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रविवार, 24 मई 2020

प्रवासियों का दर्द !


           कोरोना ने सम्पूर्ण देश में ऐसे पैर पसारे कि हर तरफ त्राहि त्राहि मच रही है। लम्बे लॉक डाउन ने उनको खाने पीने के लिए मजबूर कर दिया , जब भूखों मरने की नौबत आ गयी तो उन्हें घर याद आया और सोचा कि  अगर मरना ही है तो अपने घर पहुँच कर अपनों के बीच मरेंगे।  उनकी जिजीविषा ही  थी , जो उनको बिना साधनों के सैकड़ों मील के दूरी पैदल नापने के लिए तैयार हो गए।  चल दिए अपने सारे साजो सामान लेकर।  गर्भवती पत्नी , दुधमुंहे बच्चे , वृद्ध माता - पिता को लेकर जहाँ से जो साधन मिला चले आ  रहे हैं।

                        इनके सामने कल अपने घर पहुँच कर भी ढेरों समस्याओं का सामना करने का एक भयावह सवाल खड़ा होगा ।    अभी तो एक नरक से छूट कर अपने घर की शीतल छाँव में पहुँच कर चैन की साँस लेंगे, कम से कम पेट भर कर खाना तो नसीब होगा। इसी तरह के सपनों में डूबे सभी चले जा रहे थे , घर की डगर बहुत दूर लग रही थी लेकिन मन में  खुशी तो थी।

अपनों का बदला रुख :-  
                                       अपना आशियाना छोड़ कर वह लोग आ रहे हैं यह सूचना तो उनको मिल ही चुकी है लेकिन  घर में अफरा तफरी मची हुई होगी कि ये लोग जितना लम्बा रास्ता तय करके आ रहे हैं --
- कहीं कोरोना किसी के साथ न आ जाय?
- हमारे अपने भी तो बाल बच्चे हैं , कहीं कुछ हो गया तो हम क्या करेंगे ?
- पता नहीं कितने लोग साथ आ रहे होंगे ?
- क्या पता  उनमें किसी कोरोना न हो फिर हम क्या करेंगे ?
- क्या उतनी आत्मीयता से मिल पायेंगे ?
                आने वाले इन सारे  प्रश्नों के बारे में सैकड़ों मील की पैदल  या  विभिन्न साधनों से आ रहे हैं , एक शांति लिए मन में कि घर पहुँच जाएँ तब चैन की सांस लेंगे। वो जिस  चैैन की साँस की आशा लेकर आ रहे हैं वह मिलेगी या नहीं। ये तो उनका भाग्य ही निश्चित करेगा ।

  कोरन्टाइन की अवधि :-
                                      कोरंटाइन की अवधि भी किसी अग्नि  परीक्षा से कम न थी. अपने गाँव शहर से बाहर किसी भी जगह  रखा जाएगा , जहाँ न खाने पीने का की समय होगा और न रहने सोने की पर्याप्त व्यवस्था। एक लम्बी अग्नि परीक्षा। इस वक़्त न वे  बाहर के ही हैं और न ही घर गाँव के।  कब वह पहुँच पाएंगे ?  उन्हें लग रहा था कि वे इस देश के निवासी ही नहीं हैं।  फिर भी घर जमीन तक पहुँचने में अभी कुछ और बाकी था। 

घर का कोरन्टाइन :- 

                              घर पहुँच कर सब   घर  बाहर ही मिले और उसको कह दिया गया कि वह ऊपर बनवाए हुए कमरे में अपने सामान सहित चले जाएँ।  
- देखो अभी अभी तुम बाहर आ रहे हो, पता नहीं कितने लोगों के साथ में सफर करके आ रहे हो तो अभी फिलहाल कुछ दिनों तक तो तुमको हम सबसे दूर रहना ही चाहिए। 
- खाना तुम्हें ऊपर ही मिल जाया करेगा।  पूरे घर में घूमने के जरूरत नहीं है। 
-  फिर तुम्हें कौन सा यहाँ हमेशा रहना है , बीमारी ख़त्म हो जायेगी तो वापस चले ही जाना है। 
                       कितने कष्टों से जूझते हुए वह लोग घर आये थे और घर में आकर ये नया कोरन्टाइन भी झेलना पड़ेगा इसकी तो कल्पना भी नहीं की थी।  वहाँँ से चले थे कि  बस अब और नहीं अपने घर में चलकर ही रहेंगे। अपनी मेहनत को घर में लगा कर काम कर लेंगे तो फिर दर दर नहीं भटकना पड़ेगा। पर यहाँ पर अछूतों जैसा व्यवहार कर रहे हैं घर वाले।  ये पक्का आँगन , कमरे , कुँए की जगत सब कुछ उसके भेजे पैसे से ही बने हैं लेकिन लग ये रहा है कि वे अवांछित मेहमान होंं।                              

