ये मेरा सरोकार है, इस समाज , देश और विश्व के साथ . जब भी और जहाँ भी ये अनुभव होता है कि इसको तो सबसे बांटने और पूछने का विषय है, सब में बाँट लेने से कुछ और ही परिणाम और हल मिल जाते हैं. एकस्वस्थ्य समाज कि परंपरा को निरंतर चलाते रहने में एक कण का क्या उपयोग हो सकता है ? ये तो मैं नहीं जानती लेकिन चुप नहीं रहा जा सकता है.
आज की जीवन शैली और जीवन में बढ़ता तनाव - इंसान को परेशान करके रखा है। चाहे ऑफिस वालों , चाहे बिज़नेस वालों या फिर चाहे कभी कॉर्पोरेट जगत में लगे लोग हों। अपनी जगह को , अपनी साख को या फिर अपने परिवार को सुख से रखने के लिए संघर्ष की स्थिति से गुजरने वालों लोगों की संख्या करीब करीब 80 % है। इसमें महिला और पुरुष दोनों ही है लेकिन महिला इस स्थिति को काफी हद तक सहन करके बाहर निकल आती है क्योंकि उसको उसके बाद घर बच्चे और परिवार के प्रति अपने दायित्व भी निभाने होते हैं। लेकिन पुरुष वर्ग घर में आकर अधिकतर चित्त हो जाता है वैसे तो कहते हैं कि पुरुष अधिक सहनशील होता है लेकिन मेरे अपने अनुभव के अनुसार नारी अधिक सहनशील और संघर्षशील होती है। बात यहाँ इन सबसे आराम पाने की है। सिर दर्द और तनाव की स्थिति सबसे अधिक सामने आ रही है और इसके लिए हम विज्ञापन टीवी पर , अखबार में और वह भी बड़े बड़े सेलिब्रिटीज के द्वारा प्रचार करते हुए मिल जाते हैं। वाकई कुछ वर्षों पहले मैं भी इस बात को अनुभव करती थी कि जल्दी से आराम मिले। सिर दर्द में ठण्डे तेल की भूमिका बहुत ही सार्थक मानी और दर्शायी जा रही है और इससे त्वरित आराम भी मिल जाता है। खासतौर पर गर्मियों में तेज धूप के थपेड़ों से परेशान होकर सबसे पहले सिर में दर्द ही शुरू होता है। अब तो इस ठण्डे तेल पान मसाले की तरह से १ या २ रुपये के छोटे छोटे पाउच में भी आने लगा है।
आज अचानक एक शोध के विषय में पढ़ कर लगा कि हममें से कितने इसको प्रयोग कर रहे हैं और इसके बारे में पूरी तरह से जानते भी नहीं है। इसका स्याह पहलू ये है कि इसके प्रयोग से इंसान धीरे धीरे अंधेपन की और बढ़ता चला जा रहा है। इस बात की पुष्टि बी एच यू स्थित सर सुन्दरलाल चिकित्सालय के न्यूरोलॉजी की ओ पी डी ने की है। यहाँ पर ऐसे मरीज मिले जिनकी ठण्डे तेल के प्रयोग से आँखों की रोशनी चली गयी . वहां के डॉ ने बताया कि यहाँ पर २१ मरीज अंधेपन और सिरदर्द की शिकायत लेकर पहुंचे। पता चला कि वे सभी लगभग दस वर्षों से या उससे लम्बे समय से सिर पर नियमित रूप से ठंडा तेल लगाते चले आ रहे थे। जब उनका टेस्ट करवाया गया तो पता चला - कोटेक्स और पेरिबेलम नस गल चुकी थी . ऐसे लोगों के सामने आने के बाद वहां पर ३०० सिरदर्द के मरीजों पर अध्ययन शुरू किया गया, जो पिछले पाँच वर्षों से ठण्डे तेल का प्रयोग कर रहे थे। इनमें ३० प्रतिशत लोगों को मिर्गी और शेष में माइग्रेन तेजी से बढ़ रहा था। उनका इलाज न्यूरोलॉजी विभाग में चल रहा है। इस तथ्य को पता करने के लिए न्यूरोलॉजी विभाग की टीम ने ठण्डे तेल के गुण - तत्वों को पता करने के लिए चूहों और खरगोशों पर शोध करना शुरू किया। पाया गया कि ठण्डे तत्वों से बने सब्सटैंस में