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गुरुवार, 23 फ़रवरी 2012

चुनौती जिन्दगी की: संघर्ष भरे वे दिन (११)


यह वह समय होता है जब कि हम अपने विश्वास के साथ चल रहे होते हें और शेष एक प्रश्न चिह्न लिए सबसे नज़ारे चुराया करते हेंउस समय खुद को क्या महसूस होता है? ये तो वही जन सकता है जो भुक्तभोगी होता है लेकिन हाँ मंजिलें मिल जाती हें तो सब अपनी पीठ ठोकने लगते हें कि मैंने ही ही प्रेरणा दी थेखैर आज सुनिए दास्ताँ समीर लाल जी से:


समीर लाल :

सुख भरे दिन आये रे भईया....

तब ११ वीं कक्षा के बाद कालेज में चले जाते थे. बी एस सी, बी ए आदि तीन साल के होते थे और इंजीनियरिंग ५ साल का होता था.

पूरा खानदान इंजीनियरों का था. पिता जी, सारे चाचा, बड़ा भाई सभी इंजीनियर और मेरी जिद कि इंजीनियरिंग नहीं करुँगा. ११वीं तो गणित और विज्ञान लेकर पास कर ली मगर किसी सी ए को देख मन में ९वीं से ही सी ए बनने की इच्छा ने घर बना लिया था.

हमारे जमाने में जिसका किसी जगह दाखिला नहीं होता था वो या तो बी ए करने लगता था और शेखी जताता था कि कॉम्पटिशन की तैयारी कर रहे हैं. आई ए एस बनेंगे. या फिर बी कॉम कि सी ए बनेंगे. समय कट जाता था और कुछ कोशिश कर लेने के बाद, समय गुजार लेने के बाद एक समय में क्लर्क वगैरह बैंक या अन्य विभागों में लगकर जीवन चलाने लगते थे. यह लगभग ९५% लोगों की कहानी थी.

सी ए बनने का सपना पाले जब मैने बी कॉम करने की घर वालों से बात की तो इंजीनियरों की उस दुनिया में मानो भूचाल आ गया. सब तरफ विरोध ही विरोध. हालात ऐसे कि खुद के घर में सब मान बैठे कि खानदान की नाक कटवाने को एक क्लर्क को कैसे जन्म दे दिया मेरी माँ ने.

अपनी बात पर अडिग रहना और अड़ जाना शुरु से स्वभाव रहा चाहे दुनिया खड़ी हो जाये विरोध में तो भी अड़े रहें. सबने समझौता कर लिया कि चलो, घर में एक क्लर्क भी सही. घर में स्पष्ट झलक मिलने लगी कि लोग किफायत बरत रहे हैं कि एक क्लर्क की भला क्या कमाई रहेगी अतः उसके परिवार के लिए कुछ जमा पूँजी छोड़ चलने की जिम्मेदारी मेरे माँ बाप पर मानो उसी वक्त आन पड़ी.

खैर मैं बी कॉम करने लगा और परिवार के मित्रों में या रिश्तेदारी में जब कोई मेरे परिवार से मेरे बारे में जानना चाहता तो सब बुझे मन से बताते कि बी कॉम कर रहा है- आगे देखो क्या होता है? कोई यह न कहता कि सी ए करने का विचार है इसका.

सी ए का रिजल्ट सब जानते थे- पूरे भारत से २०००० लोग तैयारी करते और मात्र ४०० पास होते. शायद इसी से उसकी कीमत रही हो.

समय के साथ बी कॉम अच्छे नम्बरों और विश्व विद्य़ालय में मेरिट के साथ हुआ और फिर तय पाया कि मैं सी ए करने मुंबई, तब बम्बई ही था, जाऊँगा. एक बड़ी कम्पनी में आर्टकिलशीप मिल गई और शुरु हुआ सिलसिला सी ए करने का.

सी ए का ऐसा पढ़ाई का क्षेत्र है कि जहाँ फेल होना नार्मल है क्यूँकि सब फेल हो गये और पास होना अचंभा क्यूँकि मात्र २ पास हुए पूरे हॉस्टल के १०० लोगों में जो परीक्षा देकर आये थे. पहली परीक्षा का जब परिणाम आया तो घर में सूचित किया कि पहला हिस्सा पास कर लिया है तो घर वाले जैसे मानने को तैयार ही न थे. मुझसे कहा गया कि पुनः जाओ और इन्सटिटयूट में रिजल्ट देखकर आओ. सब मन बना कर बैठे थे कि फेल तो होना ही है. खराब तो लगा मगर गये और फिर चैक किया. वाकई पास थे. तब भी घर वालों ने मार्क शीट मेल से आ जाने का इन्तजार करने की बात कही. वो भी आई और तब जाकर सबकी नजरों में पास घोषित हुए.

