सूरत में घटी कोचिंग में लगी आग के कारण २० बच्चों का उसे हादसे में मौत के मुंह में चला जाना कोई हंसी खेल नहीं है। भले ही वह मानवीय भूल नहीं थी लेकिन मानवीय लापरवाही तो थी ही और उस लापरवाही की कीमत चुकाई उन माता-पिता ने जिनके घर का चिराग बुझ गया और माँ की गोद सूनी हो गयी। लोग खड़े वीडिओ बनाते रहे , शायद उन्हें मासूमों की चीखें नहीं सुनाई दे रही थीं या फिर वे बहरे हो चुके थे क्योंकि उन तड़पते हुए बच्चों में उनका कोई अपना बच्चा नहीं था। जो जरा से भी संवेदनशील थे उन्होंने प्रयास किया और बचाया भी। अपनी जान की परवाह न करते हुए युवाओं ने उनको बचाया। उस वक्त थोड़ी दूर पर स्थित फायर ब्रिग्रेड को आने में इतना समय लग गया और फिर अधूरे साधनों के साथ आ पहुंचे। आपदा के लिए उनका चयन किया गया है और क्या आपदा में सिर्फ आग को बुझाना ही होता है , उसमें फंसे हुए लोगों को बचाने के लिए कोई दूसरी वैकल्पिक व्यवस्था भी होनी चाहिए।
आपदा प्रबंधन कहां पर हो ? :- जब हम एक तरह की आपदा से दो-चार होते हैं चारों तरफ चर्चा आरंभ हो जाती है कि आपदा प्रबंधन की शिक्षा अत्यंत आवश्यक है, लेकिन अगर इसको स्कूल या विश्वविद्यालय स्तर पर रखा जाता है तो इसका ज्ञान प्राप्त करने वाले सिर्फ वही लोग होंगे जो वहां पर शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। मेरे अनुसार आपदा प्रबंधन की शिक्षा समय-समय पर सरकार के द्वारा या फिर जन सेवार्थ काम करने वालों वाली संस्थाओं के द्वारा हर जगह दी जानी चाहिए क्योंकि हादसे कब कैसे हो जाए यह कोई नहीं जानता। पहले हम सुनामी आने पर बहुत जोर शोर से इस बात की चर्चा कर रहे थे कि आपदा प्रबंधन हर स्तर पर होनी चाहिए। उसके चंद दिन बाद ही हम यह भूल गए। आपदा प्रबंधन की आवश्यकता सुनामी, केदारनाथ आपदा , भूकंप , बाढ़ के बाद ही नहीं होती बल्कि यह कभी भी और किसी भी स्थान पर हो सकती है.
सूरत की घटना आम आदमी आपदा प्रबंधन से किसी न किसी तरीके से उसमें फंसे हुए लोगों को बचाने का सामूहिक प्रयास कर सकते थे और जो हादसे में जीवन गए हैं उनमें से पूरे नहीं तो कुछ और को भी बचाया जा सकता जबकि हमारी सरकारी सेवाएं फायर बिग्रेड अपनी आवश्यक चीजों में लंबी सीढ़ी आपातकालीन साधन लेकर नहीं चलती। उनको सिर्फ आग नहीं बुझाना होता है बल्कि जीवन बचाना भी होता है ।
मानकों की अनदेखी :- शहरों में ऊंची ऊंची इमारतें तो बनाई जा रही है , चाहे होटल , क्लब , ऑफिस , मॉल या रहने के लिए बने भवन हों। न अग्निशमन के साधनों का पूरी तरह से नियोजन किया जाता है और न ही वहाँ आग बुझाने के साधन होते हैं। इस घटना के बाद सभी शहरों में ध्यान दिया जाना चाहिए। ऐसे सार्वजनिक स्थानों पर जहाँ कि जन समूह इकठ्ठा होता हो। कहीं कहीं तो अग्नि शमन यन्त्र लगे होते हैं लेकिन वहां के कर्मचारी उनको प्रयोग करना नहीं जानते हैं या फिर उनका प्रयोग कभी करने की नौबत नहीं आयी हो तो वे जाम हो जाते हैं और आपदा के वक्त वह कार्य ही नहीं करते हैं।