नशे की लत भी होती है जो बिना खाए या स्मोक किये ही नशेड़ी बनाती है। शोध के बाद ये ज्ञात हुआ कि चूहों और खरगोशो पर किये गए प्रयोग से उनकी कोटेंक्स और पेरिबेलम नसें गलने लगी। ये शोध पत्र सितम्बर २०१३ में बी एच यू के न्यूरोलॉजी विभागाध्यक्ष प्रो. वी एन मिश्र ने राष्ट्रीय न्यूरोलॉजी एकेडमी की संगोष्ठी, इंदौर में प्रस्तुत किया था। ये अवलोकन ' जर्नल ऑफ़ मेडिकल साइंस एंड क्लीनिकल रिसर्च ' में प्रकाशित हो चुका है। कृपया इस विषय को गंभीरता से लें और इसके विषय में और लोगों को भी अवगत कराएं। ठंडा ठंडा - कूल कूल :
ये लोकसभा चुनाव न हुए लगता है कि सारे दलों के नेता बौखला उठे हैं। उनको सिर्फ और सिर्फ संसद में अपना बहुमत चाहिए चाहे इसके लिए वे अपने देश की महिलाओं को सूली पर चढ़ा दें या फिर उनकी इज्जत की धज्जियाँ उड़ाने वालों के लिए नए क़ानून बना कर उन्हें देश के रक्षकों में स्थान दे दें। संसद में महिलाओं को ३३ % आरक्षण के विषय पर सबसे अधिक विरोध आप ही कर रहे थे न। यही सपा महिलाओं को आदर देती हैं। इस कदर बौखलाए हुए हैं कि सिर्फ एक ही पार्टी नहीं बल्कि सभी में रोज नए नए वक्तव्य सामने आते चले जा रहे हैं। चुनाव की आचार संहिता को ताक पर इसलिए रख चुके हैं क्योंकि कहाँ तक प्रतिबन्ध लगाएगा चुनाव आयोग ? एक बोलेगा तो दूसरा समर्थन करेगा और तीसरा पीठ थपथपाने के लिए तैयार खड़ा है। बस वो नहीं मैं ही सबसे अच्छा का नारा लिए हुए शहर शहर भाग रहे हैं। सीधे सीधे काम न चला तो दूसरों के चरित्र पर कीचड उछाल कर अपने को अच्छा सिद्ध करने की चाल चलने लगे। ये आज भी बिना पढ़े लिखे और पिछड़े इलाके लोगों के बल पर अपनी राजनीति करना चाहते हैं और नयी पीढ़ी को ऐसे लुभावने तोहफों का लालच देकर उन्हें अपने तरफ करना चाह रहे हैं . ये वही नेताजी हैं जिन्होंने अपने शासन काल में उत्तर प्रदेश में छात्रों को नक़ल करने की अनुमति देकर उनके खिलवाड़ किया था। ऐसे बच्चों से किस भविष्य की वे कामना कर रहे थे। फिर तो उन्हें ऐसे बच्चों को नौकरी भी लैपटॉप की तरह से बांटने के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए, हो सकता है की युवा वर्ग उनके झांसों में आकर उन्हें बहुमत दिला दे. इन्होने साफ साफ कहा था कि आपके शहर से हमें जीत नहीं मिली तो आपको बिजली क्यों दी जाय ? जो एक प्रदेश के स्तर पर मुखिया होने पर ऐसा बोल सकता है वो देश का मुखिया बन कर क्या करेगा? सोच सकते हैं जिसकी सोच इतनी महान हो ? उससे देश को गर्त में जाना है। वो इतने जिम्मेदार पद को संभालने की क्षमता रखता ही नहीं है।
उनका कहना की सपा सबसे अधिक महिलाओं का आदर करती हैं बिलकुल नेता जी - तभी आप ने अपनी पहली पत्नी के रहते हुए दूसरी शादी की थी। सबसे बड़ी मिसाल है आपके आदर देने की। दूसरी मिसाल आप दे रहे हैं कि उनकी इज्जत से खेलने वालों के लिए माफी लाने का कानून बनाएंगे क्योंकि लड़कों से कभी कभी गलतियां हो जाती हैं। कभी कभी नहीं बल्कि आपके शासन काल में उत्तर प्रदेश में अख़बार में प्रतिदिन ४-६ दुष्कर्म के सामने आ रहे हैं और अधिकतर राजनैतिक रसूख वालों की छत्रछाया में पालने