मकर संक्रान्ति हिंदू धर्म में एक प्रमुख पर्व है। पौष मास
में जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है तभी यह पर्व मनाया
जाता है। हिदू
धर्म में एकमात्र मकर संक्रांति का पर्व ऐसा है, जो अंग्रेजी तारीख के अनुसार मनाया जाता
है यह वह पर्व है जो अंग्रेजी माह जनवरी की दिनाँक 13 - 14
को ही पड़ता है लेकिन कभी कभी ग्रहों की गति या सूर्य के प्रवेश के समय में
कुछ अंतर होने पर यह 15 जनवरी को भी पड़ती है क्योंकि मकर संक्रान्ति के
दिन से ही सूर्य की उत्तरायण गति भी प्रारम्भ होती है। इसलिये इस पर्व को उत्तरायणी भी कहा जाता है। इसको उत्तरायणी गुजरात राज्य में ही कहा जाता है। मकर संक्रांति एकमात्र ऐसा पर्व है जिसका निश्चय
सूर्य की गति की अनुसार होता है क्योंकि शेष सभी पर्व चन्द्रमा की गति के
अनुसार निश्चित होते हैं। इसका अपना पौराणिक महत्व माना जाता है।
मकर संक्रांति से काल चक्र में परिवर्तन
वैज्ञानिकों का मानना है कि उत्तारायण में सूर्य के ताप शीत को कम करता है।14 जनवरी मकर संक्रांति के साथ ही ठंड के कम होने की शुरुआत मानी जाती है। हालांकि जलवायु परिवर्तन का असर मौसम पर भी पड़ा है। बता दें कि एक संक्रांति से दूसरे संक्रांति के बीच के समय को सौर मास कहते हैं। मकर संक्रांति के बाद जो सबसे पहले बदलाव आता है वह है दिन अवधि का बढ़ना और रात की अवधि का छोटा होना। मकर संक्रांति का धार्मिक महत्व है उसके साथ साथ वैज्ञानिक महत्व भी है। जैसी कि पौराणिक महत्व की बात करते हैं तो इसके साथ ही प्राकृतिक परिवर्तन के लिए भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
स्वास्थ्य के लिए मकर संक्रांति का महत्व
आयुर्वेद के अनुसार इस मौसम में चलने वाली सर्द हवाएँ कई बीमारियों की कारण बन सकती हैं, इसलिए प्रसाद के तौर पर खिचड़ी, तिल और गुड़ से बनी हुई मिठाई खाने का प्रचलन है। तिल और गुड़ से बनी हुई मिठाई खाने से शरीर के अंदर रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। इन सभी चीजों के सेवन से शरीर के अंदर गर्मी भी बढ़ती है। मौसम के संक्रमण काल के चलते ये आहार शरीर के अनुकूल होते हैं। खिचड़ी से पाचन क्रिया सुचारु रूप से चलने लगती है। इसके अलावा आगर खिचड़ी मटर और अदरक मिलाकर बनाएं तो शरीर के लिए काफी फायदेमंद होता है। यह शरीर के अंदर रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है साथ ही बैक्टिरिया से भी लड़ने में मदद करती है।
मकर संक्रांति से जुडी पौराणिक आधार
मकर संक्रांति एकमात्र ऐसा पर्व है जिसका निश्चय सूर्य की गति की अनुसार होता है क्योंकि शेष सभी पर्व चन्द्रमा की गति के अनुसार निश्चित होते हैं। इसका अपना पौराणिक महत्व माना जाता है।
पौराणिक सन्दर्भ में प्रमुख तीन घटनाओं को उल्लिखित किया गया है --
1 . ऐसी मान्यता है कि इस दिन सूर्यदेव अपने पुत्र शनिदेव से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं। चूँकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं , इसी लिए सूर्य धनु राशि से मकर में प्रवेश करते है ,तभी इसको मकर संक्रान्ति कहा जाता है।