सम्बन्धों में दरार :-
                             यह वही घर और  माता-पिता और भाई, बहन हैं , जो इससे पहले घर आने पर आगे पीछे घूमते रहते थे। किसी को भाई के कपड़े पसंद है तो ले लिए , भाभी की साड़ी जिसे पसंद आई ले ली कि वे वहाँ  जाकर और ले लेंगे । आज सब कटे कटे फिर रहे हैं। अब वापस नहीं जाना है । ये सुन कर सब चुप हैं


                         

         इस महामारी के काल में जब इंसान के लिए खाने पीने का ठिकाना न रहे तो वह वापस तो अपने घर ही आएगा। लेकिन और भाई जो खेती पर ऐश कर रहे थे , भाई के आने से उनका हिस्सा भी लगेगा , ये सोचकर दुखी थे । बार बार सभी उसको यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि महामारी ठीक होने तक वह गाँव में रहे फिर वापस चले जाएँ।  वहाँँ ज्यादा कमाई है और यहाँ पर खेती में क्या होता है ? सैकड़ो मील पैदल , ट्रक, ट्रैक्टर पता नहीं कैसे कैसे सफर की ? अभी पैरों के छाले रिस ही रहे थे कि दिल के छाले पड़ने लगे । उसे जमीन पर घर पर उसका भी तो अधिकार बनता है लेकिन जिस चीज को कुछ लोग पूरे अधिकार से प्रयोग कर रहे थे और उसका कोई दूसरा भी प्रयोग करने वाला आ जाय तो अगले  को खलेगा ही। जो सैकड़ों मील की सफर करके किसी तरह से घर पहुंचा हो और घर में वो पहले वाला  सम्मान और प्यार अपने लोगों से न मिले तो स्वाभाविक है कि उसके लिए दूसरा झटका सहना आसान नहीं हो सकता है।  ये त्रासदी भी सहना आसान नहीं है।

भविष्य का प्रश्न :-
                           अब जो घर लौटे हैं तो वापस जाने के लिए नहीं । शहर की चकाचौंध गाँव वालों को समझ आती है । वहाँ की हाड़ तोड़ मेहनत किसे दिखेगी ? अब गाँव में स्कूल हैं, सड़कें हैं तो दुकान भी डाल लेंगे तो वहाँ से अच्छे तब भी रह लेंगे।  न मकान का किराया लगना है ।  खाने पीने के लिए खेती से मिल ही जाएगा।  बहुत दिनों तक घर और घर वालों से दूर रह लिए, अब  अपनी घर जमीन पर ही रहेंगे।  खुदा न खास्ता कोरोना हो जाता तो ये पत्नी , बच्चे तो कहीं के न रहते।  कहाँ किस अस्पताल में पड़ा होता और अगर मर मरा जाता तो फिर किसी को शक्ल भी देखने को न मिलती। यही रोड के किनारे कोई दुकान डाल लूँगा।   इतनी कमाई तो हो ही जायेगी कि सारे खर्चे आराम से निबट जायेगे। अगर दुकान न चली तो फिर क्या करेंगे? घर पहुँच कर भी उन लोगों को चैन नहीं मिल रहा है। एक यक्ष प्रश्न अभी प्रवासी मजदूरों के सामने भयानक रूप लिए आज खड़ा है और जब तक हल न मिले ये खड़ा ही रहेगा।
              सरकारी प्रयास कितना काम दे पायेंगी ? इसके लिए इंतजार करना पड़ेगा । अभी सब भविष्य के गर्भ में है ।



9 टिप्‍पणियां:

  1. ये सदी का सबसे भयावह और बड़ा पलायन है। ये जो दर्द हमारे लोगो को जाने अनजाने मिल गए हैं ,उसके लिए मेरे पास शब्द नहीं। ध्यान आकर्षण करने वाली पोस्ट।

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  2. दुःखद परिस्थितियां हैं

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  3. कोरोना से उपजी श्रमिकों के घर लौटने की हर मनोदशा पर बहुत सही चिन्तन है. हर परिस्थिति में डर और दर्द, क्या किया जाए? मन विचलित हो जाता है है यह सब देखकर और सोचकर.

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  4. जो लोग अपने गाँव पहुँचे हैं वहाँ भी सहयोग नहीं मिल रहा इन लोगों को. सबके बीच मौत का भय ऐसे बिठा दिया गया है कि अपने लोग भी अपने नहीं हैं, इस समय.

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  5. बीमारी को इस तरह बढ़ते हुए देखकर सब चिंचित है ,और दूसरी तरफ आर्थिक समस्या ,करे भी तो क्या करे कोई ,समय और ईश्वर पर ही भरोसा है ,जल्द ही वो सबकुछ ठीक कर देगा ,सार्थक पोस्ट

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  6. कोरोना में सबसे अधिक आहत श्रमिक ही हैं।
    मार्मिक प्रस्तुति।

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  7. बहुत सी सामाजिक समस्याएं जनम ले रही हैं ...
    समय के साथ शायद इनका भी समाधान होगा पर अभी तो ...

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  8. बहुत दुखद स्थिति हो गई है। कोरोना से कहीं अधिक खतरनाक।

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