वाले लोग होते हैं। आप ऐसे वक्तव्य देकर क्या साबित कर रहे हैं ? अगर भटके हुए लोगों के मत आप को मिल जाएंगे तो आधी आबादी आपको सिरे से नकार देगी। आप सारे आम धमकी देते हैं की अगर सपा को नहीं जिताया तो शिक्षक बनाने का सपना देखना भूल जाएँ। हम उस अध्यादेश को वापस ले लेंगे। नेता जी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मालूम है कि आपके हाथ की कठपुतली है लेकिन आपकी ये बयानबाजी कहीं महँगी न पड़ जाय। अगर आप जैसे लोग सरकार बनाने लगेंगे तो जरूर ही देश का भविष्य अंधकार में डूबने वाला है क्योंकि जहाँ नेता में शालीनता , समदृष्टि और देश के प्रति प्रतिबद्धता न हो वह देश तो क्या एक प्रदेश चलने के काबिल भी नहीं समझा जा सकता है। आप तो अपने अपराधों की स्वीकारोक्ति खुले आम कर रहे है -
ऐसे नेता जो अपने को संविधान का रक्षक घोषित कर रहे हैं खुद को सेकुलर बताते हैं किस तानाशाह की बराबरी करने में कम दिख रहे हैं . उनकी इस स्वीकारोक्ति ने उन्हें निर्दोषों की हत्यारा घोषित कर रही है। ऐसे लोगों को देश की बागडोर चली गयी तो सिर्फ वाही जीवित रह पाएंगे जो नेता जी के गुण गाएंगे। उम्र के इस पड़ाव पर अमर सिंह जी कह रहे हैं कि देखो देखो हेमा मालिनी देखने की चीज हैं। आप चुनाव के लिए प्रचार कर रहे हैं या फिर किसी नौटंकी में जुमला उछाल रहे हैं। देखने की चीज तो हर इंसान होता है बस उसमें वैसे गुण होने चाहिए। जयाप्रदा जी भी देखने की चीज है , अपने समय में फिल्मों में एक खूबसूरत अभिनेत्रियों में से रही हैं। उनके लिए भी ये जुमला बोला होता। अपने अपने दल का प्रचार कीजिये न किसी पर कीचड उछालिये और न अपशब्दों का प्रयोग कीजिये। जिन्हें बताने के लिए आप यह सब सुनते हैं वो मतदाता अपना बुद्धि विवेक रखता है। आज हर वर्ग जागरूक है चिंता न कीजिये। आप लोग खरीदते रहे और मतदाता बिकते रहे नतीजा ये है कि देश कौड़ियों के मोल बिकने की कगार पर आ गया। वैसे मैं बता दूँ मेरी किसी भी नेता से कोई व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं है लेकिन सब कुछ अपनी आँखों से देखते हुए कुछ न कर पाने की विवशता इंसान को पागल बना देती है। अभी हमारे इलाके में रामनवमी पर दंगा होने की स्थिति बन गयी और उसमें किसकी क्या भूमिका थी ? लेकिन प्रशासन ने सब कुछ दबा दिया और दोष निर्दोषों के सर मढ़ दिया और उन्हें अंदर कर दिया। सच्चाई किसने और किससे पूछी है ? सब चुप हैं वे भी जिन्होंने अपने को खोया है। कहीं न अखबार न समाचार में उसका कोई जिक्र नहीं और तो और वे खुल कर रो भी नहीं सके क्योंकि प्रशासन गला दबाने के लिए तैयार जो खड़ा है।
हम इस इलाके में पिछले २४ साल से रह रहे हैं और जब यहाँ आये थे तब भी एक तरफ मुस्लिम बाहुल्य इलाका था और दूसरी और मिले जुले लोग रहते हैं और हम बड़ी शांति से रह रहे थे। वर्षों से यहाँ ताजिए उठते हैं तो साथ में हिन्दू जाते हैं और रामनवमी के रथ के साथ मुस्लिम भी होते हैं। कभी इसमें साउंड बॉक्स हिन्दू ले कर जाते हैं और कभी मुस्लिम। कभी कोई शिकायत नहीं थी। एक दूसरे के सुख में हम शामिल भी होते रहे हैं। चाहे उनके यहाँ गम हो या ख़ुशी या हमारे यहाँ। फिर अचानक इतने सालों के बाद परसों एकदम क्या हुआ कि यहाँ पर रामनवमी की शोभा यात्रा ख़राब सड़क के कारण दूसरी सड़क से ले जा रहे थे तो एक बुजुर्ग सज्जन रास्ते में लेट गए कि हम यहाँ से ये जुलूस नहीं निकलने देंगे क्योंकि हमारे ताजिये यहाँ से गुजरते हैं और दूसरे कई लोग जुलूस के पीछे की तरफ से रास्ता रोक रहे थेकि यहाँ से वापस नहीं गुजरने देगें । फिर पत्थरबाजी और मकानों से गरम पानी नीचे लोगों के ऊपर फेंकने लगी घरों की महिलायें। फिर हालात बिगड़ने में देर कहाँ लगती है ? यद्यपि कुछ पुलिस के सिपाही उस रथयात्रा के साथ थे लेकिन वे अपर्याप्त थे। खबर आग की तरह तेजी से पूरे इलाके में फैल गयी और वह भी फैलते फैलते कुछ से कुछ बन गयी । खबर उस जुलूस में दो बच्चों की हत्या तक पहुँच चुकी थी और सारा इलाका सन्नाटे में था। अफवाह फैलाने के लिए अब तो हमारे पास मोबाइल का सबसे तेज साधन भी है और आप उसे पकड़ भी नहीं सकते हैं। आनन फानन में पुलिस के आला अफसर डी एम , एस पी सब आकर स्थिति को सम्भालने में लग गए। उनके रहते भी उस दिन जहाँ भी मौका मिला गरीबों की दुकाने जला दी गयीं। जानते हैं किन लोगों की -- एक विकलांग जो साइकिल के पंचर जोड़ कर अपना परिवार पाल रहा था। उसकी दुकान बांस के टट्टर के नीचे लगा रखी थी . एक गरीब ने बैंक से कर्ज लेकर बक्शे बनाने की दुकान खोल रखी थी , अपनी दो बेटियों के साथ घर में चैन से रह कर नमक रोटी ही सही खा रहा था । पुलिस की एक गाड़ी में आग लगा दी। हम इस दहशत में जी रहे थे - क्योंकि घर के पुरुष लोग अपने काम से बाहर ही थे। सबको आगाह किया गया कि दूसरे रास्ते से आइये लेकिन आना तो अपने घर ही था न। जब तक घर पहुंचे नहीं जान गले में अटकी थी और आने पर बताया कि थोड़ी दूर पर जोर की आग भड़क रही थी। उस समय तो अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता था कि किसी गरीब के पेट बुझाने के साधन धू धू कर जला दिए थे।
इस के पीछे कौन है ? एक फेरी वाला , कबाड़ वाला , या फिर रोज के रोज कमाने वाले लोग क्या ऐसे कदम उठा सकता है ? नहीं इनको भड़काने वाले और इनके पीछे के मास्टर माइंड कोई और हैं। आखिर ये लोग चाहते क्या हैं ? एक दिन गुजर गया और पुलिस के साये में पूरा का पूरा इलाका जी रहा था और फिर देखिये हिम्मत पुलिस की तलाशी के दौरान उन पर बम फोड़े गए। पथराव किया गया , डीएम तो बाल बाल बच गयी लेकिन वे भी अपने दायित्व के साथ वहाँ पर डटी ही रहीं। दूसरे दिन भी छुटपुट वारदात होती रहीं। दुकाने भी जलाई गयीं और बमबाजी भी की गयी। वो सड़कें जो सारे दिन गुलजार रहती थीं सुनसान रहीं। कोई सब्जी वाला नहीं , दूध की गाड़ी नहीं और मार्किट ही नहीं बल्कि छोटी बड़ी दुकानों के साथ बाज़ार बंद कर दी गयीं। १४४ धारा लगा दी गयी। ये चुनाव के पहले दहशत फैलाने से किसका फायदा होने वाला है ? ये जातिवाद की आग भड़काने वाले कौन हैं ? स्थानीय लोग तो बिलकुल भी नहीं है। जरूरी सेवाओं वाले लोग घर में नहीं बैठ सकते हैं - फिर उनके घर वाले कैसे रह रहे हैं ? स्थिति नियंत्रण में है , लेकिन हमारे मन नियंत्रण में कब रहते हैं ? हम एक दूसरे के लिए अपने मन में एक छुपा हुआ शक देख रहे हैं। एक चोर हमारे मन में है कि कहीं दूसरा इसमें हमें भी तो दोषी नहीं समझ रहा है ? हम कब इन दंगों से मुक्त हो पाएंगे और ये अराजकतत्व कब तक गरीबों के मुंह से निवाला छीनने की साजिश रचते रहेंगे ? नहीं मालूम फिलहाल अभी भी स्थिति तनावपूर्ण किन्तु नियंत्रण में होने की घोषणा कर रही है।
