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मंगलवार, 3 जून 2014

माँ तुझे सलाम ! (16)





                क्या स्मृतियों में सजी बसी माँ को ऐसे ही कवि कविता में ढाल कर प्रस्तुत कर देता है।  ये ही स्मृति शेष कही जाती हैं।  आज इस विषय में क्या कहा जाय स्वयं संजीव वर्मा "सलिल " जीने सब कुछ कह दिया है।  


Sanjiv Verma 'salil'


स्मृति-गीत माँ के प्रति: संजीव * 
अक्षरों ने तुम्हें ही किया है नमन 
शब्द ममता का करते रहे आचमन
 वाक्य वात्सल्य पाकर मुखर हो उठे-
 हर अनुच्छेद स्नेहिल हुआ अंजुमन

 गीत के बंद में छंद लोरी मृदुल 
और मुखड़ा तुम्हारा ही आँचल धवल
 हर अलंकार माथे की बिंदी हुआ-
 रस भजन-भाव जैसे लिए चिर नवल 

 ले अधर से हँसी मुक्त मुक्तक हँसा
 मौन दोहा हृदय-स्मृति ले बसा
 गीत की प्रीत पावन धरोहर हुई-
 मुक्तिका ने विमोहा भुजा में गसा 

लय विलय हो तुम्हीं सी सभी में दिखी
 भोर से रात तक गति रही अनदिखी 
यति कहाँ कब रही कौन कैसे कहे-
 पीर ने धीर धर लघुकथा नित लिखी

 लिपि पिता, पृष्ठ तुम, है समीक्षा बहन
 थिर कथानक अनुज, कथ्य तुमको नमन 
रुक! सखा चिन्ह कहते- 'न संजीव थक'
 स्नेह माँ की विरासत हुलस कर ग्रहण

 साधना माँ की पूनम बने रात हर 
वन्दना ओम नादित रहे हर प्रहर 
प्रार्थना हो कृपा नित्य हनुमान की 
अर्चना कृष्ण गुंजित करें वेणु-स्वर 

माँ थी पुष्पा चमन, माँ थी आशा-किरण
 माँ की सुषमा थी राजीव सी आमरण 
माँ के माथे पे बिंदी रही सूर्य सी- 
माँ ही जीवन में जीवन का है अवतरण *

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार (04-06-2014) को "आ तुझको मैं अपनी कूची में उतार लूँ " (चर्चा मंच 1633) पर भी है!
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. माँ को समर्पित बहुत सुन्दर प्रस्तुति....

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  3. अत्यंत सुंदर काव्यमयी भावांजलि माँ को ! इससे अधिक कोमल एवं भावपूर्ण व्याख्या अन्यत्र कहाँ अनुभूत हो सकती है ! बहुत ही सुंदर !

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