
आज अवकाश का दिन है क्योंकि आज भीम राव अम्बेडकर जी की जयंती है। अम्बेडकर जी भारत के गणतंत्र राष्ट्र के लिए संविधान निर्माताओं में प्रमुख स्थान रखते हें और इसके लिए देश उनके प्रति कृतज्ञ है ।
लेकिन आज कई वर्षों से अम्बेडकर जी के नाम को एक तमगा बना लिया गया है और वे जातिगत संपत्ति बन गए हें । चाहे वह उनके नाम को लेकर हो या फिर उनकी मूर्ति को लेकर। चाहे वे जो उनकी मूर्ति के विभिन्न आकार में बनवा कर अपने घर या झोपड़ी के आगे लगा कर रहने लगते हें वह अवैध कब्जे के लिए एक साधन बना लिया गया है। हम कहते हें कि दलित और पिछड़ों को अपने अधिकार और उससे जुड़े कानूनों की जानकारी नहीं है इस लिए वे शोषित होते रहते हें। ऐसा कुछ भी नहीं है वे जो इससे अनभिज्ञ है वे तो इस बात के लिए जाने जा सकते हें लेकिन वे जो यह जानते हें कि वे अम्बेडकर जी की मूर्ति लगा कर खुद को सुरक्षित कर लेंगे क्योंकि प्रशासन ही अगर उस मूर्ति के नाम पर कब्जाई गयी जमीन को मुक्त करने के लिए कार्यवाही करेगा तो जरूर ही कुछ राजनीतिक दल वाले और कुछ अपने को उनका प्रतिनिधि कहने वाले लोग दंगा फसाद करने से नहीं चूकेंगे। राजीनीति के तवे पर तुरंत ही अफवाहों की रोटियां सिंकनी शुरू हो जायेंगी।
मैं इस बात के लिए खुद गवाह हूँ की घर से निकल कर ऑफिस जाने तक या कहीं भी शहर में जाने तक अगर सबसे अधिक मूर्तियाँ किसी की दिखेंगी तो वे अम्बेडकर जी की होंगी। क्या उनकी पूजा की जाती है या रोज उस पर फूलमालाएं चढ़ाइ जाती हें ऐसा कुछ भी नहीं है बल्कि ये सिर्फ इस बात का प्रतीक है कि इसके पीछे जो घर बने हें वे अवैध हें। हर आकार की छोटे से लेकर बड़े तक मूर्तियाँ आपको सड़क के किनारे मिल जायेंगी। जो इसको लगाकर कब्ज़ा किये बैठे हें उन्हें ये नहीं मालूम है कि इस व्यक्तित्व ने देश के लिए या फिर जाति के लिए क्या किया था? हाँ ये जरूर कहेंगे कि ये हमार मसीहा हें। शायद वे इस मसीहा शब्द के पूर्ण अर्थ से भी वाकिफ नहीं होंगे। हाँ इससे जरूर परिचित हें कि इसको लगा लेने से हम सुरक्षित हें और हमारा कब्ज़ा कल वैध हो जाएगा।
अम्बेडकर जी के नाम और उनकी मूर्ति को भुनाने का धंधा करने वाले कुछ स्वार्थी तत्व निजी स्वार्थ के लिए प्रयोग कर रहे हें। कोई गाँधी जी , नेहरु या किसी भी शहीद की मूर्ति नहीं लगाएगा. सबसे अधिक श्रद्धा स्वार्थ की होती है और वही बनी हुई है। इस विषय में भी आचार संहिता बनायीं जानी चाहिए कि अवैध कब्जों को वैध बनाने के लिए मूर्तियों या फिर मंदिरों को प्रयोग न किया जाय। अगर किया जाय तो फिर उसकी अनुमति स्थानीय सरकार द्वारा लेना आवश्यक कर दिया जाय। संविधान में दी गयी स्वतंत्रता के अधिकार का दुरूपयोग जो बढ़ता चला जा रहा है उस पर अंकुश भी लगाना उतना ही जरूरी है।