कई घटनाएँ एक सुदृढ़ और विचारणीय विषय को जन्म देती हैं. आज सुबह ही खबर पढी - नवप्रसूता अपनी बेटी को जन्म देकर अस्पताल में छोड़ कर भाग गयी. इसने कुछ लिखने पर मजबूर कर दिया और उसमें और ऐसी कई घटनाएँ जुड़ गयीं.
--नर्सिंग होम के कूड़ेदान में बच्ची मिली.
--चलती ट्रेन से दुधमुंही बच्ची को फेंका.
--मंदिर की सीढ़ियों पर बच्ची मिली.
--सड़क के किनारे झाड़ियों में बच्ची मिली.
--स्टेशन पर बच्ची को छोड़ कर माँ बाप लापता.
इन सबसे बेहतर तो वे हैं जो किसी अनाथालय , या फिर ऐसी ही संस्थाओं के पलने में डाल दी जाती हैं. कम से कम उनके सड़क पर कुत्ते के नोचने या जानवरों के खाने से मौत का डर तो नहीं रहता . कम से कम माँ बाप की निष्ठुरता पर उतना बड़ा प्रश्न चिह्न तो नहीं लगता. ऐसे माँ बाप तो जल्लाद से भी गए गुजरे होंगे जिनकी फूल सी बच्ची को फेंकते हुए आत्मा नहीं काँपी
इन बच्चियों के गुनाहगार सारे बेपढ़े नहीं हैं बल्कि बेपढ़े तो ईश्वर की देन मानकर सीने से लगाये रहते हैं. यही तो कहा जाता है कि ४-४ लड़कियाँ हैं. वे हत्या का पाप तो नहीं लेते. इन मासूम बच्चियों के माँ बाप या घर वाले वे हैं जिन्हें बेटी नहीं चाहिए थी और बेटी ने जन्म ले लिया तो छोड़ कर चल दिए. बेचारी आते ही दहेज़ और लम्बी चौड़ी मांगे जो करने लगती हैं और बेटे पैदा होते ही दहेज़ लेकर पैदा होते हैं. लड़कियों को त्यागने की एक वजह सिर्फ और सिर्फ दहेज़ ही बनती जा रही है. कुलदीपक की चाह में तो बेटियाँ अधिक हो सकती हैं और फिर ये भी है कि तथाकथित घर वाले पोते या बेटे के बिना घर आने की हिदायत देकर जो भेजते हैं तो फिर बेटी लेकर वे घर कैसे जा सकती हैं? जब कि लड़कियों की जरूरतें लड़कों से कम ही होती हैं, लड़कियाँ परिवार के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं, परिवार की जरूरत पड़ने पर पूरी जिम्मेदारी संभाल लेती हैं. (अपवाद इसके भी हैं कभी ये काम बेटे भी बखूबी निभा लेते हैं.)
इसका विकल्प सोचना होगा की इन त्याज्य बेटियों के लिए क्या किया जा सकता है. निःसंतान होना आज भी हमारे समाज में अभिशाप माना जाता है और न भी माना जाय तो कोई भी दंपत्ति ऐसा नहीं होगा जिसे जीवन में बच्चे होने की ललक न हो. बच्चों की किलकारियों से कितने घर वंचित हैं, जहाँ रोशनी कभी होती ही नहीं है, अँधेरे घर में उदास से बैठे दंपत्ति अकेले कैसे जीवन गुजारते हैं ? इसका दर्द उनसे ही पूछा जा सकता है. बाँझ की मुहर लगाये कितनी स्त्रियाँ आज भी कहीं न कहीं उपेक्षा झेलती रहती हैं. उनके दर्द को शायद इन माँ बाप ने देखा ही नहीं है. वे कभी कुत्ते पाल कर , कभी बिल्ली पाल कर अपना दिल बहलाया करते हैं. इंसान का बच्चा उनके नसीब में नहीं होता है. इन त्याज्य बेटियों का विकल्प यही है कि इनको किसी दंपत्ति को दे दिया जाय. उन माँ बाप से ही गुजारिश है कि वे बच्ची को सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दें. भले ही वे अपनी पहचान न बताये, अनाथ कहकर उसे सुरक्षित स्थान पर पहुंचाएं. एक पाप जो आप उसको त्यागने का कर चुके हैं उसके जीवन रक्षा के लिए सुरक्षित स्थान पर पहुंचना उस पाप का थोड़ा सा प्रायश्चित किया सकता है. अगर वे अनाथालय में भी पल जायेंगी तो सृष्टि का विनाश होने से तो बच जायेगा. नहीं तो कोई न कोई सूनी गोद उनको ले ही जाएगी.
कभी सोचती हूँ कि कैसे कोई माँ अपनी संतान को ऐसे अनाथ छोड़ कर जा सकती है. शायद सब एक जैसे नहीं होते हैं. ये विषय बहुत पुराना हो चुका है लेकिन जब तक एक भी बेटी इस तरह से सड़क पर, अस्पताल में या कूड़ेदान में पड़ी मिलती रहेगी ये विषय पुराना नहीं होगा. जीवन का नाश कोई मजाक नहीं है. बेटियों की हिफाजत अगर न की गयी तो फिर ये सृष्टि ही खत्म होने लगेगी. सिर्फ बेटों से सृष्टि नहीं चलती और नहीं तो फिर ये सृष्टि ही रसातल में चली जाएगी.
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