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शुक्रवार, 22 मार्च 2013

हौसले को सलाम ! ( ७ )

         हमारा संघर्ष  सिर्फ अपने जीवन में संघर्ष करती हुई माध्यम वर्गीय या उच्च वर्गीय महिलाओं के संघर्ष को ही नहीं देखती है बल्कि  ये तो सिर्फ एक महिला  के संघर्ष की गाथा से जुडी हुई दास्ताँ है . क्योंकि औरत सिर्फ औरत होती है और उसका संघर्ष भी एक  ही होता है  वह कोई शिक्षिका हो , गृहणी हो या फिर हमारे ही घर में काम करने वाली कोई महिला हो. आज की प्रस्तुति  है : अपर्णा साह जी की .
 
    
अपर्णा साह 
           भगवान ने दो जाति  बनाया ...एक शारीरिक रूप से सबल और दुसरे को निर्बल ...तो समाज -परिवार का ढांचा और परिवेश भी उसके अनुरूप  ही बना था .देश की गुलामी के लम्बे दौर मे पुरुष स्त्रियों को संरक्षण  देते-देते अपनी शक्ति को हथियार बना लिए फिर तो वे शोषक और शासक बन बैठें .यानि कि एक पुरुष से संरक्षण देना दूसरे पुरुष का काम हो चला ,वो ब्रह्मा-विष्णु -महेश की भूमिका का निर्वाह करने लगा .स्त्रियाँ घर की इज्जत बन परदे के पीछे छुप  गई ..
                                         स्त्रियाँ किसी भी तबके की हों वो शोषित है ,बस अंतर इतना है की मध्यम वर्ग की औरतें इज्जत के आवरण में अपने को समोय रहती है जबकि निचले तबके की मेहनतकश औरतें इज्जत के अलग अर्थ को अमल में लाती  हैं ....ये इतनी सबल होती हैं कि सलाम करने को जी चाहता है .कितनी सहजता से बचपनसे बुढ़ापा तक का सफ़र यूँ गुजर देती हैं मानो किसी के सहारे की आरजू ही नहीं .पति के निकम्मेपन,शराबीपन और अत्याचार को ये किस्मत का नाम देकर चिंतामुक्त हो जाया करते हैं ,औरत होने का दर्द सहती हैं,मार खाती हैं पर घायल सिर्फ शारीर होता है मन नहीं ......
                                            पूरे शरीर पे चोट का निशान,माथा फटा,खून बहता हुआ,तीन छोटे बच्चों को लिए गेट पर पिटती नेहा को देख मै विह्वल हो गई ,क्या हुआ "मेमसाहेब कुछ पैसा दे दीजिये मै खाली हाथ घर छोड़ आए हूँ,रात सामने के गराज में सोई हूँ,"ठंड अभी भी कायम है तो कैसे ये रही होगी .उसके हौसले को मैं देखने लगी और उसकी सहारा बन उसके साथ खड़ी हो गई ."जानती हैं मेमसाहेब माँ-बाप छोटी उम्र में शादी कर दिया, सास बहुत ख़राब बर्ताव मेरे साथ करती थी,तीनो बच्चे जल्दी ही हो गए ...उसके बाद पति को किसी तरह फुसलाकर यहाँ लेके आई,ये अच्छा कमाता था पर इसके माँ-बाप यहाँ आके रहने लगे ,सास के बहकावे  में आ मेरा मरद दारू पीने लगा,मै खूब लडती थी,चिल्लाती थी ,मुझे मारता था …आज चिल्लाके लड़ रही थी तो पीछे से माथा पे लाठी मारा " उसे हर तरह का सहायता दे प्यार से समझाई कि क्यों अपना घर छोडोगी ,जीत  तो तब होगी जब उन तीनो को घर से भगाओ ,इतने घर काम कर उन सबों को खिलाती थी न तो अपना और बच्चों का पेट कैसे न भर पाओगी ? .....फिर उसे थाना भेज शिकायत दर्ज करवा दी,,पति जेल गया फिर जमानत पे छूट  अपने माँ-बाप को लेकर अलग रह रहा है .इसे साथ रखने को लेकर कभी पंचायत कर रहा,कभी झगडा . नहीं जानती आगे क्या होगा पर परिवर्तन की हवा तो चल ही पड़ी है ........
                                                     हर तरफ कहानियां बिखरी पड़ी है, हर एक औरत की एक कहानी है .मेरी-आपकी-सबकी ..औरत एक जाति विशेष है सिर्फ ......जिसने दिमाग का प्रदर्शन किया  उसे पग-पग पर लक्षण लगाये जाते हैं .........इन आपबीतियों को,भोगों को कहानियों में ढालने  की कितनो को हिम्मत है और गर हिम्मत है तो कितने लिखने की कला के ज्ञाता हैं ............??????




