
आज ३१ मार्च एक अदाकारा और एक शायरा की पुण्यतिथि पर मेरी हार्दिक श्रद्धांजलि। आज मीना कुमारी की पुण्यतिथि है, वह बीते ज़माने की अदाकारा रही हैं लेकिन उनके बिना हिंदी सिनेमा की चर्चा हमेशा अधूरी रहेगी। कुछ पसंद मन मष्तिष्क पर बचपन से ही अंकित हो जाती है और मुझे बचपन से ही मीनाकुमारी बहुत पसंद थी। उनके संजीदगी से भरे रोल और उनका अभिनय मुझे हमेशा पसंद रहा। जब की फिल्मों की कहानी की समझ भी इतनी अच्छी नहीं होती थी। हाँ फिल्में मैंने बचपन से बहुत देखी कभी माँ पापा के साथ कभी चाचा चाची के साथ।
उस समय भी अपनी पसंद हुआ करती थी। उनकी कुछ फिल्मों में मैं चुप रहूंगी, दिल एक मंदिर, काजल, फूल और पत्थर , पाकीज़ा मुझे बहुत पसंद रहीं। जिनमें शुरू की फिल्में तो शायद मैंने अपने बचपन में देखी थी लेकिन आज भी कुछ दृश्य मष्तिष्क में जैसे के तैसे बसे हुए हैं। शुरू में तो सिर्फ एक अभिनेत्री के रूप में ही जाना था।
जब उनकी मृत्यु हुई तो मैं बहुत बड़ी तो न थी लेकिन पता नहीं क्यों उनकी मौत ने झकझोर दिया था। घर में पत्रिकाएं सभी आया करती थी तो जानकारी भी अच्छी रहती थी। उनकी मृत्यु पर मैंने के संवेदना पत्र फिल्मी पत्रिका "माधुरी " में लिखा था और वह पत्रिका उस समय धर्मयुग की सहयोगी पत्रिका थी। उस पत्र के प्रकाशन के साथ ही मुझे लिखने वालों के साथ होने वाले व्यवहार का अनुभव होने लगा। इस क्षेत्र में आने का पहला चरण यही से रखा गया और फिर यहाँ तक आ कर खड़ी हो गयी।
उनकी मृत्यु के बाद ही उनके शायरा होने के एक नए रूप से भी परिचय हुआ जब की उनकी नज्में सामने आयीं और गुलजार साहब को प्रकाशित करवा कर सबके सामने रखा। उनकी कई पढ़ी हुई पंक्तियों में मुझे उनके जीवन के अनुरुप ये पंक्तियाँ सबसे उचित लगीं।
टुकड़े टुकड़े दिन बीता और धज्जी धज्जी रात मिली,
जिसका जितना आँचल था उतनी ही सौगात मिली।