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गुरुवार, 30 मई 2019

आपदा प्रबंधन !

                            सूरत में घटी कोचिंग में लगी आग के कारण २० बच्चों का उसे हादसे में मौत के मुंह में चला जाना कोई हंसी खेल नहीं है।  भले ही वह मानवीय भूल नहीं थी लेकिन मानवीय लापरवाही तो थी ही और उस लापरवाही की कीमत चुकाई उन माता-पिता ने जिनके घर का चिराग बुझ गया और माँ की गोद सूनी हो गयी।  लोग खड़े वीडिओ बनाते रहे , शायद उन्हें मासूमों की चीखें नहीं सुनाई दे रही थीं या फिर वे बहरे हो चुके थे क्योंकि उन तड़पते हुए बच्चों में उनका कोई अपना बच्चा नहीं था। जो जरा से भी संवेदनशील थे उन्होंने प्रयास किया और बचाया भी।  अपनी जान की परवाह न करते हुए युवाओं ने उनको बचाया।  उस वक्त थोड़ी दूर पर स्थित फायर ब्रिग्रेड को आने में इतना समय लग गया और फिर  अधूरे साधनों के साथ आ पहुंचे। आपदा के लिए उनका चयन किया गया है और क्या आपदा में सिर्फ आग को बुझाना ही होता है , उसमें फंसे हुए लोगों को बचाने के लिए कोई दूसरी वैकल्पिक  व्यवस्था भी होनी चाहिए।