फिर फाईनल करने की मशक्क्त भी कुछ ऐसी ही. इस बीच भाई नौकरी करने लगा इंजीनियर बन कर. सारे दोस्त इंजीनियर हो गये और नौकरियों में लग गये और मैं कि सी ए करता रहा. मुझे हमेशा दिखाया जाता रहा कि देखो इंजीनियरिंग करते तो अब तक फलाँ होते या और कुछ नहीं तो पिता जी तुम्हें विद्युत विभाग में तो लगवा ही देते कह सुन कर.

खैर समय रहते फाईनल भी कर लिया. सी ए बन गये. परिवार ने पैतरा बदल लिया. मैं अनुकरणीय हो गया. लोगों को मेरा उदाहरण दिया जाने लगा कि लगन हो तो इन जैसी. मेहनत कर आदमी क्या नहीं बन सकता.

शहर में प्रेक्टिस चल निकली और धीरे धीरे शहर की सबसे बड़ी सी ए फर्म बन गई. परिवार की आने वाली पीढ़ी का रुझान इन्जिनियरिंग से हट सी ए की तरफ होने लगा. मैं सबका हीरो सा बनने लगा.

अब कठिन समय समाप्त था और सुख के बादल छा गये थे.

अच्छा लगता है जब सूखे के बाद बारिश हो वरना बारिश का आनन्द ही न पता लगे.

तो कठिन समय की भी अपनी अहमियत है. बुरे दिनों के बाद जब अच्छे दिन आते हैं तो उनका आनन्द उससे कहीं ज्यादा होता है बनिस्बत कि यदि हर वक्त सुख ही सुख होता.

27 टिप्‍पणियां:

  1. सी ए के संघर्ष की दास्ताँ या वे जानते हैं या उनके परिजन :)...गिनीज बुक ऑफ़ वार्ड रिकोर्ड्स में सबसे मुश्किल इम्तिहान में इसे शामिल किया गया है !

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  2. एकदम नई राह चुनने पर हमारे अपनों का हमे रोकने का एक मात्र कारन उनका हमारे भविष्य को ले कर चिंतित होना होता है दादा!
    नए रास्ते पर चलना शुरू करते हैं तब अक्सर अकेले होते हैं.....आखिर किसी को तो पहल करनी ही होती है न...बाद में तो फोलोअर्स खूब बन जाते हैं और....पहलकर्ता को हीरो तो बनना ही है सबकी नजर मे.शायद हमारे समय में सबकी कहानी एक सी है.मैंने हिंदी और अंग्रेजी साहित्य क्या बी.ए.में क्या लिया.पाप कर दिया एक बंदा नही था समर्थन में खड़ा होने वाला.पर...... जिद्दी कम न थी.ऐसीच हूँ मैं भी दादा! हा हा हा अच्छा लगा आपके बारे में पढकर.

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  3. ये जो कमेन्ट गायब हो जाते हैं न...मेरा दिमाग फिर जाता है सच्ची! कोई बताए कहाँ चला गया वो! दादा! लव यु.चलो फिर व्यूज़ दूंगी. :)

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  4. जब भी कुछ लीक से हट कर होता है तो सर्वप्रथम विरोध ही होता है पर जब परिणाम आने लगते हैं तो सर्वमान्य हो जाता है यह दस्तूर है ....आभार साझा करने हेतु

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  5. Maine bhi school mein ek bar likha tha ki 'sukh ke badal chha gaye the'. Mujhe kaha gaya tha ki badal dukha ke hote hain sukha ke nahi. Badal andhakar(darkness) lekar aate hain, isliye ve dukha ka ahsas karate hain, sukha ka nahi.

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  6. समीर लाल 'समीर' जी का संस्मरण मुझे अपने जीवन का ही एक अध्याय जैसा लगा।।

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  7. बहुत प्रेरणादायी संस्मरण। अगले जनम में मैं भी सी. ए. बनूँगा।

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  8. सर , नमस्कार , आज जब आपने c. a. की बात की है तो मैं बताना चाहूँगा कि मेरे पिता जी भी सी. ऐ. थे और उन्होंने 1969 में ये exam पास किया था...मैंने भी कोशिश की , लेकिन शायद मेरी मेहनत में कहीं कमी रह गयी और में केवल foundation level pass कर अपनी c.a. articleship hi complete कर पाया...

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  9. पूर्व मे सीए की यही स्थिति थी अब तो थोक के भाव निकल रहे हैं।

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  10. आपने सही कहा वो वक्त ऐसा ही था बहुत मुश्किल से सी ए हुआ करती थी और फ़ेल होना तो शगल हुआ करता था और उन हालात का डटकर मुकाबला कर अपना मुकाम बनाना सच मे काबिल-ए-तारीफ़ है।

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  11. बहाव के विपरीत चलने में मुश्किलें तो आती ही हैं...जग हँसाई होती है सो अलग...लेकिन अपनी मेहनत और लगन से इन कठिनाईयों को पार कर...कामयाब होते हुए बाहर निकलने में जो मज़ा है वो किसी और चीज़ में नहीं..

