मशीन अनुवाद का सफर कुछ अधिक
लम्बा हो चुका है फिर भी बहुत कुछ शेष है. यह एक अंतहीन सफर ही तो है
जिसको मैं अपने कार्यकारी समूह के साथ और विभिन्न संस्थानों के साथ मिल कर
विगत 22 वर्षों से करती चली आ रही हूँ. इस लम्बे सफर में मैंने जिन भाषाओं
को इस मशीन अनुवाद के लिए प्रयोग किया है - वे हैं, कन्नड़, तुलुगु,
मलयालम, उर्दू, पंजाबी, बंगला हिंदी , इसके अतिरिक्त गुजराती, संस्कृत में
भी इसको प्रयोग करके देखा गया है लेकिन इसको विस्तृत रूप में हमने नहीं
किया है. इस सबमें हमारी स्रोत भाषा अंग्रेजी रही है और लक्ष्य भाषाएँ ऊपर
अंकित कर ही दी गयीं है,.
इस विषय में एक सवाल ये हो सकता है कि क्या आपको ये सारी भाषाएँ आती हैं या फिर इनके बारे में पूर्ण ज्ञान है? तो इसमें मेरा उत्तर नहीं में होगा. मेरा सिर्फ अंग्रेजी और हिंदी भाषा पर ही अधिकार है. और अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद में तो मैंने इतने वर्षों में बहुत कुछ किया और सीखा. कैसे मैं बेहतर अनुवाद और बेहतर से बेहतर शब्दों का चयन करके अनुवाद प्रस्तुत कर सकती हूँ और उसके विस्तार के लिए भी मेरा अथक प्रयास रहा है.
अन्य भाषाओं के सन्दर्भ में यह कहूँगी कि इसके लिए अन्य भाषाओं के भाषाविद हमारे सहयोगी रहे हैं और कुछ तो पी एच ड़ी छात्र रहे हैं जिन्होंने इसको ही अपने शोध का विषय चुना और एक नई और सार्थक दिशा में कार्य किया. इससे हमें कुछ बहुत अच्छे लाभकारी परिणाम भी मिले. कन्नड़ में मशीन अनुवाद के द्वारा जो सॉफ्टवेर तैयार किया गया वह अपने आप में सम्पूर्ण था और उसके परीक्षण के लिए हमने कन्नड़ के बहुत से लेख, कहानी और यहाँ तक कि उपन्यास भी अनुवादित करके पढ़े. उस समय उसमें पोस्ट एडिटिंग की आवश्यकता पड़ती थी क्योंकि वह हमारे प्रयास की शैशवावस्था थी . लेकिन फिर उसके द्वारा हम को कन्नड़ साहित्य पढ़ने को मिला तो हमें लगा कि हमारे देश कि अनेकता में एकता वाली बात इससे सत्य सिद्ध हो रही है.हम सबके बारे में अधिक से अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं और अपने और उनके साहित्य और अन्य उपलब्ध विषयों की जानकारी प्राप्त करने में पूर्ण रूप से सक्षम हो सकते हैं.
आज जब कि हम बहुत आगे निकल चुके हैं तब हम कई भाषाओं के कार्य कर रहे हैं. सम्पूर्ण देश में तो ये मशीन अनुवाद का कार्य लगभग सभी भाषाओं में हो रहा है और इसमें सरकारी संस्थान "CDAC " जैसे संस्था भी सम्पूर्ण देश में सक्रिय है.