2 . महाभारत काल में भीष्म पितामह सूर्य के दक्षिणायन होने के कारण शरशय्या पर रहे , जब तक कि सूर्य उत्तरायण नहीं हुए और इसी दिन उन्होंने अपने प्राण त्यागे थे।
3 . मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं।
देश के विभिन्न भागों में संक्रांति का स्वरूप --
संक्रांति हे एक ऐसा पर्व है जो सम्पूर्ण देश में मनाया जाता है और अपने अपने रिवाजों के अनुरूप उसके स्वरूप को निश्चित कर लिया है। एक दृष्टि देश के सभी राज्यों में मनाये जाने वाले ढंग पर डाले
पश्चिम बंगाल -- बंगाल में इसको पौष माह के अन्तिम दिन पड़ने के कारण ही 'पौष पर्व ' नाम दिया गया है। इसमें खजूर , खजूर के गुड़ को मिठाई बनाने में प्रयोग किया जाता है और माँ लक्ष्मी की पूजा की जाती है। दार्जिलिंग में भगवान् शिव की पूजा होती है। इस पर्व पर स्नान के पश्चात तिल दान करने की प्रथा है।
तमिलनाडु एवं आंध्र प्रदेश -- पोंगल - ये चार दिनों का त्यौहार होता है -- प्रथम भोगी-पोंगल जिसमें दिवाली की तरह ही घर की सफाई करते हैं , दूसरा सूर्य-पोंगल मनाने के लिये स्नान करके खुले आँगन में मिट्टी के बर्तन में खीर बनायी जाती है, जिसे पोंगल कहते हैं। इसके बाद सूर्य देव को नैवैद्य चढ़ाया जाता है।इस दिन लक्ष्मी जी की पूजा भी की जाती है। तीसरा मट्टू अथवा केनू-पोंगल जिसमें पशुओं की पूजा की जाती है ,उसके बाद खीर को प्रसाद के रूप में सभी ग्रहण करते हैं।, और चौथे दिन कन्या-पोंगल- इस दिन बेटी और जमाई का विशेष रूप से स्वागत किया जाता है।
पंजाब -- लोहड़ी १३ जनवरी को ही मनाया जाता है। इस दिन सुबह स्नान करके तिल के तेल का दीपक जलाते हैं ताकि घर में खुशियां और समृद्धि आये। इस दिन अँधेरा होते ही आग जलाकर अग्निदेव की पूजा करते हुए तिल , गुड़ और मूंगफली और भुने हुए मक्के (तिलचौली ) की आहुति दी जाती है। इसमें भाँगड़ा और गिद्धा नृत्य की विशेष रूप से धूम होती है। लोग तिल की बनी हुई गजक और रेवड़ियाँ आपस में बाँटकर खुशियाँ मनाते हैं। नई बहू और नवजात बच्चे के लिये लोहड़ी का विशेष महत्व होता है।
महाराष्ट्र --इस दिन सभी विवाहित महिलाएँ अपनी पहली संक्रान्ति पर कपास, तेल व नमक आदि चीजें अन्य सुहागिन महिलाओं को दान करती हैं। तिल-गूल नामक हलवे के बाँटने की प्रथा भी है। लोग एक दूसरे को तिल गुड़ देते हैं और देते समय बोलते हैं -'तिल गुड़ लो और मीठा-मीठा बोलो।' इस दिन महिलाएँ आपस में तिल, गुड़, और हल्दी कुमकुम बाँटती हैं।
उत्तराखण्ड -- यहाँ पर यह घुघूती या काले कौवा के नाम से जाना जाता है और इसको चिड़ियों के अन्यत्र प्रवास को ख़त्म होने का पर्व मनाया जाता है। इसमें खिचड़ी और अन्य चीजें दान की जाती हैं। जगह जगह मेले लगते हैं और मीठे व्यंजन बना कर चिड़ियों को खिलाये जाते हैं।
कर्नाटक -- यहाँ पर इसे कृषि से सम्बद्ध मानकर मनाया जाता है। वे अपने घरों को रंगोली से सजाते हैं और अपने पशुओं को भी सजाते हैं। उनके सीगों को रंगों से सजाते हैं। महिलायें एक दूसरे के यहाँ एक थाली में तिल , गुड़ , गन्ने और अन्य मिष्ठान भर कर आदान प्रदान करती हैं।
