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बुधवार, 14 मई 2014

माँ तुझे सलाम ! (2)

                                           माँ से जुडी भावनएं और दिल से जुड़ा नाता कभी व्यक्त तो नहीं कर सकते  हैं क्योंकि वह तो सिर्फ महसूस हीं किया जा सकता है।  उसके अहसास को , उस शब्द और सम्बोधन को हर मन अपने अलग अलग रूप में परिभाषित करता है  कभी कभी तो शब्दों मेन उसको बांधने मेँ खुद को असमर्थ पाता है।  लेकिन सच मानिए जिसे सिर्फ उस व्यक्ति ने जिया हो और वह शब्दोँ मेन ढाल कर सबको सुनाता है तो कितना अच्छा लगता है।  आज इस रिश्ते से जुड़े अपने अहसास को प्रस्तुत कर रहे हैं -- शिवम मिश्रा। 




हर साल मई महीने के दूसरे रविवार को मदर्स डे मनाए जाने की रवायत है ... यूँ तो हम भारतवासियों को माँ के प्रति अपना लगाव या सम्मान दिखाने के किसी खास दिन की कभी कोई जरूरत ही नहीं रही पर अब जब एक रवायत चल ही पड़ी है तो भला हम ही पीछे क्यों रहे ???

जब जब माँ का जिक्र आता है ... दिलोदिमाग मे सुकून छा जाता है मानो माँ ने अपने आँचल की छाँव मे ले लिया हो ... जब रेखा दीदी ने माँ के ऊपर कुछ लिखने को कहा मैं पाशोपेश मे आ गया कि माँ पर क्या लिखा जा सकता है और कैसे लिखा जा सकता है ... माँ तो अपने आप मे पूरे संसार को समेटे है और चंद शब्दों मे माँ का वर्णन कैसे किया जाये ... इस सोच मे था कि अपने आप ही स्व॰ ओम व्यास ओम जी की अमर रचना "माँ संवेदना है" की याद हो आई ... बड़ी ही सहजता से उन्होने माँ का वर्णन किया है अपनी इस रचना मे ... अब मुझ मे तो वो समर्थ है नहीं तो मैंने इसी कविता का सहारा लिया है ... अपनी माँ और सभी माताओं को समर्पित है यह अमर रचना ... 
 माँ संवेदना है
माँ…माँ संवेदना है, भावना है अहसास है
माँ…माँ-माँ संवेदना है, भावना है अहसास है
माँ…माँ जीवन के फूलों में खुशबू का वास है,
माँ…माँ रोते हुए बच्चे का खुशनुमा पलना है,
माँ…माँ मरूथल में नदी या मीठा सा झरना है,
माँ…माँ लोरी है, गीत है, प्यारी सी थाप है,
माँ…माँ पूजा की थाली है, मंत्रों का जाप है,
माँ…माँ आँखों का सिसकता हुआ किनारा है,
माँ…माँ गालों पर पप्पी है, ममता की धारा है,
माँ…माँ झुलसते दिलों में कोयल की बोली है,
माँ…माँ मेहँदी है, कुमकुम है, सिंदूर है, रोली है,
माँ…माँ कलम है, दवात है, स्याही है,
माँ…माँ परामत्मा की स्वयँ एक गवाही है,
माँ…माँ त्याग है, तपस्या है, सेवा है,
माँ…माँ फूँक से ठँडा किया हुआ कलेवा है,
माँ…माँ अनुष्ठान है, साधना है, जीवन का हवन है,
माँ…माँ जिंदगी के मोहल्ले में आत्मा का भवन है,
माँ…माँ चूडी वाले हाथों के मजबूत कधों का नाम है,
माँ…माँ काशी है, काबा है और चारों धाम है,
माँ…माँ चिंता है, याद है, हिचकी है,
माँ…माँ बच्चे की चोट पर सिसकी है,
माँ…माँ चुल्हा-धुंआ-रोटी और हाथों का छाला है,
माँ…माँ ज़िंदगी की कडवाहट में अमृत का प्याला है,
माँ…माँ पृथ्वी है, जगत है, धूरी है,
माँ बिना इस सृष्टी की कलप्ना अधूरी है,
तो माँ की ये कथा अनादि है,
ये अध्याय नही है…
…और माँ का जीवन में कोई पर्याय नहीं है,
और माँ का जीवन में कोई पर्याय नहीं है,
तो माँ का महत्व दुनिया में कम हो नहीं सकता,
और माँ जैसा दुनिया में कुछ हो नहीं सकता,
और माँ जैसा दुनिया में कुछ हो नहीं सकता,
तो मैं कला की ये पंक्तियाँ माँ के नाम करता हूँ,
और दुनिया की सभी माताओं को प्रणाम करता हूँ  ||

- स्व॰ ओम व्यास ओम   

 

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12 टिप्‍पणियां:

  1. शिवम बहुत सुन्दर कविता चुनी तुमने माँ के हर रुप को पारिभाषित करने के लिए .

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  2. बहुत ही सुन्दर कविता। माँ को प्रणाम।

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  3. आप का बहुत बहुत आभार ... रेखा दीदी |

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  4. कवि के स्वर में सुनी थी यह रचना और उनकी ऐसी दुखद मौत कि आज भी याद आए तो मन ख़राब हो जाता है.. बहुत अच्छे मौक़े पर शेयर की यह रचना!!

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  5. Isase behatar roop men 'maan' ko vyakhyayit nahin kiya ja sakata ! Om ji ki yah bahut hi charchit evam prasiddh rachna hai ! Mother's day par sabke sath ise share karane ke liye aabhar aapka.

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  6. maa ye hai..maa wo hai....maa to maa hai jiski koi sani nahi...bahut achhe...

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