आपदा प्रबंधन कहां पर हो ? :- जब हम एक तरह की आपदा से दो-चार होते हैं चारों तरफ चर्चा आरंभ हो जाती है कि आपदा प्रबंधन की शिक्षा अत्यंत आवश्यक है,  लेकिन अगर इसको स्कूल या विश्वविद्यालय स्तर पर रखा जाता है तो इसका ज्ञान प्राप्त करने वाले सिर्फ वही लोग होंगे जो वहां पर शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं।  मेरे अनुसार आपदा प्रबंधन की शिक्षा समय-समय पर सरकार के द्वारा या फिर जन सेवार्थ काम करने वालों वाली संस्थाओं के द्वारा हर जगह दी जानी चाहिए क्योंकि हादसे कब कैसे हो जाए यह कोई नहीं जानता। पहले हम सुनामी आने पर बहुत जोर शोर से इस बात की चर्चा कर रहे थे कि आपदा प्रबंधन हर स्तर पर होनी चाहिए। उसके चंद दिन बाद ही हम यह भूल गए। आपदा प्रबंधन की आवश्यकता सुनामी, केदारनाथ आपदा , भूकंप , बाढ़ के बाद ही नहीं होती बल्कि यह कभी भी और किसी भी स्थान पर हो सकती है.
                      सूरत की घटना आम आदमी आपदा प्रबंधन से किसी न किसी तरीके से उसमें फंसे हुए लोगों को बचाने का सामूहिक प्रयास कर सकते थे और जो हादसे में जीवन गए हैं उनमें से पूरे नहीं तो कुछ और को भी बचाया जा सकता जबकि हमारी सरकारी सेवाएं फायर बिग्रेड अपनी  आवश्यक चीजों में लंबी सीढ़ी आपातकालीन साधन लेकर नहीं चलती। उनको सिर्फ आग नहीं बुझाना होता है बल्कि जीवन बचाना भी होता है ।
मानकों की अनदेखी :- शहरों में ऊंची ऊंची इमारतें तो बनाई जा रही है , चाहे होटल , क्लब , ऑफिस , मॉल या रहने के लिए बने भवन हों।  न अग्निशमन के साधनों का पूरी तरह से नियोजन किया जाता है और न ही वहाँ आग बुझाने के साधन होते हैं।  इस घटना के बाद सभी शहरों में ध्यान दिया जाना चाहिए।  ऐसे सार्वजनिक स्थानों पर जहाँ कि जन समूह इकठ्ठा होता हो।  कहीं कहीं तो अग्नि शमन यन्त्र लगे होते हैं लेकिन वहां के कर्मचारी उनको प्रयोग करना नहीं जानते हैं या फिर उनका प्रयोग कभी करने की नौबत नहीं आयी हो तो वे जाम हो जाते हैं और आपदा के वक्त वह कार्य ही नहीं करते हैं।
आपदा प्रबंधन की शिक्षा :- आपदा प्रबंधन की शिक्षा भी शिक्षा के स्तर के अनुरूप देनी चाहिए । आपदा से प्राथमिक कक्षाओं से ही बच्चों को अवगत कराया जाना चाहिए । फिर धीरे धीरे कक्षाओं के अनुरूप विस्तार से उनके पाठ्यक्रम में समाहित करना चाहिए । समय और पर्यावरण में होने वाले प्रदूषण के कारण कौन सी आपदा कब आ सकती है इसका कोई निश्चित समय नहीं रहा । आज सर्दी तो नाममात्र के लिए दिनों में सिमट गई हैं और शेष भीषण गर्मी में झुलसती पृथ्वी किसी भी आपदा के लिए हमें पूर्व संकेत दे रही है ।
         .      पाठ्यक्रम में आकर इसे एक विषय का रूप दिया गया है लेकिन ये हमारी औपचारिक शिक्षा है । जनसामान्य को इससे अवगत होना चाहिए। समय समय पय प्रशिक्षण कैंप लगा कर शिक्षित किया जाना चाहिए । प्राथमिक जानकारी बचाव के लिए सहायक होगी ।
बहुमंजिली इमारतों के मानक :-  बहुमंजिली इमारतों के लिए निश्चित मानकों का सख्ती से पालन होना चाहिए । इंसान भेड़ बकरी नहीं है कि उन्हें रहने की जगह देकर जीवन को जोखिम में डाल दिया जाता है । हम खुद भी दोषी हैं जो आश्वासनों के ऊपर रहने चले जाते हैं , वह भी अपने जीवन की पूँजी लगाकर । इन इमारतों में रहने के लिए अधिकृत करने से पहले अनापत्ति प्रमाणपत्र संबंधित विभाग को जारी करना चाहिए ।
             हम विदेशों के चलन का अनुकरण तो करने लगे हैं लेकिन इस दिशा में उनके उपकरणों और तरीकों के प्रति सदैव उदासीन रहे हैं । हमारी ये उदासीनता लोगों के जीवन से खिलवाड़ करने का कारण बन जाता है ।
              भविष्य के लिए हमें स्वरक्षा और पररक्षा दोनों के लिए प्रशिक्षित होना चाहिए ताकि सूरत जैसी दूसरी घटनाएं न हों । हम नेट के प्रयोग का काला पक्ष बहुत जल्दी सर्च करके दुरुपयोग करने लगते हैं लेकिन कभी उसके सदुपयोग को भी सीखें तो बहुत सारी आपदाओं से बचने का रास्ता जान सकते हैं । हमारी जानकारी हमारी ही नहीं बल्कि और कितनों का जीवन बचा सकती है । हमें स्वयं सीख कर मानवता की दिशा में कदम बढ़ाने होंगे ।

मंगलवार, 14 मई 2019

विश्व परिवार दिवस !

परिवार के स्वरूप :                   
                  
          परिवार संस्था आदिकाल से चली रही है और उसके अतीत को देखें तो दो और चार पीढ़ियों का एक साथ रहना कोई बड़ी बात नहीं थीपारिवारिक व्यवसाय या फिर खेती बाड़ी के सहारे पूरा परिवार सहयोगात्मक तरीके से चलता रहता थाउनमें प्रेम भी था और एकता की भावना भीधीरे धीरे पीढ़ियों की बात कम होने लगी और फिर दो - तीन पीढ़ियों का ही साथ रहना शुरू हो गयाजब परिवार के बच्चों ने घर से निकल कर शहर में आकर शिक्षा लेना शुरू किया तो फिर उनकी सोच में भी परिवर्तन हुआ और वे अपने ढंग से जीने की इच्छा प्रकट करने लगे। वे वापस गाँव जाना या और रहना या खेती करना पसंद नहीं करते , परिणाम कि घर वालों के बीच में दूरियां आनी शुरू हो गयीं और परिवार के विखंडन की प्रक्रिया यही से शुरू हो गयी।  आरम्भ में ये सब बहुत अच्छा लगा नयी पीढ़ी को लेकिन बाद में या कहें आज जब एकल परिवार के परिणाम सामने आने लगे हैं।