गुजरात -- मकर संक्रांति या उत्तरायण गुजरात का प्रमुख त्योहार है। पहले दिन 14 जनवरी को उत्तरायण मुख्य रूप से पतंगबाजी के रूप में मनाया जाता है। पतंग उड़ाने प्रतियोगिताएं राज्य भर में आयोजित की जाती है. अगले दिन बासी उत्तरायण कहा जाता है , इसमें सर्दियों में उपलब्ध सब्जियों और चिक्की, तिल के बीज, मूंगफली और गुड़ से बने का एक विशेष व्यंजन तैयार करते है, जिसका प्रयोग इस अवसर का जश्न मनाने के लिए किया जाता है।
बिहार व झारखण्ड -- बिहार / झारखंड में इसे सकरात या खिचड़ी कहते हैं। पहले दिन मकर संक्रांति के दिन, लोग तालाबों और नदियों में स्नान करते हैं और मीठे व्यंजनों में तिल गुड़ के लड्डू और चावल की लाई
के लड्डू भी बनाये जाते हैं। खाने में चिवड़ा और दही को प्रमुख रूप प्रयोग करते हैं। खिचड़ी और काले तिल का दान विशेष रूप से किया जाता है।
हिमांचल प्रदेश -- इसको माघ साजी कहा जाता है , साजी संक्रांति का प्रतीक शब्द है। शरद के समापन बसंत के आगमन पर मनाया जाता है। इसमें पवित्र जल में स्नान करके मंदिरो में जाते हैं। गरीबों में खिचड़ी , मिठाई दान करते हैं। आपस में भी खिचड़ी और गुड़ तिल की चिक्की का आदान प्रदान करते हैं और शाम को लोक नृत्य आदि का आयोजन होता है।
आसाम -- आसाम में इसको बिहू कहा जाता है। इसमें रात में ही बांस और सूखे पत्तों से झोपड़ी नुमा तैयार करते हैं और सुबह स्नान करके उस झोपड़ी को जलाते हैं फिर चावल की रोटी बनाते हैं पीठा बनाकर देवता को अर्पित करते हैं और फिर आपस में बाँटते हैं। इसी के साथ अच्छी फसल की कामना करते हैं।
राजस्थान -- इस पर्व पर सुहागन महिलाएँ अपनी सास को वायना देकर आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। साथ ही महिलाएँ किसी भी सौभाग्यसूचक वस्तु का चौदह की संख्या में पूजन एवं संकल्प कर चौदह ब्राह्मणों को दान देती हैं।
उत्तर प्रदेश -- यहाँ पर भी इसको संक्रांति या खिचड़ी के नाम से जाना जाता है , यह दो दिन मनाया जाता है - पहले दिन शाम दाल की नयी फसल आने के उपलक्ष में मूंग दाल के मगौड़े और उडद दाल के बड़े बनाये जाते हैं और दूसरे दिन सुबह लोग पवित्र नदी अगर उपलब्ध है तो उसमें स्नान करते हैं और फिर काले तिल और खिचड़ी का दान करते हैं। उस दिन खाने में खिचड़ी ही खायी जाती है। इसके साथ ही तिल के लड्डू के साथ साथ अन्य धान्य के लड्डू जैसे भुने चने के , लाइ के , रामदाना के का भी सेवन करते हैं और दान करते हैं। इस पर्व पर संगम के साथ साथ गंगा , यमुना आदि नदियों में स्नान करने लाखों की संख्या में लोग आते है।
कश्मीर घाटी -- में इसको नवजात शिशु या नववधू के आगमन पर उत्सव के रूप में मनाया जाता है और इसको शिशुर संक्रात कहते हैं।
भारत के अतिरिक्त यह पर्व अलग अलग नामों से बाहर भी मनाया जाता है। इसमें पडोसी देशों में --
नेपाल -- मकर संक्रान्ति को माघे-संक्रान्ति, सूर्योत्तरायण कहा जाता है। थारू समुदाय का यह सबसे प्रमुख त्यैाहार है। नेपाल के बाकी समुदाय भी तीर्थस्थल में स्नान करके दान-धर्मादि करते हैं और तिल, घी, शर्करा और कन्दमूल खाकर धूमधाम से मनाते हैं। वे नदियों के संगम पर लाखों की संख्या में नहाते हैं।
