वर्तमान समय बच्चों , अभिभावकों , शिक्षकों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। वैसे तो अब शिक्षा सत्र के बदल जाने से कुछ परिवर्तन आ ही गया है लेकिन फिर भी एक लम्बी छुट्टी के बाद बच्चों को स्कूल आने पर कुछ नया उत्साह रहता है। यद्यपि सत्र अप्रैल से शुरू होने लगा है लेकिन जुलाई का महीना भी प्रवेश की दृष्टि से , नए स्कूल की दृष्टि से और नए माहौल में नए बच्चों के लिए महत्वपूर्ण होता है।
अबोध बच्चों को एक नया ज्ञान और दिशा शिक्षक को देनी होती है और बच्चों के लिए घर की चहारदीवारी से निकल कर और माँ को छोड़ कर कहीं और, किसी और के साथ रहना और रुकना थोड़ा मुश्किल होता है लेकिन समय के साथ शिक्षक माँ बन कर , दोस्त बन कर और भाई बहन की भूमिका निभा कर बच्चों को स्कूल में मन लगाने में सहायक होती है।
आज के सन्दर्भ में जब कि स्कूल , शिक्षा , शिक्षक , बच्चों की सुरक्षा , स्कूल वाहन , उस वाहन के चालक , स्कूक का पाठेतर कर्मचारी , स्कूल की इन सब के बारे जिम्मेदारी को सुनिश्चित करना बहुत जरूरी हो गया है। अभिभावक आपने नौनिहालों को घर से स्कूल की सुरक्षा में भेजते हैं तो घर से निकल कर घर पर आने तक की जिम्मेदारी सम्बद्ध लोगों की बनती है। इसके लिए अभिभावकों , स्कूल , शिक्षक की जिम्मेदारियों को किस तरह से सुनिश्चित करना है , इसको एक विहंगम दृष्टि डाल कर देखेंगे।
1. अभिभावक की सतर्कता : स्कूल बच्चे को एक सुनहरे भविष्य को देने का वो रास्ता है जिसमें रहकर वह बहुत कुछ सीख कर आगे बढ़ता है , लेकिन आप को अपने बच्चे को प्रवेश देने से पहले इन बातों को ध्यान रखना होगा :--
(i ) स्कूल के पिछले सालों की साख के बारे में पता कर लें। वहां के शिक्षक /शिक्षिकाओं की शैक्षिक पृष्ठभूमि के विषय में जानकारी लें।
(ii ) स्कूल का अगर अपना वाहन है तो उसके चालक और परिचालक के अतिरिक्त और उसमें जो सहायक रहता हो , उसकी पृष्ठभूमि के विषय में जानकारी लें। उनकी आदतों के विषय में जानकारी लें कि उनमें से कोई मादक पदार्थों का सेवन करने वाला न हो।
(iii ) स्कूल वाहन के विषय में भी जानकारी रखें। वह कितना पुराना है ? उसमें आवश्यकता से अधिक बच्चे तो नहीं ले जाए जा रहे हैं। छोटे वाहन जैसे वैन , ऑटो रिक्शा , बैटरी रिक्शा या विशेष रूप से तैयार करवाए गए स्कूल रिक्शे की भी पूरी जानकारी होनी चाहिए। पुराने वाहन कमजोर और सुरक्षा तिथि के बाद भी आवश्यकता से अधिक बच्चे भर कर चलाये जाते हैं वे खतरे से खाली नहीं होते, इनमें दुर्घटना की संभावना अधिक होती है।।
(vi ) आप अपने बच्चे को भी पूरी तरह से सतर्क रहने के लिए कहें। अबोध बच्चे कभी कभी वाहन चालकों या स्कूल के कर्मचारियों के द्वारा विभिन्न तरीके से शोषित किये जा सकते हैं , अतः उन्हें इस दिशा में समझा कर रखें।
(v ) स्कूल छुट्टी में बच्चों के जाने के बारे में कितने सतर्क हैं। वहां के सतर्कता विभाग के मोबाइल नंबर लेकर रखें। अपने बच्चे को छुट्टी में अगर वह स्कूल वाहन से नहीं आता है तो आने के साधन और व्यक्ति के विषय में पूरा विवरण वहां जमा कर रखें ताकि कोई गलती न हो।