अगर हम मशीन अनुवाद की उपयोगिता की दृष्टि से देखें तो इसका शोध की दृष्टि से सर्वाधिक उपयोग है. शोध के लिए सिर्फ एक भाषा के कार्य से ही हम अपने कार्य को सम्पूर्ण समझ लें ऐसा नहीं है. बल्कि विभिन्न क्षेत्रों में होने वाले शोध के लिए हमें जापानी, जर्मन , फ्रेंच आदि भाषाओं के शोधों को देखने कि आवश्यक पड़ती है तो इनको अंग्रेजी में और अंग्रेजी से भारतीय भाषाओं में अनुवादित करके देखा जा सकता है. जब हम अपने ही देश की सभी भाषाओं से अवगत नहीं है तो विदेशी भाषाओं में पारंगत होने कि बात तो सोची ही नहीं जा सकती है. यही नहीं हमारे देश में ही विभिन्न भाषाभाषी लोग अंग्रेजी भाषा में पूर्ण ज्ञान नहीं रखते हैं तो उनको इसके लिए मशीन अनुवाद के द्वारा अपनी भाषा में अनुवादित करके पढ़ने , शोध करने या फिर साहित्य में रूचि रखने वाले लोग अन्य भाषाओं के साहित्य को पढ़ सकते हैं.
ग्रामीण अंचलों में अधिकांश लोग आज भी अपनी भाषा के अतिरिक्त कुछ भी नहीं जानते हैं और सिर्फ इसी कारण से वे अपने अधिकारों और सुविदाओं से अनभिज्ञ रहते हैं. ज्ञान के प्रचार प्रसार के लिए अगर कुछ केंद्र स्थापित करके इस सुविधा को वहाँ पहुँचाया जाय तो वे अपने निम्न जीवन स्तर को ऊपर उठाने के साधनों और सुविधाओं से भी अवगत होते रहेंगे. अभी अधिकांश भागों में सरकारी फरमान अंग्रेजी में ही आते हैं और वे आम लोगों कि पहुँच से बाहर होते हैं इस के लिए उनकी अपनी भाषा में अनुवादित होकर अगर उन्हें पढ़ने को मिले तो वे एक जागरुक नागरिक और सक्रिय सहभागिता के अधिकारी बन सकते हैं. राष्ट्र हित में , जन हित में इसकी भूमिका बहुत अहम् है बस आवश्यकता है की हम इसको जन समान्य की पहुँच की वस्तु बना कर प्रस्तुत कर सकें . इसके लिए सरकारी सहयोग अपेक्षित है .
इस विषय में एक सवाल ये हो सकता है कि क्या आपको ये सारी भाषाएँ आती हैं या फिर इनके बारे में पूर्ण ज्ञान है? तो इसमें मेरा उत्तर नहीं में होगा. मेरा सिर्फ अंग्रेजी और हिंदी भाषा पर ही अधिकार है. और अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद में तो मैंने इतने वर्षों में बहुत कुछ किया और सीखा. कैसे मैं बेहतर अनुवाद और बेहतर से बेहतर शब्दों का चयन करके अनुवाद प्रस्तुत कर सकती हूँ और उसके विस्तार के लिए भी मेरा अथक प्रयास रहा है.
अन्य भाषाओं के सन्दर्भ में यह कहूँगी कि इसके लिए अन्य भाषाओं के भाषाविद हमारे सहयोगी रहे हैं और कुछ तो पी एच ड़ी छात्र रहे हैं जिन्होंने इसको ही अपने शोध का विषय चुना और एक नई और सार्थक दिशा में कार्य किया. इससे हमें कुछ बहुत अच्छे लाभकारी परिणाम भी मिले. कन्नड़ में मशीन अनुवाद के द्वारा जो सॉफ्टवेर तैयार किया गया वह अपने आप में सम्पूर्ण था और उसके परीक्षण के लिए हमने कन्नड़ के बहुत से लेख, कहानी और यहाँ तक कि उपन्यास भी अनुवादित करके पढ़े. उस समय उसमें पोस्ट एडिटिंग की आवश्यकता पड़ती थी क्योंकि वह हमारे प्रयास की शैशवावस्था थी . लेकिन फिर उसके द्वारा हम को कन्नड़ साहित्य पढ़ने को मिला तो हमें लगा कि हमारे देश कि अनेकता में एकता वाली बात इससे सत्य सिद्ध हो रही है.हम सबके बारे में अधिक से अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं और अपने और उनके साहित्य और अन्य उपलब्ध विषयों की जानकारी प्राप्त करने में पूर्ण रूप से सक्षम हो सकते हैं.