आपदा प्रबंधन की शिक्षा :- आपदा प्रबंधन की शिक्षा भी शिक्षा के स्तर के अनुरूप देनी चाहिए । आपदा से प्राथमिक कक्षाओं से ही बच्चों को अवगत कराया जाना चाहिए । फिर धीरे धीरे कक्षाओं के अनुरूप विस्तार से उनके पाठ्यक्रम में समाहित करना चाहिए । समय और पर्यावरण में होने वाले प्रदूषण के कारण कौन सी आपदा कब आ सकती है इसका कोई निश्चित समय नहीं रहा । आज सर्दी तो नाममात्र के लिए दिनों में सिमट गई हैं और शेष भीषण गर्मी में झुलसती पृथ्वी किसी भी आपदा के लिए हमें पूर्व संकेत दे रही है ।
. पाठ्यक्रम में आकर इसे एक विषय का रूप दिया गया है लेकिन ये हमारी औपचारिक शिक्षा है । जनसामान्य को इससे अवगत होना चाहिए। समय समय पय प्रशिक्षण कैंप लगा कर शिक्षित किया जाना चाहिए । प्राथमिक जानकारी बचाव के लिए सहायक होगी ।
बहुमंजिली इमारतों के मानक :- बहुमंजिली इमारतों के लिए निश्चित मानकों का सख्ती से पालन होना चाहिए । इंसान भेड़ बकरी नहीं है कि उन्हें रहने की जगह देकर जीवन को जोखिम में डाल दिया जाता है । हम खुद भी दोषी हैं जो आश्वासनों के ऊपर रहने चले जाते हैं , वह भी अपने जीवन की पूँजी लगाकर । इन इमारतों में रहने के लिए अधिकृत करने से पहले अनापत्ति प्रमाणपत्र संबंधित विभाग को जारी करना चाहिए ।
हम विदेशों के चलन का अनुकरण तो करने लगे हैं लेकिन इस दिशा में उनके उपकरणों और तरीकों के प्रति सदैव उदासीन रहे हैं । हमारी ये उदासीनता लोगों के जीवन से खिलवाड़ करने का कारण बन जाता है ।
भविष्य के लिए हमें स्वरक्षा और पररक्षा दोनों के लिए प्रशिक्षित होना चाहिए ताकि सूरत जैसी दूसरी घटनाएं न हों । हम नेट के प्रयोग का काला पक्ष बहुत जल्दी सर्च करके दुरुपयोग करने लगते हैं लेकिन कभी उसके सदुपयोग को भी सीखें तो बहुत सारी आपदाओं से बचने का रास्ता जान सकते हैं । हमारी जानकारी हमारी ही नहीं बल्कि और कितनों का जीवन बचा सकती है । हमें स्वयं सीख कर मानवता की दिशा में कदम बढ़ाने होंगे ।
आपदा प्रबंधन कहां पर हो ? :- जब हम एक तरह की आपदा से दो-चार होते हैं चारों तरफ चर्चा आरंभ हो जाती है कि आपदा प्रबंधन की शिक्षा अत्यंत आवश्यक है, लेकिन अगर इसको स्कूल या विश्वविद्यालय स्तर पर रखा जाता है तो इसका ज्ञान प्राप्त करने वाले सिर्फ वही लोग होंगे जो वहां पर शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। मेरे अनुसार आपदा प्रबंधन की शिक्षा समय-समय पर सरकार के द्वारा या फिर जन सेवार्थ काम करने वालों वाली संस्थाओं के द्वारा हर जगह दी जानी चाहिए क्योंकि हादसे कब कैसे हो जाए यह कोई नहीं जानता। पहले हम सुनामी आने पर बहुत जोर शोर से इस बात की चर्चा कर रहे थे कि आपदा प्रबंधन हर स्तर पर होनी चाहिए। उसके चंद दिन बाद ही हम यह भूल गए। आपदा प्रबंधन की आवश्यकता सुनामी, केदारनाथ आपदा , भूकंप , बाढ़ के बाद ही नहीं होती बल्कि यह कभी भी और किसी भी स्थान पर हो सकती है.