स्कूल की सतर्कता :-
स्कूल की भी एक गहन जिम्मेदारी होती है , उन बच्चों के प्रति जो स्कूल में आते हैं। उनकी सुरक्षा , उनका स्वास्थ्य , उनका भविष्य और उनका चरित्र निर्माण सब उनकी जिम्मेदारी है। इसके लिए स्कूल के जिम्मेदार लोगों को तीव्र सतर्कता बरतनी चाहिए। वे इस देश के भविष्य को एक आकार देने के प्रति जवाबदेह होते हैं। सिर्फ निजी स्वार्थ और लाभ का साधन स्कूल नहीं होते हैं।
(i ) बच्चों के प्रति स्कूल वैसे तो सभी सावधानी बरत रहे हैं कि बच्चों को स्कूल की छुट्टी से पहले या बाद में किसी भी अपरिचित के साथ न भेजा जाय। अभिभावकों के विषय में जानकारी दर्ज करके रखते हैं कि बच्चे को वाहन न होने की स्थिति में किसके साथ भेजा जाय । बस होने की स्थिति में शिक्षक या शिक्षिका इसके लिए जिम्मेदार हों और बस में अपने सामने बच्चों को बस के अंदर बिठायें।
(ii ) जहाँ तक संभव हो हर बस में एक शिक्षिका का होना भी जरूरी हो ताकि बच्चे अगर कोई तकलीफ या भय महसूस करें तो उनसे कह सकें। शिक्षिका के होने से बस के चालक और परिचालक पर अंकुश रहता है। न वे मादक द्रव लेते हैं और न ही बस में तेज ध्वनि में संगीत चला कर बस चलाते हैं। जो कि दुर्घटना का प्रमुख कारण बन जाता है।
(iii ) बच्चों पर अनावश्यक पुस्तकों का बोझ न बढ़ाएं। शिक्षण पद्धति इस प्रकार की होनी चाहिए ताकि अभिभावकों को अलग से कोचिंग का अनावश्यक भार न उठाना पड़े। होमवर्क का अनावश्यक भार भी न हो , जिससे कि बच्चों के लिए खेलने कूदने का समय भी मिल सके।
(vi ) शिक्षकों द्वारा बच्चों के आर्थिक स्तर को लेकर भेदभाव न किया जाय। बच्चों को भेदभाव का सामना स्कूल में किसी भी स्तर पर न करना पड़े क्योंकि यहीं से बच्चों में हीन भावना और उच्चता की भावना का विकास होने लगता है।
(v ) विद्यालय में नैतिक शिक्षा और शारीरिक शिक्षा को भी महत्वपूर्ण स्थान देना चाहिए। बच्चों के विकास में शिक्षण के साथ साथ इन गतिविधियों का भी महत्वपूर्ण स्थान भूमिका होती है
छात्रों की भूमिका :- स्कूल में अभिभावक या स्कूल के अतिरिक्त छात्रों का भी कुछ दायित्व होता है। वे छात्र जो ऊँची कक्षाओं में होते हैं , उन्हें छोटे बच्चों का सहयोग करना चाहिए न कि रैगिंग जैसी निंदनीय व्यवहार का उन्हें शिकार बनाया जाय। आपकी तरह से वे भी शिक्षा ग्रहण करने आये हैं तो उनका मार्गदर्शन करके उन्हें भी आगे का मार्ग दिखाना चाहिए। स्कूल को एक परिवार की तरह मानना चाहिए जिसमें बड़े आदर्श प्रस्तुत करते हैं।
स्कूल चाहे छोटे हों या बड़े , सरकारी हों या फिर निजी उनका स्तर और सुविधाएँ देख कर ही बच्चों को प्रवेश दिलवाएं। ये कल के भविष्य है , इन्हें समुचित विकास और ज्ञान वाली शिक्षा मिलनी चाहिए।