टूटते परिवार :
                 

     आज छोटे परिवार और सुखी परिवार की परिकल्पना ने संयुक्त परिवार की संकल्पना को तोड़ दिया है। समय के साथ के बढती महत्वाकांक्षाएं, सामाजिक स्तर , शैक्षिक मापदंड और एक सुरक्षित भविष्य की कामना ने परिवार को मात्र तीन या चार तक सीमित कर दिया है। वह भी आज कल भय के साये में जी रहा है।  बच्चों को लेकर माता पिता निश्चिन्त नहीं हैं। आज अधिकांश दंपत्ति दोनों ही लोग नौकरी करते हैं और इस जगह पर  बच्चे या तो आया के साथ रहते या  फिर किसी 'डे केअर सेंटर' में.छोटे बच्चे इसी लिए माता-पिता के प्रति उतने संवेदनशील नहीं रह जाते हैं।  वे नौकर और आया के द्वारा शोषण के शिकार भी किये जाते हैं और कभी कभी तो माता पिता की स्थिति के अनुसार अपहरण तक की साजिशें तक रच दी जाती हैं।  

 एकाकी परिवार में भय :

                इस एकाकी परिवार ने समाज को क्या दिया है? परिवार संस्था का अस्तित्व भी अब डगमगाने लगा है पहले पति-पत्नी के विवाद घर से बाहर कम ही जाते थे, उन्हें बड़े लोग घर में ही सुलझा देते थे  और बच्चे उनकी अब विवाद सीधे कोर्ट में जाते हैं और विघट की ओर बढ़ जाते हैं या फिर किसी एक को मानसिक रोग का शिकार बना देते हैं। बच्चे भी स्वयं को असुरक्षा की भावना में घिरे जी रहे हैं। एक तो बच्चों को परिवार का सम्पूर्ण संरक्षण मिल पता है और साथ ही वह पढाई के लिए बराबर माता-पिता के द्वारा दबाव बनाया जाता है क्योंकि वे अच्छे स्कूल में भारी भरकम फीस भर कर पढ़ाते हैं और उनसे पैसे के भार के अनुसार अपेक्षाएँ भी रखते हैं। 

विखंडित परिवार का परिणाम :