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  12. मेहनत की कड़ी धूप के बाद छाए बादल सुख के ही हो सकते हैं. कई लोग कहते हैं कि सफलता भाग्यशाली लोगों को ही मिलती है, लेकिन वे सफल हुए व्यक्ति की तपस्या और समर्पण को कदाचित भूल जाते हैं. और हाँ, सफलता में उन लोगों का हाथ तो होता ही है जो आप पर विश्वास करते हैं परन्तु उनका श्रेय अधिक होता है जो आप को कम आंकते हैं और आपके समक्ष चुनौती पेश करते हैं.

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  13. अब तो आप केवल घर वालों के लिए ही रोल मॉडल नहीं रहे ब्लॉगिंग के भी रोल मॉडल हैं !

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  14. हमारे देश में अब भी खानदानी विषय ही पढ़े जाते हैं व खानदानी पेशा ही अपनाया जाता है.आपने लीक से हटकर अपने परिवार के बालकों को एक और चॉईस दे दी.
    घुघूतीबासूती

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  15. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    घूम-घूमकर देखिए, अपना चर्चा मंच
    लिंक आपका है यहीं, कोई नहीं प्रपंच।।
    --
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार के चर्चा मंच पर लगाई गई है!

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  16. माता-पिता की इच्छानुरूप नहीं चलने वालों को स्वयं को इसी तरह सिद्ध करना पड़ता है ! पहले उन्हें सबकी कटु आलोचना झेलनी पड़ती है और फिर धीरे-धीरे वे सबके लिये मिसाल बन जाते हैं ! आपने बहुत बढ़िया संस्मरण सुनाया समीर जी ! आनंद आ गया !

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  17. संस्मरण प्रेरणादायक है नौजवानों के लिए,समीर जी.

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  18. Rajeev Chaturvedi ने आपकी पोस्ट " चुनौती जिन्दगी की: संघर्ष भरे वे दिन (११) " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:

    मेहनत की कड़ी धूप के बाद छाए बादल सुख के ही हो सकते हैं. कई लोग कहते हैं कि सफलता भाग्यशाली लोगों को ही मिलती है, लेकिन वे सफल हुए व्यक्ति की तपस्या और समर्पण को कदाचित भूल जाते हैं. और हाँ, सफलता में उन लोगों का हाथ तो होता ही है जो आप पर विश्वास करते हैं परन्तु उनका श्रेय अधिक होता है जो आप को कम आंकते हैं और आपके समक्ष चुनौती पेश करते हैं.

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  19. Mired Mirage ने आपकी पोस्ट " चुनौती जिन्दगी की: संघर्ष भरे वे दिन (११) " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:

    हमारे देश में अब भी खानदानी विषय ही पढ़े जाते हैं व खानदानी पेशा ही अपनाया जाता है.आपने लीक से हटकर अपने परिवार के बालकों को एक और चॉईस दे दी.
    घुघूतीबासूती

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  20. वन्दना ने आपकी पोस्ट " चुनौती जिन्दगी की: संघर्ष भरे वे दिन (११) " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:

    आपने सही कहा वो वक्त ऐसा ही था बहुत मुश्किल से सी ए हुआ करती थी और फ़ेल होना तो शगल हुआ करता था और उन हालात का डटकर मुकाबला कर अपना मुकाम बनाना सच मे काबिल-ए-तारीफ़ है।

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  21. indu puri ने आपकी पोस्ट " चुनौती जिन्दगी की: संघर्ष भरे वे दिन (११) " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:

    एकदम नई राह चुनने पर हमारे अपनों का हमे रोकने का एक मात्र कारन उनका हमारे भविष्य को ले कर चिंतित होना होता है दादा!
    नए रास्ते पर चलना शुरू करते हैं तब अक्सर अकेले होते हैं.....आखिर किसी को तो पहल करनी ही होती है न...बाद में तो फोलोअर्स खूब बन जाते हैं और....पहलकर्ता को हीरो तो बनना ही है सबकी नजर मे.शायद हमारे समय में सबकी कहानी एक सी है.मैंने हिंदी और अंग्रेजी साहित्य क्या बी.ए.में क्या लिया.पाप कर दिया एक बंदा नही था समर्थन में खड़ा होने वाला.पर...... जिद्दी कम न थी.ऐसीच हूँ मैं भी दादा! हा हा हा अच्छा लगा आपके बारे में पढकर.

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  22. अपने ढंग से जीवन जीने की लगन ही संघर्ष का रूप धारण कर लेती है हमारे समाज में..प्रेरक कथा।

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  23. प्रवीण पाण्डेय ने आपकी पोस्ट " चुनौती जिन्दगी की: संघर्ष भरे वे दिन (११) " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:

    अपने ढंग से जीवन जीने की लगन ही संघर्ष का रूप धारण कर लेती है हमारे समाज में..प्रेरक कथा।

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  24. पंख होने से कुछ नहीं होता...हौसलों से उड़ान होती है...आपकी लगन और विश्वास अनुकरणीय है...

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  25. लगन थी तो संघर्ष आपके जीवन में रंग लाया ....

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