देश इस समय एक परिवर्तन के मोड़ पर , परिवर्तन की आस में खड़ा है और इस परिवर्तन के परिवर्तक बनेंगे - हमारे देश के मतदाता। वर्षों से देश की स्थिति जैसी चल रही है , उससे आम आदमी या कहिये देश का मतदाता जो कभी कपडे, पैसे या अन्य भौतिक चीजों से खरीद लिया जाता था - अब जागरूक हो चूका है। सत्तारूढ़ दल अपनी उपलब्धियों को बढ़ाचढ़ा कर गिना रहे हैं , उनकी पोल मतदाता जान रहा है इसी लिए वे मन ही मन घबराये हुए हैं। कुछ दलों की हवा भरते ही फुस्स हो गयी , उनके वादे और इरादे अब समझने की जरूरत ही नहीं रह गयी है। जो विपक्षी हैं, वे अपने को काबिल समझाने की कोशिश कर रहे हैं जैसे मतदाता ६७ सालों में उन्हें समझ नहीं पाया है। फिर भी लोकतंत्र है तो सरकार तो इन्ही दलों में से किसी की बनानी पड़ेगी फिर हम मतदाता उनके घोषणा पत्रों के साथ अपना इच्छा पत्र उनके सामने रखें और पूछें कि क्या उनमें से कोई भी हमारे इच्छा पत्र को सम्मान देगा या फिर इसको पूरा करने का वादा करता है? अगर हाँ तो फिर हम उसे चुनने को राजी हैं -- १. चुनाव में अपने घोषणा पत्र में दिए गए आश्वासनों को वे कितने दिनों में पूरा करने का वादा करते हैं। कहीं सब्ज बाग़ दिखा करआगे एक बार और चुनने का अवसर तो नहीं चाहिए । २. आरोपी नेताओं को पार्टी से हटाने के बारे में उनके क्या विचार हैं ? ३. हर बड़ी पार्टी के पास अपनी संपत्ति करोड़ों में है , उसे देश में आयी किसी भी विपत्ति पर कितने प्रतिशत व्यय करने के लिए प्रतिबद्ध हैं ? ४. सांसदों और विधायकों के लिए शिक्षा और आयु सीमा निश्चित की जानी चाहिए। ५ महिला आरक्षित सीट पर सुयोग्य महिला को टिकट मिलना चाहिए न कि बिहार की तरह बागडोर पत्नी थमा कर पीछे से पतिदेव हांक रहे हैं। ६. नेताओं के परिवार के किसी न किसी सदस्य को सेना में जरूर जाना चाहिए तभी ये सैनिकों के घर वालों के मन की उहापोह और विकलता को अनुभव कर पाएंगे और अनर्गल बयानबाजी कभी नहीं करेंगे। ७. जिस क्षेत्र से ये चुनाव लड़े वहाँ पर इन्हें संसद सत्र के दिनों को छोड़ कर कुछ दिनों रहना अनिवार्य किया जाय और जन समस्याओं को सुनने का समय देना होगा। ८. उनके घोषणा पत्र के किसी भी घोषणा के पूर्ण न होने पर उस विषय में मतदाता को उनसे सवाल पूछने का अधिकार होना चाहिए। ९. उनके पद का लाभ सिर्फ उनकी पत्नी और नाबालिग बच्चों को प्राप्त होना चाहिए बालिग़ और आत्मनिभर बच्चों को सांसद या विधायक कोटे का लाभ नहीं मिलना चाहिए। १० जो जन प्रतिनिधि है - वह सिर्फ व्यक्तिगत तौर पर चुने गए हैं अतः उनको प्राप्त सरकारी सुविधाओं का वहन सिर्फ वही करेंगे। ११. सांसद निधि या विधायक निधि प्राप्त होने के बाद उसको विकास कार्यों में लगाने की समय सीमा