                   एक दिन एक लड़की अपनी माँ के साथ आई थी और माँ का कहना था कि ये शादी के लिए तैयार नहीं हो रही है उस लड़की का जो उत्तर उसने मेरे सामने दिया वह था - 'माँ अगर शादी आपकी तरह से जिन्दगी जीने का नाम है तो मैं नहीं चाहती कि मेरे बाद मेरे बच्चे भी मेरी तरह से आप और पापा की लड़ाई के समय रात में कान में अंगुली डाल कर चुपचाप लेटे रहेंइससे बेहतर है कि मैं सुकून से अकेले जिन्दगी जी लूं। '                            
             आज लड़कों से अधिक लड़कियाँ अकेले जीवन जीने के लिए तैयार हैं क्योंकि वे अपना जीवन शांतिपूर्वक जीना चाहती हैंआत्मनिर्भर होकर भी दूसरों की इच्छा से जीने का नाम अगर जिन्दगी है तो फिर किसी अनाथ बच्चे को सहारा देकर अपने जीवन में दूसरा ले आइये ज्यादा सुखी रहेंगे                 
              एकाकी परिवार में रहने वाले लोग सामंजस्य करने की भावना से दूर हो जाते हैं क्योंकि परिवार में एक बच्चा अपने माता पिता के लिए सब कुछ होता है और उसकी हर मांग को पूरा करना वे अपना पूर्ण दायित्व समझते हैं बच्चा भी सब कुछ मेरा है और किसी के साथ शेयर करने की भावना से ग्रस्त हो जाता हैदूसरों के साथ कैसे रहा जाय? इस बात से वह वाकिफ होते ही नहीं हैजब वह किसी के साथ रहा ही नहीं है तो फिर रहना कैसे सीखेगा?                   
                         परिवार संस्था पहले तो संयुक्त से एकाकी बन गयी और अब एकाकी से इसका विघटन होने लगा तो क्या होगा? क्या सृष्टि के अस्तित्व पर प्रश्नचिह्न लगने लगेगाऐसा नहीं है कि घर में माँ बाप की आज की पीढ़ी को जरूरत महसूस नहीं होती है लेकिन वे उनको तभी तक साथ रखने के लिए तैयार होते हैं जब तक कि  उनके छोटे बच्चों को घर में किसी के देखभाल की जरूरत होती है या फिर नौकरी कर रहे दंपत्ति को घर में एक काम करने वाले की तरह से किसी को रखने की जरूरत होती है।  अगर अपनी सोच को विकसित करें और उसको परिष्कृत करें तो माता पिता की उपस्थिति घर में बच्चों में संस्कार और सुरक्षा की भावना पैदा करती है और उनके माता पिता के लिए एक निश्चिन्त वातावरण की बच्चा घर में सुरक्षित होगा किसी आया या नौकर के साथ उसकी आदतों को नहीं सीख रहा होगा इसके लिए हमें अपनी सोच को 'मैं' से निकल कर 'हम' पर लाना होगाये बात सिर्फ आज की पीढ़ी पर ही निर्भर नहीं करती है इससे पहले वाली पीढ़ी में भी पायी जाती थी
       'मैं कोई नौकरानी नहीं, अगर नौकरी करनी है तो बच्चे के लिए दूसरा इंतजाम करके जाओ।'

        '
कमाओगी तो अपने लिए बच्चे को हम क्यों रखें?'
 
                                                
           तब परिवार टूटे तो उचित लेकिन अगर हम अपनी स्वतंत्रता के लिए परिवार के टुकड़े कर रहे हैं तो हमारे लिए ही घातक हैइसके लिए प्रौढ़ और युवा दोनों को ही अपनी सोच को परिष्कृत करना होगाघर में रहकर सिर्फ अपने लिए जीना भी परिवार को चला नहीं सकता है और ऐसा परिवार में रहने से अच्छा है कि इंसान अकेले रहेवैसे आप कुछ भी करें लेकिन घर में रह रहे माँ बाप के सामने से आप छोटी छोटी चीजें अपने कमरे तक सीमित रखें और उन्हें बाहर वाले की तरह से व्यवहार करें तो उनको अपने सीमित साधनों के साथ जीने दीजियेयही बात माता पिता पर भी लागू होती है ऐसा नहीं है कि हर जगह बच्चे ही गुनाहगार हैंदो बच्चों में आर्थिक स्थिति के अनुसार भेदभाव करना एक आम समस्या है फिर चाहे कोई कमजोर हो या फिर सम्पन्न ऐसे वातावरण में रहने से वह अकेले नमक रोटी खाकर रहना पसंद करेगा

          कल जब परिवार टूट रहे थे तो ऐसी सुविधाएँ नहीं थींआज तो ऐसे सेंटर खुल चुके हैं कि जो आप को आपकी समस्याओं के बारे में सही दिशा निर्देश देने के लिए तैयार हैं और आपको उनमें समाधान भी मिल रहा हैफिर क्यों भटक कर इस संस्था को खंडित कर रहे हैंइसको बचाने में ही सभ्यता , संस्कृति और समाज की भलाई है।