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सोमवार, 28 मार्च 2011

कितने अर्थ आवर !

'अर्थ आवर' का पूरे विश्व में आह्वान किया गया और मीडिया ने चंद अँधेरे बंगलों को कैद करके दिखा दिया की हमने 'अर्थ आवर' में अँधेरा रखा है , किन्तु इसका यथार्थ कुछ और ही है और ये सबने देखा भी। अपने ही घर से शुरू करती हूँ -- जैसे ही मैंने लाईट बुझानी शुरू की और मेरे जेठ जी ने देखा (हम संयुक्त परिवार में रहते हैं) उन्होंने तुरंत टोका - अरे बिल तो पूरा ही भरना है चाहे जितना बंद करो फिर क्यों बुझा रही हो? मेरे कमरे में और टीवी को चलने दो। बहस मैं करती नहीं सो मैंने उस कमरे को छोड़ दिया।
लाईट बंद करते ही अगल बगल के घरों से आवाज आनी शुरू हो गयी - 'आपके यहाँ बत्ती चली गयी क्या ?'
'हाँ , हमारा फ्यूज उड़ गया है।' कह कर उन्हें शांत कर दिया क्योंकि मुझे पता था कि हम अपनी मानसिकता और सोच बदलने के लिए तैयार नहीं है।
दूसरे दिन सबसे पूछा क्योंकि सन्डे था तो लोग मिल ही गए और कुछ लोग मिलने आये उनसे भी जाना। कुछ लोगों के ऐसे विचार थे -
'अरे ये चोचलेबाजी है अखबार वालों की।'
'क्यों बंद करें? एक तो मिलती ही नहीं है और उसपर भी बंद कर दें न बाबा।'
'मेरे बच्चे तो बिना बत्ती के रह ही नहीं सकते इतनी गर्मी में।' ऐसे लगता है की उसके बिना लोग जिन्दा ही नहीं रहते हैं।
'हम पूरा बिल देते हैं फिर क्या हमारा ही ठेका है, पहले और घरों से बंद करवाओ। '
'क्या जिनके यहाँ शादियाँ हो रही हैं, उत्सव मनाया जा रहा है उनसे बंद करवा सकते हैं?'
ये कोई जुलूस नहीं की सब उसमें शामिल हो जायेंगे तो नेता के ऊपर अहसान करेंगे। किन्तु हमारी सोच कितनी जागरूक है ये देखने के लिए हमें ऐसे लोगों से मिलना ही पड़ता है। कानपुर के बिजली विभाग के एम डी का बंगला जगमगाता रहा और जब उनसे इसके बाबत पूछा गया तो बोले की नौकरों को हिदायत देना भूल गया था। एक इतने बड़े ओहदे पर बैठा हुआ अधिकारी ऐसी बात करे तो क्या कहेंगे हम? आम आदमी को दोष क्यों दें?
किस किस की सफाई दें? हम एक घंटे बंद नहीं कर सकते हैं और हमारे हर कमरे में AC और टीवी चलना चाहिए। रोज की बात देखें तो स्ट्रीट लाईट बराबर जला करती है। फिर आम आदमी क्यों रोता है? क्या इसमें पावर खर्च नहीं होती है। पानी नहीं तो वबाल मचा देंगे और नालियों में सबमर्सिबल लगा कर पानी बहते रहेंगे तो कोई बात नहीं । विभागीय कर्मचारी और अधिकारी इस जिम्मेदारी को कब समझेंगे? अगर नहीं समझना चाहते हैं तो फिर हम कितने भी अर्थ आवर निर्धारित कर लें कुछ भी नहीं होने वाला है। अब हम क्या कुछ सोच सकते हैं।
तो फिर अपने से ही शुरू करें? चलो आगाज करें।

4 टिप्‍पणियां:

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