बीत गया महिला दिवस और फिर एक साल के लिए गया ये दिवस, लेकिन हम उसके होने का अहसास, अलग अलग महिलाओं के हौसले को देख कर सलाम करते हुए, करते रहेंगे . एक पहल है उस वर्ग की अपने विषय में सोचने की और अपने संघर्ष के रूप को प्रस्तुत करने की . कई बार तो हमें ऐसा लगेगा कि ऐसा भी कभी होता है लेकिन होता है क्योंकि हर महिला के सहन करने की सामर्थ्य अलग अलग होती है और अगर उसके सामने ज्वालामुखी भी फटती है तो वो उससे भी भिड़ने की ताकत रखती है और भिड़ती ही रही है. जो हार गयीं वो हौसले वाली कब कहीं जायेंगी? इन महिलाओं के हौसले को देख कर इसका निर्णय तो आप ही करेंगे .
इस बार पहली कड़ी में रश्मि प्रभा जी ने कुछ दिया जो ठीक वैसे ही जैसे वे छायावादी कवि के प्रदत्त नाम को लिए हैं तो उसकी अभिव्यक्ति का भी कुछ तो असर इस कलम में है और इनकी प्रस्तुति में है.
रश्मि प्रभा !
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रश्मि प्रभा जी |
इस बार पहली कड़ी में रश्मि प्रभा जी ने कुछ दिया जो ठीक वैसे ही जैसे वे छायावादी कवि के प्रदत्त नाम को लिए हैं तो उसकी अभिव्यक्ति का भी कुछ तो असर इस कलम में है और इनकी प्रस्तुति में है.
आस-पास ?
वह तो अपने भीतर है
सच स्पष्ट है
पर नकाब है !
भीतर को उजागर न करो
तो किसी और के लिए सोचा ही नहीं जा सकता !
तो -
जो स्त्री मेरे भीतर रहती है
वह जब छोटी सी थी
तो अपने पापा के लिए ख़्वाबों की सच्चाई थी
माँ के लिए हंसी का झरना
भाई-बहनों के लिए बहुत ख़ास ,,,
पुरवा का झोंका जब बनी
तो कितनी नज़रें उठीं
जो ठहरी
उसने मन में सोच लिया
सच को बदल दूंगा !!!
सच बदला -
एक एक कौर के लिए बढ़ने की बद्दुआ उसने दी
जिसने सम्मान,नाम देने के अग्नि फेरे लिए
.......
रास्ते ही डगमगाने लगे .
समाज-परिवार और मासूम बच्चे
सवालों ने जीना हराम कर दिया
अपमान की अग्नि में झुलसने का जो सिलसिला आरम्भ हुआ
वह तो थमा ही नहीं
अति सर्वत्र वर्जयेत
अन्याय सह्नेवाला भी गुनाहगार है
ईश्वर हमेशा साथ है
ये तीन स्वर सहयात्री बने
मन ने कहा -
जान लेने से अधिक कोई नहीं मार सकता
और मृत्यु के भय से परे उस स्त्री ने
बच्चों के लिए सम्मान का घेरा बनाया
सुकून भरी नींद के लिए लोरियां संजोयीं
अकेलेपन को वरदान माना
सरस्वती के आगे नतमस्तक हुई
शब्दों का वरदान ले
भावों की परिक्रमा करने लगी ....
कुछ निशान बनाये
साथ ही इस घृणित सच को स्वीकारा -
हौसले अपने होते हैं
जिसमें साथ की आहुति कोई नहीं देता
समाज हो या परिवार
वह ऊँगली पहले उठाता है
और अपने घिनौने रूप का सवाल
भयभीत चेहरे के साथ स्वत्व की मशाल लिए स्त्री के आगे रखता है
नींद उडती है
पर ................ मशाल आत्मविश्वास की बुझती नहीं है ...
