www.hamarivani.com

सोमवार, 7 फ़रवरी 2022

पुरुष विमर्श - 2

बेटी की जगह !

               

             परिवार उससे जुड़ा था, जिसने दोनों को मुझसे मिलवाया। सीमा भी गई थी लड़की वालों के यहाँ गोद भराई में। बहुत बड़ा समारोह नहीं किया गया था। रिश्ते की नींव ही झूठ और फरेब पर रखी गई थी। शायद लड़की कुछ मानसिक रूप से स्वस्थ भी न थी और माँ-बाप दूर के रिश्तेदार का वास्ता देकर प्रस्ताव लेकर आये। 

               लड़के के परिवार में सिर्फ माता-पिता और दो भाई थे। सम्पन्न परिवार और दोनों बेटे पत्रकारिता से जुड़े थे। जब लड़के वाले आये तो उसको भी बुलाया गया था । कोई बात नहीं सहजता से बातचीत हुई । कोई माँग नहीं। लड़की की माँ नौकरी में थीं, पिता रिटायर्ड। तीन भाइयों में सबसे छोटी और माँ की दुलारी होना भी चाहिए ।

                गोद भराई के बाद माँ अपना घर दिखाने ले गईंं । ऊपर का पोर्शन दिखा कर बोली - "ये बिल्कुल खाली है, चाहें तो रवि यहीं रहकर अपना काम करें , कौन सी नौकरी में आफिस ही जाना है। ये बात उसी समय आभास दे गई कि कल कुछ गलत भी हो सकता है ।

                शादी हुई, घर में बेटी नहीं थी सो बेटी की तरह ही रखा गया । कुछ दिन रही फिर भूत प्रेत का नाटक शुरू हो गया और माँ को सूचित किया गया । माँ आकर जम गईंं , धूप, धूनी करना शुरू कर दिया और फिर बोली कि हम ले जा रहे हैं । ठीक हो जायेगी तो ले जाइएगा। वह बेटी को लेकर चली गयी। 

               फ़ोन  संपर्क चलता रहा लेकिन न उसने आने की बात कही और न उसको बुलाने की कोशिश की गयी।  लड़का बराबर कुछ अंतराल में जाता रहा।  उस पर दबाव डाला  जा रहा था कि वह वहीँ जाकर रहे ताकि माँ बाप की देख रेख में  बेटी बनी रहेगी।  उसके पीछे भी कुछ कारण रहे होंगे लेकिन लड़के ने जाने से इंकार कर दिया। 

              कुछ हफ़्ते बाद कोर्ट से नोटिस आ गया दहेज़ उत्पीड़न का , जब तक ये लोग कानूनी सलाह ले पाते।  वह पुलिस के साथ आ धमकी और उसके सिर में चोट जैसे निशान भी थे। उसमें उसने माता पिता , पति और देवर को नामित  किया था और इतने ही लोग घर में रहते थे।  लड़के को पुलिस ने तुरंत ही गिरफ़्तार कर लिया, लेकिन सास ससुर की उनके वकील मित्र ने तुरंत ही जमानत करवा  दी और उनको जेल जाने से राहत मिल गयी। देवर ने अपनी जॉब की वजह से बाहर रहने की स्थिति दिखा दी। 

                  बहुत मुश्किल के बाद एक महीने के बाद लड़के को जमानत मिली।  

                   मामला फैमिली कोर्ट में गया और उसमें सुनवाई शुरू हो गयी।  हर उपस्थिति में वह नया ही बयान  देती जैसे कि वह किसी के सिखाये हुए बोल रही हो।  वह अपने साथ किसी परिवार के सदस्य के बजाय भाई के किसी मित्र के साथ आती थी।  एक दिन उसने लिख कर दिया कि उसने गलत आरोप लगाए हैं और वह परिवार के साथ रहना चाहती है।  परिवार ने विश्वास नहीं किया और उसको फिलहाल अपने स्थानीय भाई के यहाँ रहने को कहा।  कोर्ट ने कहा कि लड़का वह जाकर उसका ध्यान रखेगा।  तभी पता चला कि वह गर्भवती है और यह उसे लड़के की पहली गलती थी।  जिस पर विश्वास न किया जा सके उसको कैसे ?

                   इस बात के जानने के बाद वह भाई के घर से अपने घर चली गयी।  उसको खर्च भेजने का दायित्व परिवार निभा रहा था क्योंकि वह गर्भवती थी और सुरक्षित प्रसव के लिए घर पर ही रहने दिया गया।  एक रात फ़ोन आया कि बेटा हुआ था और तुरंत ख़त्म हो गया। पहले से या फिर उसके आने का कोई भी इन्तजार नहीं किया गया और उसको दफना दिया गया।  जब तक वह पहुंचा सब ख़त्म हो चुका था। 

\                 रिकवरी के लिए वही छोड़ दिया गया और फिर एक महीने बाद भरण पोषण का मुकदमा लगा दिया गया  और एक नया मुक़दमा चलने लगा।  पूरे दस साल वह चलता रहा।  तारीख पर तारीख पड़ती रहीं। रवि मानसिक  तौर पूरी तरह से टूट चुका था , न काम करने का मन करता और न वह करता था।  आखिर दस साल बाद उसका वकील आपसी सहमति के बाद तलाक़ का प्रस्ताव लेकर आया। लेकिन इस पक्ष के वकील को बिलकुल भी विश्वास नहीं था क्योंकि वह  कई रूप देख चुका था।  आखिर दोनों वकीलों ने एक सहमति बनाई और दस लाख रुपये लेकर उसने तलाक़ देने का प्रस्ताव रखा।  

                रवि पूरी तरह से वकील और माँ बाप पर निर्भर हो गया। कुछ लतें भी लग गयीं। ये दस साल किसी की जिंदगी को तहस नहस करने के लिए बहुत थे।  वह कई नशों का आदी हो चुका था। जिन्हें वह आज तक नहीं छोड़ पाया। एक अच्छे खासे लड़ के का जीवन पूरी तरह से तबाह हो चुका है। 

                         


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

ये मेरा सरोकार है, इस समाज , देश और विश्व के साथ . जो मन में होता है आपसे उजागर कर देते हैं. आपकी राय , आलोचना और समालोचना मेरा मार्गदर्शन और त्रुटियों को सुधारने का सबसे बड़ा रास्ताहै.