8 टिप्‍पणियां:

  1. @हर तरफ कहानियां बिखरी पड़ी है, हर एक औरत की एक कहानी है .मेरी-आपकी-सबकी ..औरत एक जाति विशेष है सिर्फ ......जिसने दिमाग का प्रदर्शन किया उसे पग-पग पर लक्षण लगाये जाते हैं .........इन आपबीतियों को,भोगों को कहानियों में ढालने की कितनो को हिम्मत है और गर हिम्मत है तो कितने लिखने की कला के ज्ञाता हैं ............??????

    कितना सच सच...

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  2. यही तो त्रासदी है फिर भी जीवटता बनी रहनी चाहिये उसे सलाम

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  3. यह सत्य है की स्त्रियाँ किसी भी तबके की हों वो शोषित है| दुःख इस बात का है की स्त्रीयां भी इस मुद्दे पे एक दुसरे का साथ नहीं देती क्योंकि उसे यह नियति मान लेती हैं | और उच्च वर्ग की महिलाएं शोषण को ही आज़ादी मान बैठी हैं |

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  4. नारी सदियों से शोषित हुई है | आज भी सबसे बेबस लाचार अगर कोई है तो नारी है ,चाहे वो मजदूर है, चाहे किसी बड़े घराने की स्त्री | ,और वही स्त्री अपने से जुड़े हर तार ( पति,पिता भाई )को मजबूत स्तम्भ सा सहारा भी देती है |

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  5. बहुत ही मार्मिक है लेकिन हक़ीकत है. शब्दों के जाल में " औरत " का वर्णन कुछ यूं जैसे आइने में चेहरे को निहारती सच्चाई। ये तो सच है कि परिवर्तन की हवा चल पड़ी है लेकिन यह भी यक्ष प्रश्न है कि हवा कितनी शुध्द या प्रदूषित है उससे ही परिवर्तन की सेहत बनेगी. औरत सिर्फ औरत बनकर रह गई है इस अभिजात्य समाज में. कम से कम उस दौर से तो बाहर निकलती सी दिख रही है जब कहा जाता था " अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी, आंचल में है दूध आंखों में पानी " अपर्णाजी आपने बहुत ही गहराइयों में जाकर सच को प्रतिबिंबित किया है। सत्यता की सुन्दरता से परिपूर्ण पंक्तियों के लिए किन शब्दों में बधाई दूं..........समझ नहीं आ रहा है. साधुवाद , साधुवाद , साधुवाद.

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  6. जब तक प्रतिरोध नहीं होगा, पाशविकता मुँह बाये खड़ी रहेगी..

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  7. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (24-03-2013) के चर्चा मंच 1193 पर भी होगी. सूचनार्थ

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  8. जिस दिन नारी स्‍वयं उठकर खड़ी हो जाएगी, उसी दिन से शोषण समाप्‍त हो जाएगा।

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ये मेरा सरोकार है, इस समाज , देश और विश्व के साथ . जो मन में होता है आपसे उजागर कर देते हैं. आपकी राय , आलोचना और समालोचना मेरा मार्गदर्शन और त्रुटियों को सुधारने का सबसे बड़ा रास्ताहै.