नाम उजागर होते अजगर से सवाल
गिद्ध सी मंशा का धुंआ उठता है
पर हौसला वही है - जिसका नाम हो
नाम को पूजा नहीं
तो फिर हौसला कैसा ???
रश्मि प्रभा !
.
उम्दा!!
जवाब देंहटाएंमन में विश्वास जगाती कविता ....
जवाब देंहटाएंसच है, अपनी लड़ाई आप ही लड़ी जाती है, खुद के हौसलों से..और इस प्रकार की लड़ाई लड़ने वाली स्त्रियाँ समाज के सामने एक चुनौती होती हैं.
जवाब देंहटाएं.बहुत सुन्दर भावनात्मक प्रस्तुति .सराहनीय अभिव्यक्ति आभार प्रथम पुरुस्कृत निबन्ध -प्रतियोगिता दर्पण /मई/२००६ यदि महिलाएं संसार पर शासन करतीं -अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस आज की मांग यही मोहपाश को छोड़ सही रास्ता दिखाएँ . ''शालिनी''करवाए रु-ब-रु नर को उसका अक्स दिखाकर .
जवाब देंहटाएं.बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंस्त्री के जीवन को हौसलोँ के साथ व्यक्त करती भावुक,मार्मिक रचना
जवाब देंहटाएंवाकई स्त्री के जीवन संसार मेँ अनगित ज्वालामुखी फूटते हैँ वह झुलस तो जाती है पर अपने हौसलोँ से ज्वालामुखी की आग को ठंडा कर देती है
स्त्री के हौसलोँ की सुन्दर रचना
बधाई
सलाम इस नारी के हौसले को , जिसने परिस्तिथियों से दर कर पलायन नही किया खुद अंदर कितना टूटी होगी परन्तु बाहर एक लौह स्तम्भ भी अड़ी रही । संस्कार माँ के रहे होगे जिसने विपरीत हवाओ में जीने का हौसला दिया होगा , कभी जिन्दगी ने चाह तो मिलना चाहूंगी इस नारी से , इनके बच्चो से , और नमन करना चाहुगी , जिन्दगी हैं हर हाल में जीनी पढ़ती हैं परन्तु जो सम्मान के साथ जिए . वोह वास्तव मैं सलाम का हक़दार हैं .......
जवाब देंहटाएंस्त्री हिम्मत करे तो क्या कर नहीं सकती……वो चाहे तो वक्त की तस्वीर भी बदल सकती है फिर किस्मत क्या चीज़ है और रश्मि जी उसका एक उदाहरण हैं । उनकी रचनायें और व्यक्तित्व दोनो एक दूसरे के पूरक हैं।
जवाब देंहटाएंअदम्य साहस, अकथनीय प्रतिभा, अनुकरणीय आत्मविश्वास एवँ विलक्षण व्यक्तित्व की स्वामिनी हैं रश्मिप्रभा जी ! लोगों एवँ हालात ने चाहे कितना ही उनके तेज को धूमिल करने का प्रयास किया हो उनके प्रभामंडल का प्रकाश इतना प्रखर है कि वह औरों को भी प्रकाशित कर देता है !
जवाब देंहटाएंनिस्संदेह अटल अडिग आत्मविश्वास की धनी रश्मिप्रभा जी कइयों की पथ प्रदर्शिका हैं, यह उन्हें भी नहीं मालूम...लड़खड़ा गई जिन्दगी को फिर से संभाल कर उठ खड़ा होना उनके तीन ब्रह्म वाक्यों की जीत है...हैट्स ऑफ़ टु यू रश्मि दी|
जवाब देंहटाएंमन में आत्मविश्वास को जगाती बहुत ही सार्थक कविता.