बांग्ला देश -- शंकरेण / पौष सांगक्रान्ति
थाईलैंड -- सोंगक्रान
लाओस -- गड़बड़ी मा लाओ
म्यांमार -- थिंज्ञान
कंबोडिया -- मोहां / सांगक्रान
श्रीलंका -- पोंगल / तिरुनल
मकर संक्रांति से काल चक्र में परिवर्तन
वैज्ञानिकों का मानना है कि उत्तारायण में सूर्य के ताप शीत को कम करता है।14 जनवरी मकर संक्रांति के साथ ही ठंड के कम होने की शुरुआत मानी जाती है। हालांकि जलवायु परिवर्तन का असर मौसम पर भी पड़ा है। बता दें कि एक संक्रांति से दूसरे संक्रांति के बीच के समय को सौर मास कहते हैं। मकर संक्रांति के बाद जो सबसे पहले बदलाव आता है वह है दिन अवधि का बढ़ना और रात की अवधि का छोटा होना। मकर संक्रांति का धार्मिक महत्व है उसके साथ साथ वैज्ञानिक महत्व भी है। जैसी कि पौराणिक महत्व की बात करते हैं तो इसके साथ ही प्राकृतिक परिवर्तन के लिए भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
स्वास्थ्य के लिए मकर संक्रांति का महत्व
आयुर्वेद के अनुसार इस मौसम में चलने वाली सर्द हवाएँ कई बीमारियों की कारण बन सकती हैं, इसलिए प्रसाद के तौर पर खिचड़ी, तिल और गुड़ से बनी हुई मिठाई खाने का प्रचलन है। तिल और गुड़ से बनी हुई मिठाई खाने से शरीर के अंदर रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। इन सभी चीजों के सेवन से शरीर के अंदर गर्मी भी बढ़ती है। मौसम के संक्रमण काल के चलते ये आहार शरीर के अनुकूल होते हैं। खिचड़ी से पाचन क्रिया सुचारु रूप से चलने लगती है। इसके अलावा आगर खिचड़ी मटर और अदरक मिलाकर बनाएं तो शरीर के लिए काफी फायदेमंद होता है। यह शरीर के अंदर रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है साथ ही बैक्टिरिया से भी लड़ने में मदद करती है।
मकर संक्रांति से जुडी पौराणिक आधार
मकर संक्रांति एकमात्र ऐसा पर्व है जिसका निश्चय सूर्य की गति की अनुसार होता है क्योंकि शेष सभी पर्व चन्द्रमा की गति के अनुसार निश्चित होते हैं। इसका अपना पौराणिक महत्व माना जाता है।
पौराणिक सन्दर्भ में प्रमुख तीन घटनाओं को उल्लिखित किया गया है --
1 . ऐसी मान्यता है कि इस दिन सूर्यदेव अपने पुत्र शनिदेव से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं। चूँकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं , इसी लिए सूर्य धनु राशि से मकर में प्रवेश करते है ,तभी इसको मकर संक्रान्ति कहा जाता है।
2 . महाभारत काल में भीष्म पितामह सूर्य के दक्षिणायन होने के कारण शरशय्या पर रहे , जब तक कि सूर्य उत्तरायण नहीं हुए और इसी दिन उन्होंने अपने प्राण त्यागे थे।
3 . मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं।
देश के विभिन्न भागों में संक्रांति का स्वरूप --
संक्रांति हे एक ऐसा पर्व है जो सम्पूर्ण देश में मनाया जाता है और अपने अपने रिवाजों के अनुरूप उसके स्वरूप को निश्चित कर लिया है। एक दृष्टि देश के सभी राज्यों में मनाये जाने वाले ढंग पर डाले