सूरत की घटना आम आदमी आपदा प्रबंधन से किसी न किसी तरीके से उसमें फंसे हुए लोगों को बचाने का सामूहिक प्रयास कर सकते थे और जो हादसे में जीवन गए हैं उनमें से पूरे नहीं तो कुछ और को भी बचाया जा सकता जबकि हमारी सरकारी सेवाएं फायर बिग्रेड अपनी आवश्यक चीजों में लंबी सीढ़ी आपातकालीन साधन लेकर नहीं चलती। उनको सिर्फ आग नहीं बुझाना होता है बल्कि जीवन बचाना भी होता है ।
मानकों की अनदेखी :- शहरों में ऊंची ऊंची इमारतें तो बनाई जा रही है , चाहे होटल , क्लब , ऑफिस , मॉल या रहने के लिए बने भवन हों। न अग्निशमन के साधनों का पूरी तरह से नियोजन किया जाता है और न ही वहाँ आग बुझाने के साधन होते हैं। इस घटना के बाद सभी शहरों में ध्यान दिया जाना चाहिए। ऐसे सार्वजनिक स्थानों पर जहाँ कि जन समूह इकठ्ठा होता हो। कहीं कहीं तो अग्नि शमन यन्त्र लगे होते हैं लेकिन वहां के कर्मचारी उनको प्रयोग करना नहीं जानते हैं या फिर उनका प्रयोग कभी करने की नौबत नहीं आयी हो तो वे जाम हो जाते हैं और आपदा के वक्त वह कार्य ही नहीं करते हैं।
आपदा प्रबंधन की शिक्षा :- आपदा प्रबंधन की शिक्षा भी शिक्षा के स्तर के अनुरूप देनी चाहिए । आपदा से प्राथमिक कक्षाओं से ही बच्चों को अवगत कराया जाना चाहिए । फिर धीरे धीरे कक्षाओं के अनुरूप विस्तार से उनके पाठ्यक्रम में समाहित करना चाहिए । समय और पर्यावरण में होने वाले प्रदूषण के कारण कौन सी आपदा कब आ सकती है इसका कोई निश्चित समय नहीं रहा । आज सर्दी तो नाममात्र के लिए दिनों में सिमट गई हैं और शेष भीषण गर्मी में झुलसती पृथ्वी किसी भी आपदा के लिए हमें पूर्व संकेत दे रही है ।
. पाठ्यक्रम में आकर इसे एक विषय का रूप दिया गया है लेकिन ये हमारी औपचारिक शिक्षा है । जनसामान्य को इससे अवगत होना चाहिए। समय समय पय प्रशिक्षण कैंप लगा कर शिक्षित किया जाना चाहिए । प्राथमिक जानकारी बचाव के लिए सहायक होगी ।
बहुमंजिली इमारतों के मानक :- बहुमंजिली इमारतों के लिए निश्चित मानकों का सख्ती से पालन होना चाहिए । इंसान भेड़ बकरी नहीं है कि उन्हें रहने की जगह देकर जीवन को जोखिम में डाल दिया जाता है । हम खुद भी दोषी हैं जो आश्वासनों के ऊपर रहने चले जाते हैं , वह भी अपने जीवन की पूँजी लगाकर । इन इमारतों में रहने के लिए अधिकृत करने से पहले अनापत्ति प्रमाणपत्र संबंधित विभाग को जारी करना चाहिए ।
हम विदेशों के चलन का अनुकरण तो करने लगे हैं लेकिन इस दिशा में उनके उपकरणों और तरीकों के प्रति सदैव उदासीन रहे हैं । हमारी ये उदासीनता लोगों के जीवन से खिलवाड़ करने का कारण बन जाता है ।
भविष्य के लिए हमें स्वरक्षा और पररक्षा दोनों के लिए प्रशिक्षित होना चाहिए ताकि सूरत जैसी दूसरी घटनाएं न हों । हम नेट के प्रयोग का काला पक्ष बहुत जल्दी सर्च करके दुरुपयोग करने लगते हैं लेकिन कभी उसके सदुपयोग को भी सीखें तो बहुत सारी आपदाओं से बचने का रास्ता जान सकते हैं । हमारी जानकारी हमारी ही नहीं बल्कि और कितनों का जीवन बचा सकती है । हमें स्वयं सीख कर मानवता की दिशा में कदम बढ़ाने होंगे ।