www.hamarivani.com

शुक्रवार, 15 मई 2020

विश्व परिवार दिवस !

आज विश्व परिवार दिवस है और यह भी पाश्चात्य सभ्यता से परिचय के बाद मनाने की हमारे देश में आवश्यकता हुई क्योंकि हम सदैव से संयुक्त परिवार और वृहत् परिवार को मान्यता देते रहे और इसीलिए परिवार की यह परिकल्पना विदेशों में बहुत ही इज्जत के साथ  देखी जाती है,  लेकिन जैसे-जैसे हम विदेशी सभ्यता के संपर्क में आए और हमारे ऊपर  उच्च शिक्षा के बाद शहरी संस्कृति का प्रभाव पड़ा तो नई पीढ़ी ने एकल परिवार की परिभाषा  समझी।  वे संयुक्त परिवार  की बजाए एकल परिवार में ज्यादा सुख खोजने लगे,  ऐसे में हमारे देश की प्राचीन संस्कृति की धरोहर संयुक्त परिवार टूटने लगे । उनके बीच जो प्रेम और सद्भावना थी उसका ह्रास होने लगा, धीरे धीरे सुख और दुख सभी में शामिल होने के लिए लोगों ने भागीदारी से कटना आरंभ कर दिया और हमारी उस परिवार की जो छवि थी वह धूमिल हो गई। लेकिन हमारी जहाँ जहाँ जड़ें हैं, शाखाएं चाहे जितनी दूर-दूर तक फैल जाए हमें अपना जीवन अपनी जड़ों से ही प्राप्त होता है । उनके बिना हम जी नहीं सकते । 
          आज जब एक भयंकर स्थिति ने  संपूर्ण विश्व को घेर रखा है तो लॉक डाउन के कारण और घर से बाहर निकले परिवारों को फिर से अपना घर याद आने लगा और धरती मां या जन्मभूमि कभी इतनी निष्ठुर नहीं होती कि  यदि उनके बच्चे उन्हें छोड़कर चले जाएं और संकट में वे लौटें तो उन्हें शरण देने से इनकार कर दे और इसी का परिणाम है कि हजारों लाखों की संख्या में प्रवासी अपने घर की ओर चल दिए  क्योंकि उनको विश्वास है  कि मजदूर या कामगर वापस अपने घर की ओर आ रहे हैं , पैदल चलकर, ट्रेनों में भरकर, बसों में भरकर या जिसको जो भी साधन मिला वह अपनाकर  जन्म भूमि की ओर चल दिए। उनको यह विश्वास था कि उन्हें अपने परिवार में शरण मिलेगी और उनके भूखे मरने की  नौबत नहीं आएगी चाहे पूरा परिवार आधी आधी रोटी खाए लेकिन परिवार के हर सदस्य को खाना मिलेगा, कपड़े मिलेंगे और एक छत के नीचे छाया मिलेगी । हो सकता है घर के अंदर परिवार की  तीन या चार पीढ़ियाँ आज की आपको मिले और उनके अंदर मतभेद भले ही हो लेकिन मनभेद नहीं हो । जब व्यक्ति अपना-अपना स्वार्थ देखने लगता है तंभी परिवार में दरार आना शुरू हो जाती  और परिवार बिखरने लगता है , लेकिन आपातकाल में वही परिवार किसी न किसी रूप में साथ देता है और जो साथ नहीं देता है वह अपने को इस दुनिया की भीड़ में अकेला खड़ा हुआ पाता है । आज जबकि इंसान के जीवन कोई भी निश्चित नहीं रह गई तब वह वापस अपनी जड़ों की ओर भागने लगा है क्योंकि अगर परदेश में उसको कुछ हो जाता है तो उसका परिवार घर में शरण पाएगा और महानगरों की सड़कों पर उसको ठोकर नहीं खानी पड़ेगी । इसीलिए परिवार को  महत्व दिया जाता है ।
          विश्व की इस त्रासदी ने कुछ भी न किया हो , इंसान को अपनी जड़ों से मिला दिया है ।

8 टिप्‍पणियां:

  1. परिवार की यही भावना लॉकडाउन के बाद भी बनी रहे, तो समाज के लिए हितकर होगा.

    जवाब देंहटाएं
  2. सार्थक लेख ,परिवार की महत्ता को समझना जरूरी है ,आज सब जिस मुश्किल घड़ी से गुजर रहे है ,उसमें सबका परिवार ही साथ दे रहा है ।बधाई हो दीदी

    जवाब देंहटाएं
  3. हाँ दीदी। सालों बाद लोगों को एकदम फुरसत में साथ रहने का मौक़ा मिला है तो त्रासदी को इसी सकारात्मक सोच के साथ जोड़ना बेहतर।

    जवाब देंहटाएं
  4. आज प्रकृति ने सबको अपने परिवारों के बीच उनके करीब ला दिया और इस तरह से ला दिया जो शायद इंसान समाज लाख कोशिशों के बाद भी नहीं कर पाता | सच तो यही है की हमने जबसे अपने परिवार और संस्कार दोनों से दूरी बनाई है तभी से इंसानियत और सभ्यता का पतन होता जा रहा है जाने इंसान को कब अक्ल आएगी |

    जवाब देंहटाएं
  5. सटीक और सामयिक आलेख. कहीं अपनापन बढ़ गया तो कहीं दूरी बढ़ी. पर परिवार का अपना अस्तित्व है.

    जवाब देंहटाएं

ये मेरा सरोकार है, इस समाज , देश और विश्व के साथ . जो मन में होता है आपसे उजागर कर देते हैं. आपकी राय , आलोचना और समालोचना मेरा मार्गदर्शन और त्रुटियों को सुधारने का सबसे बड़ा रास्ताहै.