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शनिवार, 2 अप्रैल 2016

विश्व ऑटिज्म दिवस !

                        2 अप्रैल को विश्व ऑटिज्म दिवस के नाम से जाना जा रहा है।  कभी हमने सोचा है कि हमें   विश्व ऑटिज्म दिवस की आवश्यकता क्यों पड़ी ? आज जिस गति से जीवन निरन्तर आगे बढ़ता चला जा रहा है ,वैसे ही हम रोगों की दिशा में भी प्रगति कर रहे हैं।  आज विश्व में ऑटिज्म ऐसी मानसिक स्थिति बन चुकी है कि इसको एक पृथक दिवस के रूप में लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए स्थान दिया जाने लगा है। सीडीसी की रिपोर्ट के अनुसार ६८ बच्चों में एक बच्चा ऑटिज्म का शिकार है और लड़कियों की अपेक्षा ये लड़कों में हर ४५ बच्चों में एक बच्चे का औसत है। 
                            जीवन की गति जितनी तेजी से बढ़ रही है कि हमारे पास कुछ सोचने  वक़्त ही नहीं रहा।  बच्चे को हम जन्म से यह ज्ञात कर ही नहीं सकते हैं कि बच्चा ऑटिज्म से ग्रसित है। लेकिन ये मानसिक या शारीरिक कहें स्थिति बच्चे को एक सामान्य जीवन से अलग खड़ा कर देती है।  आम तौर पर तो इसके बारे में इतनी व्यापक जानकारी हमारे यहाँ चिकित्सा की शिक्षा के दौरान किस  स्तर तक प्राप्त होती है या फिर बाल रोग में विशेषज्ञता करने पर ही वे  जान पाते हैं , इसके बारे में कोई चिकित्सक ही बता सकता है।  
                             आज जब कि एकल और लघु परिवार को प्राथमिकता दी जाने लगी है तब इस स्थिति के शिकार बच्चों के माता पिता के लिए कष्टदायी स्थिति और क्या हो सकती है ? इसके कारणों के विषय में तो अभी तक कोई विशेष शोध नहीं प्राप्त हुआ है क्योंकि इसका ज्ञान बच्चे के बड़े होने के साथ साथ ही पता चलता है।  हाँ इसके कुछ लक्षण अवश्य हैं , जिनके प्रकट होने पर बच्चे की प्रगति के बारे में डॉक्टर से सलाह ली जा सकती है। 
ऑटिज्म के लक्षण :  
             कुछ ऐसे  लक्षण है जो कि माता पिता के द्वारा ही जाने  जा सकते है। 

1 . बच्चों का 6  महीने तक न  मुस्कराना और न ही कोई प्रतिक्रिया करना। 
2 .  नौ महीने की आयु तक बच्चे का माता पिता के साथ कोई भी सम्प्रेषण न होना।  उनके बुलाने पर , हंसने पर या फिर किसी भी तरह से कोई प्रतिक्रिया न देना। 
3 . एक साल की आयु तक किसी चीज की और इशारा करना , माँगना या फिर उठाने की कोशिश नहीं करता है तो उसके प्रति सचेत हो जाना चाहिए। 
4 . 16  महीने की आयु तक एक शब्द भी न बोलना और 2 वर्ष की आयु तक दो शब्दों को मिला कर बोलन आरम्भ न करना। 
5. उसका का नाम लेकर बुलाने पर कोई प्रतिक्रिया जाहिर न करना।  (  इसके लिए अपवाद भी हो सकता है कि अगर बच्चा मूक - बधिर होगा तो भी प्रतिक्रिया जाहिर नहीं करेगा ). 
6. आँखों का न मिलाना।  
7. किसी एक खिलौने से विशेष लगाव रखना। 
8. एक ही क्रिया को बार बार दुहराना। 
9 . अपने हमउम्र बच्चों से मिलने , उनके साथ खेलने या मिलने पर मुस्करा कर प्रतिक्रिया जाहिर न करना।

                          ऑटिज्म के बच्चों का जितनी जल्दी पता चल जाता है उनमें उतनी ही सुधार की सम्भावना अधिक रहती है , बहुत बड़ी उम्र पर ज्ञात होने पर उनकी आदतों और क्रियाओं में कुछ सुधर तो संभव है लेकिन परिणाम उतने संतोषजनक नहीं होते हैं। इसके विषय में  लोगों के मध्य जागरूकता फैले यही उद्देश्य होना चाहिए ताकि वे बच्चे भी एक सामान्य जीवन के करीब आ सकें। 
                         आपकी अंतरा --  यह एक TV सीरियल आया था, जिसमें की बच्ची को 'स्पेक्ट्रम डिसआर्डर   ' का शिकार दिखाया गया . इसमें जो भी क्रिया होती है वह दोनों ही रूपों में हो सकती है. जैसे कि अंतरा  बिल्कुल चुप और निष्क्रिय  रहती थी और कभी बच्चा इसके ठीक विपरीत अतिसक्रिय भी हो सकता है जैसे कि वह सारे घर में दौड़ता ही रहे या फिर बहुत शोर मचने वाला भी हो सकता है. इन बच्चों को यदि कहा जाय कि ये बिल्कुल ठीक हो सकते हैं ऐसी संभावना बहुत कम होती है लेकिन इनको संयमित किया जा सकता है और इनके व्यवहार में परिवर्तन लाया जा सकता है.
                     

1 टिप्पणी:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (04-04-2016) को "कंगाल होता जनतंत्र" (चर्चा अंक-2302) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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