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शुक्रवार, 23 मई 2014

माँ तुझे सलाम ! (9)

माँ सिर्फ जन्म ही नहीं देती बल्कि उस साँस लेते हुए आकर ग्रहण किये हुए बच्चे को अपने सीने से लगाये उसके बदले खुद जीती हैं।  किस तरह से उसको  कुछ सिखाती है  तभी तो वह प्रथम शिक्षक कही जाती है और बच्चे भी माँ के कहे  वेदवाक्य समझता है।  लड़कों को सीखने के लिए कुछ और होता है और लड़कियों के लिए कुछ और।  तभी तो लड़कियां बचपन से गुड़ियाँ , चौके चूल्हे के खेल खेलती हैं  लडके धमाचौकड़ी वाले खेल।  ऐसे ही माँ के सिखाये हुए को जीवन में ग्रहण किये हुए हैं अन्नपूर्णा जी।  है बहुत छोटी बात लेकिन जिसके लिए वह आज भी माँ की सौगात है।  आज अपनी यादों को संजो कर मुझे देने वाली हैं : अन्नपूर्णा गेही।   

           



आमतौर पर लड़कियों के जीवन मे खाना बनाने का अवसर धीरे-धीरे आता है और शुरूवात मे भोजन की  एकाध चीज़ ही बनाते है लेकिन मेरे जीवन मे यह अवसर अचानक आया. बात उन दिनों की है जब नौंवी कक्षा की वार्षिक परीक्षा के बाद मेरी गर्मी की छुट्टियाँ शुरू हुई थी. दीदी की कॉलेज की परीक्षाएं चल रही थी. दोपहर में माँ की तबीयत सुस्त हो गई और शाम होते-होते माँ के लिए रसोई मे जाकर भोजन बनाना असंभव हो गया था. माँ ने मुझसे रात का खाना बनाने के लिए कहा. इससे पहले मैने सिर्फ़ 2-3 बार चाय ही बनाई थी. मैंने कहा कि मुझसे नही होगा, दीदी आकर बना देगी। माँ ने कहा कि परीक्षा केन्द्र दूर है, उसे आते-आते देर हो जाएगी फिर अगले दिन के पेपर की भी तैयारी करनी है, इसीलिए तुझे ही बनाना है. मैं जैसा-जैसा बताती जाऊँगी तू वैसा ही करती जाना और माँ सामने बैठ गई और मुझे बताने लगी. सबसे पहले कडी बनाने के लिए दही फेंटा, जीवन मे पहली बार यह काम किया। फिर आई छौंक लगाने की बारी। माँ ने बताया कि दही की कडी हो या कोरमा या व्रत मे बननें वाला दही अरवी का साग या पत्ते दार सब्जीयों सहित, भिन्डी जैसी कोई भी हरे रंग की सब्जी हो लाल मिर्च पाउडर की जगह हरी मिर्च का पेस्ट डालना जिससे स्वाद भी बना रहेगा और रंग भी अच्छा होगा। यह पहला टिप था रसोई का जो मैने अपने जीवन मे सीखा। कडी के बाद बारी आई दाल बनाने की, हैदराबादी खट्टी दाल जो अलग तरह से बनती है. तूअर ( अरहर ) की दाल होती है, इमली का खट्टा और इसमे साधारण छौंक नही लगता बल्कि इसका बघार ( यहां भगार भी कहते है ) करने में प्याज के पतले टुकड़े और पेस्ट, लहसुन-अदरक का पेस्ट, जीरा, राई, मेंथी के दाने और पाउडर भी तथा हींग हल्दी वगेरह का प्रयोग होता है जिनका अनुपात और कौन सी चीज़ पहले और कौन सी बाद मे डाले इसका भी महत्व है अन्यथा स्वाद बिगड़ता है. यह सभी तभी माँ ने समझाया। सभी पेस्ट हमारे यहां पहले से तैयार रहते है. फिर चावल बना लिया। कहना न होगा कि तीन चीजों के भोजन मे कोई कमी न थी, आखिर माँ के बताए अनुसार काम करती गाई थी. हालांकि उसके बाद लम्बे अरसे तक रसोई मे काम का अवसर नही मिला लेकिन उस दिन जो सीखा आज तक उसी विधि से काम करती हूँ.


अन्नपूर्णा गेही

5 टिप्‍पणियां:

  1. माँ गुरु रहती है हमेशा हमेशा ...

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  2. धन्यवाद दिगम्बर जी, ....मेरे शब्दों को शामिल करने के लिेए रेखा जी का आभर

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  3. यही होती हैं माँ की सीख

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  4. माँ ही बच्चों के जीवन में प्रथम गुरू होती है और बच्चों को सही सीख. संस्कार और अनुशासन का पाठ पढाने में लोहे के चने भी उसीको चबाने पड़ते हैं ! क्योंकि वह माँ होती है इसलिए बच्चे कितने भी बागी हो जायें वह मोर्चे पर डटी रहती है ! सुंदर संस्मरण !

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