जवाब देंहटाएंहौसले अपने होते हैं
जवाब देंहटाएंजिसमें साथ की आहुति कोई नहीं देता
समाज हो या परिवार
वह ऊँगली पहले उठाता है
....बहुत उत्कृष्ट और सार्थक अभिव्यक्ति...रश्मि जी का लेखन व व्यक्तित्व सदैव एक प्रकाश स्तम्भ बन कर सभी का मार्ग दर्शन करता रहा है..आभार
सार्थक अभिव्यक्ति..
जवाब देंहटाएंhttp://pankajkrsah.blospot.com
रचना पढ़ने के बाद लड़खड़ाते हौसले बुलंद हो जायेंगे ,शब्द - शब्द रश्मि दी के नाम से प्रकाशित हो रहे |
जवाब देंहटाएंऔर कह रहे वाकई में वो (नारी) एक महान शक्ति है जो कभी ज्वालामुखी सी दहकती है जरुरत पड़ने पर पानी की तरह निराकार भी हो जाती है | तिनके से भी किसी को भस्म करने की ताकत रखती है ,तो कभी हौसलों की बिना पर पर्वत सी कठोर |
आत्मविश्वास से बड़ा गहना या हथियार कोई नहीं.....
जवाब देंहटाएंमन में सच्चाई और व्यक्तित्व में आत्मविश्वास हो... तो जीवन की हर कठिनाई से निपटने की हिम्मत खुद-ब-खुद आ जाती है...
~सादर!!!
aatmvishvaas aur housalon ke sath aage badhati stri ki prerana dayee gatha..sundar prabhavpoorn...
जवाब देंहटाएंविश्वास फलित होगा।
जवाब देंहटाएंभयभीत चेहरे के साथ स्वत्व की मशाल लिए स्त्री के आगे रखता है
जवाब देंहटाएंनींद उडती है
पर ................ मशाल आत्मविश्वास की बुझती नहीं है ati sundr abhivykti
नारी का रोग
जवाब देंहटाएंक्या सोचे - कहे लोग
मौत सहती !!
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अति सर्वत्र वर्जयेत ....
अन्याय सह्नेवाला भी गुनाहगार है ....
रश्मि जी को ब्लॉग पर आने से पहले से जानती थी .......
उनके हौसले और हिम्मत की कायल तब भी ....
आज तो वे मेरे भी पतवार हैं .......
हौसले - हिम्मत और लेखनी को नमन करती हूँ ....
प्रथम प्रस्तुति के लिए शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंमहाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ !
सादर
आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
अर्ज सुनिये
rashmijee hamesha ki tarah man men pahunch gayeen.....
जवाब देंहटाएंहारिये न हिम्मत, बिसारिये न हरि नाम....मेरा सलाम.
जवाब देंहटाएंबच्चों के लिये सम्मान का घेरा,
जवाब देंहटाएंसुकून भरी नींद
की लोरियाँ सुनाते-सुनाते
सिरहाने हौसले की सुबह
रख
सरस्वती की वंदना में नतमस्तक हो
विश्वास का दिया जलाती हैं आप जब भी
मन का हर कोना अलौकिक तेज से भर उठता ...
सादर
adamya sahas aur aatm vishwas se bhari rachna...
जवाब देंहटाएंचमत्कृत करता हौसला ....पहाड़ों को तोड़ता आत्मविश्वास ....और झरने की सी जिजीविषा ....सिर्फ एक ढलान की ज़रुरत है ...और नारी शक्ति स्वरूपा बन जाती है ....रश्मिजी यही सार अपनाया आपकी रचना से....!!!!
जवाब देंहटाएंrashmi ji ka likha padhna hi bahut sahas deta hai ...bahut badhiya yah ...
जवाब देंहटाएंइस जिजीविषा को सलाम .
जवाब देंहटाएंरश्मि दी ...शांत स्वभाव और सरल हृदय की एक खास महिला...जिन्हें मैंने अपने और इनके साथ के तीन साल में बहुत हिम्मत और सरलता से सबके साथ जीते देखा है ....रश्मि दी ...आप ऐसी ही रहें
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