उसके ताया जी ने उसकी माँ के सारे सर्टिफिकेट्स फाड़ कर फेंक
दिए,यह कह कर कि उनके परिवार की बहुएं नौकरी नही करती। हर रोज़ अपनी आँखों
के सामने अपनी माँ और अपने भाई बहन को कभी पैसे के लिए तो कभी खाने के
लिए अपमानित होते देख अनन्या का खून खौल उठता था ,न चाहते हुए भी कई बार
वह अपने तथाकथित रिश्तेदारों को खरी खोटी भी सुना दिया करती थी और कभी
अपमान के घूँट पी कर चुप हो जाती थी ।
पढने
में वह एक मेधावी छात्रा थी ,उसने पढाई के साथ साथ एक पार्ट टाईम नौकरी
भी कर ली थी ,शाम को उसने कई छोटे बच्चों को ट्यूशन भी देना शुरू कर दिया
था और वह सदा अपने छोटे भाई ,बहन की जरूरते पूरी करने की कोशिश में रहती
थी ,कुछ पैसे बचा कर माँ की हथेली में भी रख दिया करती थी ,हां कभी कभी वह
मीता के पास आ कर अपने दुःख अवश्य साझा कर लेती थी ,शायद उसे इसी से कुछ
मनोबल मिलता हो । फाइनल परीक्षा के समाप्त होते ही मीता को पता चला कि उनका
परिवार कहीं और शिफ्ट कर चुका है ।धीरे धीरे मीता भी उसको भूल गई थी
,लेकिन आज अचानक से उसके आने से मीता को उसकी सारी बाते उसके आंसू ,उसकी
कड़ी मेहनत सब याद आगये और मीता का सिर गर्व से ऊंचा हो गया उस लडकी ने
अपने नाम को सार्थक कर दिखाया ,अपने छोटे से परिवार के लिए आज वह
अन्नापूर्णा देवी से कम नही थी |
रेखा जोशी
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ख़ास दिन …
58 मिनट पहले
आत्मसम्मान ही हमें जीने का मकसद देगा।
जवाब देंहटाएंमीता का सिर गर्व से ऊंचा हो गया उस लडकी ने अपने नाम को सार्थक कर दिखाया ,अपने छोटे से परिवार के लिए आज वह अन्नापूर्णा देवी से कम नही थी |
जवाब देंहटाएंachchha laga padh kar :)
shubhkamnayen..........
बहुत शानदार... मन के हारे हार है, मन के जीते जीत...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,आभार.
जवाब देंहटाएं्काश ऐसा साहस सबमें हो ………बधाई और शुभकामनायें हैं ऐसी शख्सियत के लिये
जवाब देंहटाएंप्रेरक संस्मरण!
जवाब देंहटाएंआपकी यह पोस्ट कल के चर्चा मंच पर है
जवाब देंहटाएंआभार
रास्ते बन ही जाते हैं. मंजिल तक जाने का हौसला हो तो .
जवाब देंहटाएंबहुत प्रेरक एवँ सार्थक प्रस्तुति ! संघर्षों से जूझते हुए जो अपनी राह बना लेते हैं वही सफलता और सम्मान के असली हकदार होते हैं !
जवाब देंहटाएंबेह्तरीन अभिव्यक्ति .शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर व प्रेरक..
जवाब देंहटाएं" जहाँ चाह वहां राह " बस मन के हौसले के दिये को जलते रहना चाहिए ,फिर कोई भी आंधी हो मुकाबला हो ही जाता है |
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