अबोध बच्चों को एक नया ज्ञान और दिशा शिक्षक को देनी होती है और बच्चों के लिए घर की चहारदीवारी से निकल कर और माँ को छोड़ कर कहीं और, किसी और के साथ रहना और रुकना थोड़ा मुश्किल होता है लेकिन समय के साथ शिक्षक माँ बन कर , दोस्त बन कर और भाई बहन की भूमिका निभा कर बच्चों को स्कूल में मन लगाने में सहायक होती है।
आज के सन्दर्भ में जब कि स्कूल , शिक्षा , शिक्षक , बच्चों की सुरक्षा , स्कूल वाहन , उस वाहन के चालक , स्कूक का पाठेतर कर्मचारी , स्कूल की इन सब के बारे जिम्मेदारी को सुनिश्चित करना बहुत जरूरी हो गया है। अभिभावक आपने नौनिहालों को घर से स्कूल की सुरक्षा में भेजते हैं तो घर से निकल कर घर पर आने तक की जिम्मेदारी सम्बद्ध लोगों की बनती है। इसके लिए अभिभावकों , स्कूल , शिक्षक की जिम्मेदारियों को किस तरह से सुनिश्चित करना है , इसको एक विहंगम दृष्टि डाल कर देखेंगे।
1. अभिभावक की सतर्कता : स्कूल बच्चे को एक सुनहरे भविष्य को देने का वो रास्ता है जिसमें रहकर वह बहुत कुछ सीख कर आगे बढ़ता है , लेकिन आप को अपने बच्चे को प्रवेश देने से पहले इन बातों को ध्यान रखना होगा :--
(i ) स्कूल के पिछले सालों की साख के बारे में पता कर लें। वहां के शिक्षक /शिक्षिकाओं की शैक्षिक पृष्ठभूमि के विषय में जानकारी लें।
(ii ) स्कूल का अगर अपना वाहन है तो उसके चालक और परिचालक के अतिरिक्त और उसमें जो सहायक रहता हो , उसकी पृष्ठभूमि के विषय में जानकारी लें। उनकी आदतों के विषय में जानकारी लें कि उनमें से कोई मादक पदार्थों का सेवन करने वाला न हो।
(iii ) स्कूल वाहन के विषय में भी जानकारी रखें। वह कितना पुराना है ? उसमें आवश्यकता से अधिक बच्चे तो नहीं ले जाए जा रहे हैं। छोटे वाहन जैसे वैन , ऑटो रिक्शा , बैटरी रिक्शा या विशेष रूप से तैयार करवाए गए स्कूल रिक्शे की भी पूरी जानकारी होनी चाहिए। पुराने वाहन कमजोर और सुरक्षा तिथि के बाद भी आवश्यकता से अधिक बच्चे भर कर चलाये जाते हैं वे खतरे से खाली नहीं होते, इनमें दुर्घटना की संभावना अधिक होती है।।
(vi ) आप अपने बच्चे को भी पूरी तरह से सतर्क रहने के लिए कहें। अबोध बच्चे कभी कभी वाहन चालकों या स्कूल के कर्मचारियों के द्वारा विभिन्न तरीके से शोषित किये जा सकते हैं , अतः उन्हें इस दिशा में समझा कर रखें।
(v ) स्कूल छुट्टी में बच्चों के जाने के बारे में कितने सतर्क हैं। वहां के सतर्कता विभाग के मोबाइल नंबर लेकर रखें। अपने बच्चे को छुट्टी में अगर वह स्कूल वाहन से नहीं आता है तो आने के साधन और व्यक्ति के विषय में पूरा विवरण वहां जमा कर रखें ताकि कोई गलती न हो।
स्कूल की सतर्कता :-
स्कूल की भी एक गहन जिम्मेदारी होती है , उन बच्चों के प्रति जो स्कूल में आते हैं। उनकी सुरक्षा , उनका स्वास्थ्य , उनका भविष्य और उनका चरित्र निर्माण सब उनकी जिम्मेदारी है। इसके लिए स्कूल के जिम्मेदार लोगों को तीव्र सतर्कता बरतनी चाहिए। वे इस देश के भविष्य को एक आकार देने के प्रति जवाबदेह होते हैं। सिर्फ निजी स्वार्थ और लाभ का साधन स्कूल नहीं होते हैं।
