झाँसे का मनोविज्ञान !
झाँसा आज के युग में ही नहीं बल्कि ये प्राचीन काल से चला आ रहा है और इससे जुड़ा हुआ रहता कोई एक अपराध , जो कि इसका जनक होता है। कुछ सीधे सादे लोग और कुछ धूर्त और चालाक लोग इसका फायदा उठाने की नियत का शिकार हमेशा से होते रहे हैं। जब सत्य सामने आता है तो कोई न कोई सिर पीट कर रह जाता हैं या फिर क़ानून के लम्बे पचड़े में फँस कर घुट घुट कर जीने को मजबूर होते हैं।
विश्वास की हत्या :--
ये झाँसा किसी बहुत अपने द्वारा दिया जाता रहा है , तभी तो जल्दी विश्वास कर लिया जाया है और उन्हें पता नहीं होता है कि उनके विश्वास की हत्या हो रही है। जो झाँसा देने वाला होता है, उसको पूरा विश्वास होता है कि सामने वाला उसके ऊपर पूरा विश्वास करता है और उसके पास शक करने की कोई भी गुंजाइश नहीं है। हम कुछ भी कर सकते हैं। वह झाँसा देने में पूरी तरह से सफल होगा। अपने विश्वास को वह कई तरह से प्रयोग करता है - कभी बेटे और बेटी की शादी में - किसी भी तरह की कमी युक्त लड़के या लड़की का रिश्ता करवाना और असलियत को छिपा देना , नौकरी का झाँसा देकर रकम वसूल कर लेना , शादी का झाँसा देकर लड़की का दैहिक शोषण करते रहना , प्रमोशन के लिए लड़की या लडके को झाँसे में रख कर शोषण करना या फिर रुपये ऐंठना। कुल मिला कर विश्वास की हत्या ही होती है।
लालच की प्रवृत्ति :-
इस झाँसे का शिकार हमेशा लालच की प्रवृत्ति रखने वाले लोग होते हैं। बगैर मेहनत के कुछ पा लेने का लालच - कम समय में पैसे का दुगुना मिलना , सरकारी नौकरी का लालच , शादी का लालच (विशेषतौर पर बॉस या किसी पैसे वाले लडके के साथ सम्बन्ध करने का लालच) , विदेश में नौकरी का लालच , बच्चे को शहर से बाहर अच्छे काम दिलवाने के लालच में आना। अपनी कमिओं को कोई भी नहीं समझना चाहता है और बगैर किसी मेहनत के बहुत कुछ पा लेने का लालच की प्रवृत्ति ही इसके लिए जिम्मेदार होती है। असलियत से परिचित होने पर सिर्फ सिर पीट कर रह जाते हैं और कभी भी खोई हुई चीज वापस नहीं मिलती है।
पीड़ित खुद जिम्मेदार :-
झाँसे के लिए पीड़ित खुद जिम्मेदार होता है क्योंकि वह अपने स्वार्थ के लिए स्वयं समझौता करता है। वह समझौता चाहे पैसे का हो , रिश्ते का हो। इस जगह कोई भी जबरदस्ती नहीं होती है बल्कि लड़कियों के मामले में चाहे गरीबी हो , बड़े घर में शादी का मामला हो , प्रमोशन का मामला या फिर नौकरी का मामला हो। आपको कोई मजबूर नहीं कर सकता है , अगर आप खुद कहीं भी समझौता न करना चाहे तो ? आपको अच्छी नौकरी चहिए होती है, तो मालिक के झाँसे में आ सकते हैं , यह बात दोनों पक्षों पर लागू होती है। जो शिकायत लेकर आते हैं , वे खुद ही स्वार्थ में लिपटे हुए होते हैं और अगर आप सही रास्ते पर चलने वाले हों तो आपको कोई झाँसे में ले नहीं सकता है।
दण्ड का प्राविधान :-
अगर झाँसे देने वालों के लिए दण्ड का प्राविधान है तो फिर झाँसे के लालच में लिप्त होने वाले के लिए भी दण्ड का प्राविधान होना चाहिए। जब तक आपको अपने स्वार्थ सिद्धि की आशा रही आप शोषित होते रहे और जब सफल होते न दिखाई दिए तो क़ानून की सहायता लेने पहुँच गए , आखिर क्यों ? जब आप अपने स्वार्थ सिद्धि होते देख रहे थे तब तो आपने क़ानून से सलाह नहीं ली थी। आप दोषारोपण के लिए जब आते हैं तो उतने ही अपराधी होते हैं जितना कि दूसरा।
झाँसे का मनोविज्ञान है यही कि कोई फायदा उठा है और कोई किसी फायदे को अपनी स्वार्थसिद्धि की बैशाखी बना कर प्रयोग करता है। लालची हमेशा झाँसे में आने वाला होता। इस मनोविज्ञान को समझ कर दोनों ही आपराधिक श्रेणी में रखा जाना चाहिए। पहले तो इस झाँसे में आने की प्रवृत्ति को मन में पनपने नहीं देना चाहिए।
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