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गुरुवार, 3 फ़रवरी 2022

पुरुष विमर्श - 1

 पुरुष विमर्श - 1


    अभिशाप !


                ऋषि ने अपने पिता से प्रस्ताव रखा था , अपनी पसंद की शादी का । मध्यम वर्गीय पिता ने एक बार समझाया था कि कहाँ वो एक राजपत्रित अधिकारी की बेटी और कहाँ हम ? 

        लेकिन कुछ भाग्य होता है और कुछ भवितव्यता । बेटे की इच्छा के आगे वह भी झुक गये । हमारा क्या ? आज हैं कल तो उसे जीवन बिताना है, पसंद की है तो सुखपूर्वक जीवन चलेगा । माँ ने भी समझाया ।

        सब कुछ विधिवत हुआ । लड़की विदा होकर घर आ गई । पिता ने लड़के को उसकी हैसियत समझा दी । एक नौकर भी साथ भेजा , जो उसका पूरा ध्यान रखेगा। बेटी को लाड़ प्यार से पाला है तो कोई कष्ट न हो ।

         बेटी की खुशी सभी चाहते हैं लेकिन नौकर भेजना ऋषि को अपना अपमान लगा। कंचन उसके साथ पढ़ी थी , जॉब उसने नहीं की थी क्योंकि जितना वेतन मिलता उससे ज्यादा उसका जेबखर्च था।

      ये सब बातें तो ऋषि को बाद में समझ आईं। अपनी पसंद के द्वारा माँ बाप का अपमान न हो , वह कंचन को लेकर अपनी जॉब पर चला गया। 

      अभी एक महीना भी नहीं बीता था कि ऋषि ऑफिस से आया तो उसकी आँखें फटी की फटीं रह गईं। कंचन शॉर्ट पहने ड्रिंक कर रही थी , ऋषि तो शुद्ध शाकाहारी ब्राह्मण परिवार का बेटा था।

       उसने जो प्रक्रिया दिखाई, ऋषि अवाक् । कंचन ने सीधे गालियाँ शुरू कर दीं - वह गालियाँ जो सभ्य परिवार की महिलाएं क्या पुरुष भी नहीं देते। 

    कुछ संवाद तो लिखे ही जा सकते है - 'साले भिखमंगे मेरे बाप की दौलत पर निगाह रखते हो , वह सब कुछ मेरा है । यह सब कुछ कभी देखा था अपने बाप के घर में।'

          उसको शराब उसका नौकर लाकर देता और वह बैठ कर पीती। कुछ दिन घुट घुट कर जिया । मार भी खाई और उसकी हरकतों की वीडियो भी बनाया लेकिन उसकी औकात उसके परिवार से टक्कर लेने की नहीं थी।

          एक दिन ऑफिस से लौटा तो घर में ताला बंद था , वह अपने बाप के पास उड़ गई थी, अपने नौकर सहित। घर पूरा तहस नहस कर गई थी। ऋषि ने फोन किया तो ससुर ने उठाया और बोले - 'अब वह तुम्हारी पत्नी है, उसको कैसे रख सकते हो , तुम जानो।'

        वह बेचारा क्या जाने ?

    पिता के घर साजिश रची और दहेज उत्पीड़न और घरेलू हिंसा का मुकदमा कर दिया । अपने प्रभाव का प्रयोग करके नौकरी से भी निकलवा दिया और ऋषि वापस घर आ गया। पिता मुकदमे की पैरवी के लिए बार बार भागने लगे । हृदय रोग और उच्च रक्तचाप के मरीज पिता बार बार भागते सो शारीरिक और मानसिक रूप से टूट रहे थे , लेकिन बेटे को तनाव और अवसाद से बचाने के लिए खुद ही भाग रहे थे और अपने को मजबूत भी दिखा रहे थे।

           आखिर में वकील को सौंप कर घर में बैठ गये। वह तलाक देने को तैयार न थी और ऋषि साथ रख पाने में असमर्थ था।

        परिवार का हर सदस्य मानसिक तनाव में था । एक दिन माँ को ब्रेन हैमरेज हो गया । एक महीने तक जीवन और मृत्यु के बीच झूलते हुए वे विदा हो गईं। पिता की आधी शक्ति जाती रही। । बिल्कुल टूट गये और बच्चे भी।

        किसी तरह ऋषि को नौकरी मिल गई और वो पिता सहित गृहनगर छोड़कर नौकरी वाले शहर में जाकर बस गया । संब कुछ बिखर चुका था । पिता की लेखनी सूख गई, जिंदगी इतने टुकड़ों में बिखर चुकी थी कि भावनाओं के टुकड़े इधर उधर बिखर गए।

            ऋषि एक मुखौटा ओढ़े पिता को सांत्वना देता एक लड़ाई लड़ रहा है , एक अंतहीन लड़ाई ।

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत जरूरी मुद्दा उठाया. आजकल स्त्री विमर्श के दौर में पुरुष विमर्श की भी आवश्यकता उत्पन्न हो गयी है.

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  2. आजकल इस तरह के बहुत केस आने लगे हैं

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