पश्चिम बंगाल -- बंगाल में इसको पौष माह के अन्तिम दिन पड़ने के कारण ही 'पौष पर्व ' नाम दिया गया है। इसमें खजूर , खजूर के गुड़ को मिठाई बनाने में प्रयोग किया जाता है और माँ लक्ष्मी की पूजा की जाती है। दार्जिलिंग में भगवान् शिव की पूजा होती है। इस पर्व पर स्नान के पश्चात तिल दान करने की प्रथा है।
तमिलनाडु एवं आंध्र प्रदेश -- पोंगल - ये चार दिनों का त्यौहार होता है -- प्रथम भोगी-पोंगल जिसमें दिवाली की तरह ही घर की सफाई करते हैं , दूसरा सूर्य-पोंगल मनाने के लिये स्नान करके खुले आँगन में मिट्टी के बर्तन में खीर बनायी जाती है, जिसे पोंगल कहते हैं। इसके बाद सूर्य देव को नैवैद्य चढ़ाया जाता है।इस दिन लक्ष्मी जी की पूजा भी की जाती है। तीसरा मट्टू अथवा केनू-पोंगल जिसमें पशुओं की पूजा की जाती है ,उसके बाद खीर को प्रसाद के रूप में सभी ग्रहण करते हैं।, और चौथे दिन कन्या-पोंगल- इस दिन बेटी और जमाई का विशेष रूप से स्वागत किया जाता है।
पंजाब -- लोहड़ी १३ जनवरी को ही मनाया जाता है। इस दिन सुबह स्नान करके तिल के तेल का दीपक जलाते हैं ताकि घर में खुशियां और समृद्धि आये। इस दिन अँधेरा होते ही आग जलाकर अग्निदेव की पूजा करते हुए तिल , गुड़ और मूंगफली और भुने हुए मक्के (तिलचौली ) की आहुति दी जाती है। इसमें भाँगड़ा और गिद्धा नृत्य की विशेष रूप से धूम होती है। लोग तिल की बनी हुई गजक और रेवड़ियाँ आपस में बाँटकर खुशियाँ मनाते हैं। नई बहू और नवजात बच्चे के लिये लोहड़ी का विशेष महत्व होता है।
महाराष्ट्र --इस दिन सभी विवाहित महिलाएँ अपनी पहली संक्रान्ति पर कपास, तेल व नमक आदि चीजें अन्य सुहागिन महिलाओं को दान करती हैं। तिल-गूल नामक हलवे के बाँटने की प्रथा भी है। लोग एक दूसरे को तिल गुड़ देते हैं और देते समय बोलते हैं -'तिल गुड़ लो और मीठा-मीठा बोलो।' इस दिन महिलाएँ आपस में तिल, गुड़, और हल्दी कुमकुम बाँटती हैं।
उत्तराखण्ड -- यहाँ पर यह घुघूती या काले कौवा के नाम से जाना जाता है और इसको चिड़ियों के अन्यत्र प्रवास को ख़त्म होने का पर्व मनाया जाता है। इसमें खिचड़ी और अन्य चीजें दान की जाती हैं। जगह जगह मेले लगते हैं और मीठे व्यंजन बना कर चिड़ियों को खिलाये जाते हैं।
कर्नाटक -- यहाँ पर इसे कृषि से सम्बद्ध मानकर मनाया जाता है। वे अपने घरों को रंगोली से सजाते हैं और अपने पशुओं को भी सजाते हैं। उनके सीगों को रंगों से सजाते हैं। महिलायें एक दूसरे के यहाँ एक थाली में तिल , गुड़ , गन्ने और अन्य मिष्ठान भर कर आदान प्रदान करती हैं।
गुजरात -- मकर संक्रांति या उत्तरायण गुजरात का प्रमुख त्योहार है। पहले दिन 14 जनवरी को उत्तरायण मुख्य रूप से पतंगबाजी के रूप में मनाया जाता है। पतंग उड़ाने प्रतियोगिताएं राज्य भर में आयोजित की जाती है. अगले दिन बासी उत्तरायण कहा जाता है , इसमें सर्दियों में उपलब्ध सब्जियों और चिक्की, तिल के बीज, मूंगफली और गुड़ से बने का एक विशेष व्यंजन तैयार करते है, जिसका प्रयोग इस अवसर का जश्न मनाने के लिए किया जाता है।
