शाश्वत_धर्म !
हम धर्म की परिभाषा पंथ में खोजने में लगे हैं और पंथ अपने अपने धार्मिक ग्रंथों की दिशा में जा रहे हैं। वे शाश्वत तभी है , जबकि वे हर तरह से निष्पक्ष विद्वजनों द्वारा स्वीकार किये जा रहे हों। धर्म को तो सनातन धर्म में अलग -अलग पृष्ठभूमि में व्याख्यायित किया गया है। हिन्दू, इस्लाम , ईसाई , सिख, जैन , बौद्ध और पारसी धर्म नहीं हैं बल्कि ये तो पंथ हैं और सारे पंथों का एक ही धर्म होता है वह है सनातन धर्म। जिसकी परिभाषा अवसरानुकूल नहीं बदलती है और हर पंथ के द्वारा स्वीकार की जाती है।
मानव_धर्म :-
यह सभी को स्वीकार है कि अगर हम पंथ कट्टरता से मुक्त है तो इसको कोई भी अस्वीकार नहीं कर सकता है। ये सम्पूर्ण मानव जाति के द्वारा सम्पूर्ण प्राणि जगत के प्रति निभाए जाने वाला धर्म है। जो धर्म राष्ट्र के प्रति , समाज के प्रति जो निष्काम भाव से निर्वाह किया जाता है, वही मानव धर्म है और ये तन, मन और धन तीनों ही तरीकों से निभाया जाता है। इस बात को हर पंथ स्वीकार करता है और यही सर्वोच्च धर्म है।
इस मानव धर्म के अंतर्गत ही आता है जीवन दर्शन के कुछ और धर्म , जिनसे किसी भी पंथ के द्वारा इंकार नहीं किया जा सकता है।
मातृ_धर्म :- माँ इस सृष्टि में सबसे महत्वपूर्ण होती है और उसके बिना ये सृष्टि संभव ही नहीं है। गर्भाधान से लेकर प्रसव तक की क्रिया स्वाभाविक होती है और इसी कारण माँ का स्थान सर्वोच्च है। चाहे वह एकल हो , निर्धन हो , धनी हो लेकिन अपने बच्चों के पेट भरने लिए वह काम करती है , मजदूरी करती है या फिर घर घर जाकर काम करे या फिर अपने घर में रहकर काम करे। उसकी इस महानता के लिए उसके प्रति अपने धर्म को निभाना संतान का मातृ धर्म है और इसको सभी पंथ स्वीकार करते हैं।
पितृ_धर्म :- सृष्टि के निर्माण में मातृ और पितृ दोनों की भूमिका समान होती है , एक के बिना ये संभव ही नहीं है। वह माँ की तरह ही घर से बाहर रहकर उसके जीवन को सुचारु रूप से चलाने के लिए , उसके भविष्य को बनाने के लिए दिन रात परिश्रम करता है। समाज के लिए एक अच्छा नागरिक बनाने के लिए सुसंस्कृत सुसंस्कारित बनाने के लिए भी सम्पूर्ण प्रयास करता है। एक सुरक्षित भविष्य देने के लिए अपने वर्तमान को गिरवी रख देता है। इस धर्म को कोई भी पंथ नकार नहीं सकता।
संतति_धर्म :- सारे धर्म में संतति धर्म भी उतना ही महत्वपूर्ण है। खासतौर पर पुत्र धर्म लेकिन पुत्री भी इससे अछूती नहीं है। अगर पुत्र नहीं है तो पुत्री वह सारे कार्य पूर्ण करे जो पुत्र करेगा, अन्यथा जिस परिवार में वह अपने विवाह के बाद जायेगी, उसे परिवार में पुत्री या पुत्रवधू होने का धर्म पूर्ण करेगी
राष्ट_धर्म :-
अगर माँ जन्मदात्री है तो मानव शरीर का निर्माण जिस प्राकृतिक अंश से बना है , वह पृथ्वी है और इस पृथ्वी जिस पर रहते हैं वह किसी न किसी देश या राष्ट्र की होती है, अपने राष्ट्र के प्रति हर निवासी का एक धर्म होता है। इसकी संपत्ति हमारी है , इसके जंगल , धरती , हवा और पानी सब से ही जीवन चलता है और इसकी रक्षा करना भी किसी भी पंथ का व्यक्ति हो, उसकी जिम्मेदारी है। शाश्वत धर्म इसको आचरण में लाने के लिए बात करते हैं।
जीव_धर्मः-
सारे जीव जिनमें जीवन है जिनमें मानव सर्वश्रेष्ठ माना जाता है उसका धर्म है कि वह पशु, पक्षी, वृक्ष और जल के स्रोतों के प्रति मानवीय धर्म को पूरा करें। जिन्हें प्रकृति ने जीवन दिया है, वे आपका भी पोषण कर रहे हैं , उनहें उजाड़ो मत। उनका जीवन हरण मत करो अन्यथा हमारा जीवन दूभर हो जायेगा।
ये सारे पंथ किसी भी रूप में उपरोक्त धर्मों से इंकार नहीं कर सकते हैं। क्योंकि कोई भी पंथ मानव धर्म से परे नहीं है क्योंकि पंथ मानव के हित के लिए बने हैं उनके द्वारा किसी का अहित होता है तो वो पंथ अनुकरणीय नहीं है। खून खराबा, जीव, हत्या,अत्याचार , राष्ट्र की संपत्ति का विनाश किसी भी पथ में स्वीकार्य नहीं है।
इन सबसे अलग एक शाश्वत धर्म ही हमको स्वीकार करना होगा , अन्यथा न कोई पंथ रहेगा और न धर्म।
और लोग हैं कि धर्म के नाम पर कत्लेआम करते फिर रहे ।
जवाब देंहटाएंसार्थक लेख ।
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