तय की जाए और कार्यों की प्राथमिकता तय की जाय न कि शहर की सड़कें खस्ता हाल हैं और सुंदरीकरण के लिए करोड़ों की धनराशि जारी कर दी जाय। १२. स्थानीय मूलभूत आवश्यकताओं के प्रति उन्हें उत्तरदायी माना जाएगा। १३. अपने कार्यकाल में उनकी बढती हुई संपत्ति का उन्हें व्योरा देना होगा कि किन स्रोतों से ये धन बढ़ा है और उसके लिए वे नियमानुसार आयकर दे रहे हैं या नहीं। १४. किसी भी अपराधिक मामले में वे अपने प्रभाव का अपराधी को छुड़ाने के लिए प्रयोग नहीं करेंगे और अगर ऐसा होता है तो मतदाता स्थानीय लोगों के चरित्र से भलीभांति परिचित होता है तो माननीय के लिए भी कोई धारा निश्चित होनी चाहिए। १५. सरकार या नेता जो दल हित या फिर अपने समूह ( सांसद , विधायक ) हित के लिए क़ानून में परिवर्तन कर विधेयक लाते हैं तो उस पर किसी न किसी तरीके से मतदाताओं की राय जाननी होगी। कोई भी विधेयक जनप्रतिनिधि होते ही उनकी मर्जी से नहीं थोपा जाएगा। १६ लोकतंत्र के तीनों स्वतन्त्र स्तम्भ एक दूसरे का सम्मान करेंगे - कई मामलों में सर्वोच्च न्यायलय के निर्णय को निष्प्रभावी करने के लिए सत्तारूढ़ दल के प्रयास से पहले जनमत संग्रह का कोई उपाय खोज कर आगे की प्रक्रिया की जाय। १७. जो दल के वरिष्ठ नेता है , उन्हें एक समय के बाद नए लोगों को राजनीति के लिए प्रशिक्षित कर उन्हें अवसर देने के लिए स्थान स्वयं छोड़ देना चाहिए न कि विद्रोह के स्वर सुनाई देने लगें। सत्तामोह से दूर रहकर भी देश हित में कार्य हो सकता है। १८. दलबदल में विश्वास रखने वाले नेताओं को कभी भी विश्वनीय नहीं समझा जाएगा। १९ ग्लैमर की दुनियां के सितारों को मतदाता के मध्य लाकर खड़ा करने वाले दल उनके लिए विश्वास दिलाएंगे कि वे खास लोग जनप्रतिनिधि बनेंगे तो ये सारे नियम उनपर भी लागू होने। उनके छवि को भुना कर संसद में सीटों पर काबिज नहीं होंगे। २०. सांसदों की संसद में उपस्थिति पर भी नियमानुसार कार्यवाही होगी। सरकारी सेवाओं के नियमों के अनुसार ही निश्चित अनुपस्थिति का प्रावधान रखा जाएगा उसका उल्लंघन करने पर उत्तर देना होगा। इच्छाओं का कोई अंत नहीं है लेकिन मतदाताओं की इच्छानुसार ही ये तैयार किया है। इसके आगे और बहुत सी बातें हैं लेकिन एक आम मतदाता - घरेलु महिलायें , छात्र , दुकानदार , श्रमजीवी वर्ग की इसमें सहमति है। वे बड़ी बड़ी बातें नहीं जानते लेकिन अपने दैनिक जीवन से जुडी बातें जानते हैं और ऐसे लोगों से हर पांच साल बाद दो चार होते हैं।
मैं अपने बारे में सिर्फ इतना ही कहूँगी कि २५ साल तक आई आई टी कानपुर में कंप्यूटर साइंस विभाग में प्रोजेक्ट एसोसिएट के पद पर रहते हुए हिंदी भाषा ही नहीं बल्कि लगभग सभी भारतीय भाषाओं को मशीन अनुवाद के द्वारा जन सामान्य के समक्ष लाने के उद्देश्य से कार्य करते हुए . अब सामाजिक कार्य, काउंसलिंग और लेखन कार्य ही मुख्य कार्य बन चुका है. मेरे लिए जीवन में सिद्धांत का बहुत बड़ी भूमिका रही है, अपने आदर्शों और सिद्धांतों के साथ कभी कोई समझौता नहीं किया. अगर हो सका तो किसी सही और गलत का भान कराती रही यह बात और है कि उसको मेरी बात समझ आई या नहीं.