(i ) बच्चों के प्रति स्कूल वैसे तो सभी सावधानी बरत रहे हैं कि बच्चों को स्कूल की छुट्टी से पहले या बाद में किसी भी अपरिचित के साथ न भेजा जाय। अभिभावकों के विषय में जानकारी दर्ज करके रखते हैं कि बच्चे को वाहन न होने की स्थिति में किसके साथ भेजा जाय । बस होने की स्थिति में शिक्षक या शिक्षिका इसके लिए जिम्मेदार हों और बस में अपने सामने बच्चों को बस के अंदर बिठायें।
(ii ) जहाँ तक संभव हो हर बस में एक शिक्षिका का होना भी जरूरी हो ताकि बच्चे अगर कोई तकलीफ या भय महसूस करें तो उनसे कह सकें। शिक्षिका के होने से बस के चालक और परिचालक पर अंकुश रहता है। न वे मादक द्रव लेते हैं और न ही बस में तेज ध्वनि में संगीत चला कर बस चलाते हैं। जो कि दुर्घटना का प्रमुख कारण बन जाता है।
(iii ) बच्चों पर अनावश्यक पुस्तकों का बोझ न बढ़ाएं। शिक्षण पद्धति इस प्रकार की होनी चाहिए ताकि अभिभावकों को अलग से कोचिंग का अनावश्यक भार न उठाना पड़े। होमवर्क का अनावश्यक भार भी न हो , जिससे कि बच्चों के लिए खेलने कूदने का समय भी मिल सके।
(vi ) शिक्षकों द्वारा बच्चों के आर्थिक स्तर को लेकर भेदभाव न किया जाय। बच्चों को भेदभाव का सामना स्कूल में किसी भी स्तर पर न करना पड़े क्योंकि यहीं से बच्चों में हीन भावना और उच्चता की भावना का विकास होने लगता है।
(v ) विद्यालय में नैतिक शिक्षा और शारीरिक शिक्षा को भी महत्वपूर्ण स्थान देना चाहिए। बच्चों के विकास में शिक्षण के साथ साथ इन गतिविधियों का भी महत्वपूर्ण स्थान भूमिका होती है
छात्रों की भूमिका :- स्कूल में अभिभावक या स्कूल के अतिरिक्त छात्रों का भी कुछ दायित्व होता है। वे छात्र जो ऊँची कक्षाओं में होते हैं , उन्हें छोटे बच्चों का सहयोग करना चाहिए न कि रैगिंग जैसी निंदनीय व्यवहार का उन्हें शिकार बनाया जाय। आपकी तरह से वे भी शिक्षा ग्रहण करने आये हैं तो उनका मार्गदर्शन करके उन्हें भी आगे का मार्ग दिखाना चाहिए। स्कूल को एक परिवार की तरह मानना चाहिए जिसमें बड़े आदर्श प्रस्तुत करते हैं।
स्कूल चाहे छोटे हों या बड़े , सरकारी हों या फिर निजी उनका स्तर और सुविधाएँ देख कर ही बच्चों को प्रवेश दिलवाएं। ये कल के भविष्य है , इन्हें समुचित विकास और ज्ञान वाली शिक्षा मिलनी चाहिए।
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, चैन पाने का तरीका - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंबड़े से बड़े प्रतिष्ठित स्कूलों में बच्चों के साथ अपराध होते रहते हैं और जिनमें से ज़्यादातर तो प्रकाश में ही नहीं आते. ड्राईवर, कंडक्टर, चौकीदार, चपरासी के अलावा पीड़ित बच्चे से उम्र में बड़े छात्र-छात्राएं और कभी-कभी अध्यापक भी ऐसे कुकृत्यों में लिप्त पाए जाते हैं. हमको बच्चे के स्कूल के चयन में सावधानी ज़रूर बरतनी चाहिए पर सर्वथा सुरक्षित स्कूल तो दुनिया में कोई है ही नहीं.
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