आज जब कि हम बहुत आगे निकल चुके हैं तब हम कई भाषाओं के कार्य कर रहे हैं. सम्पूर्ण देश में तो ये मशीन अनुवाद का कार्य लगभग सभी भाषाओं में हो रहा है और इसमें सरकारी संस्थान "CDAC " जैसे संस्था भी सम्पूर्ण देश में सक्रिय है.
अगर हम मशीन अनुवाद की उपयोगिता की दृष्टि से देखें तो इसका शोध की दृष्टि से सर्वाधिक उपयोग है. शोध के लिए सिर्फ एक भाषा के कार्य से ही हम अपने कार्य को सम्पूर्ण समझ लें ऐसा नहीं है. बल्कि विभिन्न क्षेत्रों में होने वाले शोध के लिए हमें जापानी, जर्मन , फ्रेंच आदि भाषाओं के शोधों को देखने कि आवश्यक पड़ती है तो इनको अंग्रेजी में और अंग्रेजी से भारतीय भाषाओं में अनुवादित करके देखा जा सकता है. जब हम अपने ही देश की सभी भाषाओं से अवगत नहीं है तो विदेशी भाषाओं में पारंगत होने कि बात तो सोची ही नहीं जा सकती है. यही नहीं हमारे देश में ही विभिन्न भाषाभाषी लोग अंग्रेजी भाषा में पूर्ण ज्ञान नहीं रखते हैं तो उनको इसके लिए मशीन अनुवाद के द्वारा अपनी भाषा में अनुवादित करके पढ़ने , शोध करने या फिर साहित्य में रूचि रखने वाले लोग अन्य भाषाओं के साहित्य को पढ़ सकते हैं.
ग्रामीण अंचलों में अधिकांश लोग आज भी अपनी भाषा के अतिरिक्त कुछ भी नहीं जानते हैं और सिर्फ इसी कारण से वे अपने अधिकारों और सुविदाओं से अनभिज्ञ रहते हैं. ज्ञान के प्रचार प्रसार के लिए अगर कुछ केंद्र स्थापित करके इस सुविधा को वहाँ पहुँचाया जाय तो वे अपने निम्न जीवन स्तर को ऊपर उठाने के साधनों और सुविधाओं से भी अवगत होते रहेंगे. अभी अधिकांश भागों में सरकारी फरमान अंग्रेजी में ही आते हैं और वे आम लोगों कि पहुँच से बाहर होते हैं इस के लिए उनकी अपनी भाषा में अनुवादित होकर अगर उन्हें पढ़ने को मिले तो वे एक जागरुक नागरिक और सक्रिय सहभागिता के अधिकारी बन सकते हैं. राष्ट्र हित में , जन हित में इसकी भूमिका बहुत अहम् है बस आवश्यकता है की हम इसको जन समान्य की पहुँच की वस्तु बना कर प्रस्तुत कर सकें . इसके लिए सरकारी सहयोग अपेक्षित है .
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (01-09-2017) को "सन्तों के भेष में छिपे, हैवान आज तो" (चर्चा अंक 2714) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
लम्बा है पर रोचक भी उतना ही है।
जवाब देंहटाएंInformative article . Maa'm there is a one request, please pot the blog archive tool above in the page so that one can easily find the list of your articles.
जवाब देंहटाएंThanks
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ’रसीदी टिकट सी ज़िन्दगी और ब्लॉग बुलेटिन’ में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
जवाब देंहटाएंSahi kaha aapne. Is disha men sarkar ko dhyan dena chahiye.
जवाब देंहटाएंKripya inhen bhi dekhen- Kutty thevangu , Hoolock gibbon iucn
bahut hi sunder lekh h sir.
जवाब देंहटाएंYou may like - Tips to Write More Blogs in Less Time