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सोमवार, 25 मार्च 2019

चरित्र सिर्फ नारी का क्यों ?

                               निर्मला को उसके घर वालों ने उसी समय  घर से निकाल दिया अगर  वह कमा कर सबको खिला न रही होती।  वह तेज बारिश के कारण पैदल नहीं आ सकती थी और उसको करीब 2  किमी. पैदल चल कर घर आना पड़ता था और उस दिन उसके एक सहकर्मी ने  उसको अपने साथ मोटर साईकिल पर बैठा कर सड़क तक छोड़ दिया था और सड़क के किनारे बनी दुकानों पर खड़े लोगों ने देख  लिया था और फिर उसके बारे में कितनी बाते बनायीं गयी कि शरीफ  महिला को पता नहीं कितने विशेषणों से विभूषित  किया गया।  चलते फिरते लोगों के कटाक्ष उसे सुनाई देने लगे और सब से बड़ी बात कि घर के लोगों ने भी उसको बहुत संगीन अपराध समझ कर उसका तिरस्कार करना शुरु कर दिया।  हाँ घर से नहीं निकल सके क्योंकि  उसके पति के बेरोजगार होने के कारण घर उसकी कमाई से ही चल रहा था। उसके साथ घर वालों का व्यवहार बदल चुका था  लेकिन बच्चों और एक घर की खातिर उसको रहना था।
                     ये बात किसी ने कभी सोची ही नहीं कि चरित्र क्या सिर्फ औरत का ही होता है और  चरित्र  जैसे शब्द का सबसे गहरा सम्बन्ध सिर्फ नारी से  क्यों  माना  जाता है ?  हर आँख उठती है उसी की ओर क्यों ? शक सबसे अधिक उसी के चरित्र पर पर किया जाता है , वह भी उससे कुछ भी पूछे बिना ही आरोप भी मढ  दिए जाते हैं।  वैसे तो  सदियों से ये परंपरा चली आ रही है कि  नारी सीता की तरह अग्निपरीक्षा देने के लिए बाध्य होती है। लेकिन अब ये अग्निपरीक्षा कौन देगा और कौन लेगा ? सीता आज भी मिल जाती है लेकिन अग्निपरीक्षा की बात कोई राम ही कह सकता है।  ये समाज जिसका खुद का कोई चरित्र नहीं, किस बूते पर एक औरत के चरित्र पर लांछन लगाता है।  बिना किसी के चरित्रहीन हुए नारी कैसे चरित्रहीन हो जायेगी और अगर इसका दोषारोपण उसके सिर है तो दूसरे पुरुष के सिर पर भी आना चाहिए।
                        चरित्र की सीमाओं में बंधी नारी सिर्फ पुरुष द्वारा ही नहीं बांधी गयी है  बल्कि नारी भी इसमें बराबरी की हिस्सेदार  है।  घर की औरतें हों या फिर समाज की उंगली उठाने में जरा सा भी संकोच नहीं कराती वह भी बगैर असलियत जाने।  जैसे कि  पूरे समाज की इज्जत का ठेका इन्हीं लोगों ने ले रखा है।  अपने गिरेबान में कोई नहीं झांकता है, दूसरों के घरों की चिंता में दुबले हुए जा रहे हैं।
                          वह अपने दम पर अपने घर को चला रही है और पति दुर्भाग्य से बेकार है तो वह लांछन लगे बिना रह ही नहीं सकती है और बेकार बैठे पति और  घर वालों को भी औरों की बात सच्ची लगने लगती है।  वह किस किस को सफाई दे और क्यों दे ? उसे अपने परिवार को पालना है और वह मेहनत कर रही है , इसका अर्थ ये तो नहीं है कि वह चरित्र की अग्निपरीक्षा दे ।
            अपने परिवार के संघर्ष में कोई साथ नहीं देता है , हाँ कितने बजे जाती है और कितने बजे लौटती है -- इसका हिसाब रखने वाले कई अपने और कई गैर होते हैं।  उसके मुंह से कोई नहीं सुनना चाहता कि आखिर सच क्या है ? उसको आने में देर क्यों हुई ? या उसने किसी सहकर्मी से लिफ्ट क्यों ली ? नौकरी से उसका नहीं बल्कि पूरे घर का जीवन पलता है तो उसको हर शर्त पर अपना काम पूरा करना होता है और अपने बॉस के दिए हुए हर काम को समय सीमा में भी पूरा करना होता है।  जब काम करने में देर हो जाती है तो फिर उसको जो भी पहचान का मिला उससे लिफ्ट लेना उसकी मजबूरी होती है क्योंकि घर का चौका भी उसका इन्तजार करता होता है।  बच्चे से लेकर बड़े तक सभी को खाने के लिए भी  देना होता है।
           नारी सशक्तिकरण का जो मंत्र आज समाज जप रहा है , लेकिन ये कौंन सी  नारियाँ होती है , वे जिनके घर के लोगों की सोच बहुत उन्नत होती है , जिन्हें समाज की परवाह नहीं होती है या  सिर्फ अपना लक्ष्य दिखाई देता है और परिवार उनके पूरा विश्वास रखता है।  और ये समाज रुपी चौकीदार उनके ऊपर  नजर रखना तो दूर की बात नजर उठा कर देख नहीं पाता है।
                          चरित्र  शब्द सिर्फ औरत के साथ ही जुड़ा है , जब कि उसके इस चरित्र को दागदार बनाने वाला खुद कभी भी चरित्र की माप नहीं देता है और न ही समाज उससे सवाल करता है।  वह अकेले कभी भी चरित्रहीन नहीं होती है।  जब कोई पुरुष अग्निपरीक्षा देने लगेगा तब उस की भी अग्निपरीक्षा हो और चरित्र शब्द दोनों के साथ बराबर जोड़ने की हिम्मत  समाज जुटा लेगा , उसी दिन वह सही अर्थों में दोनों का प्रतिनिधित्व कर पायेगा।  

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन फ़ारुख़ शेख़ और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  2. आवश्यक सूचना :

    सभी गणमान्य पाठकों एवं रचनाकारों को सूचित करते हुए हमें अपार हर्ष का अनुभव हो रहा है कि अक्षय गौरव ई -पत्रिका जनवरी -मार्च अंक का प्रकाशन हो चुका है। कृपया पत्रिका को डाउनलोड करने हेतु नीचे दिए गए लिंक पर जायें और अधिक से अधिक पाठकों तक पहुँचाने हेतु लिंक शेयर करें ! सादर https://www.akshayagaurav.in/2019/05/january-march-2019.html

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  3. नारी सशक्तिकरण का जो मंत्र आज समाज जप रहा है

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ये मेरा सरोकार है, इस समाज , देश और विश्व के साथ . जो मन में होता है आपसे उजागर कर देते हैं. आपकी राय , आलोचना और समालोचना मेरा मार्गदर्शन और त्रुटियों को सुधारने का सबसे बड़ा रास्ताहै.