बिहार व झारखण्ड -- बिहार / झारखंड में इसे सकरात या खिचड़ी कहते हैं। पहले दिन मकर संक्रांति के दिन, लोग तालाबों और नदियों में स्नान करते हैं और मीठे व्यंजनों में तिल गुड़ के लड्डू और चावल की लाई
के लड्डू भी बनाये जाते हैं। खाने में चिवड़ा और दही को प्रमुख रूप प्रयोग करते हैं। खिचड़ी और काले तिल का दान विशेष रूप से किया जाता है।
हिमांचल प्रदेश -- इसको माघ साजी कहा जाता है , साजी संक्रांति का प्रतीक शब्द है। शरद के समापन बसंत के आगमन पर मनाया जाता है। इसमें पवित्र जल में स्नान करके मंदिरो में जाते हैं। गरीबों में खिचड़ी , मिठाई दान करते हैं। आपस में भी खिचड़ी और गुड़ तिल की चिक्की का आदान प्रदान करते हैं और शाम को लोक नृत्य आदि का आयोजन होता है।
आसाम -- आसाम में इसको बिहू कहा जाता है। इसमें रात में ही बांस और सूखे पत्तों से झोपड़ी नुमा तैयार करते हैं और सुबह स्नान करके उस झोपड़ी को जलाते हैं फिर चावल की रोटी बनाते हैं पीठा बनाकर देवता को अर्पित करते हैं और फिर आपस में बाँटते हैं। इसी के साथ अच्छी फसल की कामना करते हैं।
राजस्थान -- इस पर्व पर सुहागन महिलाएँ अपनी सास को वायना देकर आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। साथ ही महिलाएँ किसी भी सौभाग्यसूचक वस्तु का चौदह की संख्या में पूजन एवं संकल्प कर चौदह ब्राह्मणों को दान देती हैं।
उत्तर प्रदेश -- यहाँ पर भी इसको संक्रांति या खिचड़ी के नाम से जाना जाता है , यह दो दिन मनाया जाता है - पहले दिन शाम दाल की नयी फसल आने के उपलक्ष में मूंग दाल के मगौड़े और उडद दाल के बड़े बनाये जाते हैं और दूसरे दिन सुबह लोग पवित्र नदी अगर उपलब्ध है तो उसमें स्नान करते हैं और फिर काले तिल और खिचड़ी का दान करते हैं। उस दिन खाने में खिचड़ी ही खायी जाती है। इसके साथ ही तिल के लड्डू के साथ साथ अन्य धान्य के लड्डू जैसे भुने चने के , लाइ के , रामदाना के का भी सेवन करते हैं और दान करते हैं। इस पर्व पर संगम के साथ साथ गंगा , यमुना आदि नदियों में स्नान करने लाखों की संख्या में लोग आते है।
कश्मीर घाटी -- में इसको नवजात शिशु या नववधू के आगमन पर उत्सव के रूप में मनाया जाता है और इसको शिशुर संक्रात कहते हैं।
भारत के अतिरिक्त यह पर्व अलग अलग नामों से बाहर भी मनाया जाता है। इसमें पडोसी देशों में --
नेपाल -- मकर संक्रान्ति को माघे-संक्रान्ति, सूर्योत्तरायण कहा जाता है। थारू समुदाय का यह सबसे प्रमुख त्यैाहार है। नेपाल के बाकी समुदाय भी तीर्थस्थल में स्नान करके दान-धर्मादि करते हैं और तिल, घी, शर्करा और कन्दमूल खाकर धूमधाम से मनाते हैं। वे नदियों के संगम पर लाखों की संख्या में नहाते हैं।
बांग्ला देश -- शंकरेण / पौष सांगक्रान्ति
थाईलैंड -- सोंगक्रान
लाओस -- गड़बड़ी मा लाओ
म्यांमार -- थिंज्ञान
कंबोडिया -- मोहां / सांगक्रान
श्रीलंका -- पोंगल / तिरुनल
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ये मेरा सरोकार है, इस समाज , देश और विश्व के साथ . जो मन में होता है आपसे उजागर कर देते हैं. आपकी राय , आलोचना और समालोचना मेरा मार्गदर्शन और त्रुटियों को सुधारने का सबसे बड़ा रास्ताहै.