ब्लॉगिंग के ९ वर्ष !
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आज से नौ वर्ष पहले इस विधा से परिचित हुई थी और तब शायद फेसबुक से इतनी जुडी न थी क्योंकि स्मार्ट फ़ोन नहीं थे। थे तो लेकिन मेरे पास न था और साथ ही आइआइटी की नौकरी में समय भी न था। लेकिन ऑफिस के लंच में मैं अपने ब्लॉग पर लेखन जारी रखती थी और काम उसी तरह से कुछ न कुछ चलता ही रहा।
फेसबुक और ट्विटर के आने से लोगों को त्वरित कमेंट और प्रतिक्रिया आती थी और लोगों को वह अधिक भा गया था और थोड़े में अधिक मिलना हमारी फिदरत है। धीरे धीरे ब्लॉग का लिखना कम होता गया। बंद तो बिलकुल भी नहीं किया लेकिन स्मार्ट फ़ोन ने उसकी गति को मंद कर दिया। नौ वर्ष का समय बहुत लम्बा होता है। फिर से ब्लॉगिंग का जन्मदिन मनाया गया और १ जुलाई से इसको प्राणवायु लेकर जीवित रखने का संकल्प लिया और फिर से इसको लिखना आरम्भ कर दिया है। बस इसके इस लम्बे सफर ने बहुत सारे अच्छे मित्र और मार्गदर्शक दिए और सबकी शुक्रगुजार हूँ कि अभिव्यक्ति को एक ऐसा मंच मिला जिस पर किसी संपादक , समूह या व्यक्ति का कोई दबाव न था।
अपने साथ ही अपने ब्लॉगिंग से दूर हो गए मित्रों से अनुरोध है कि इस विधा को जारी रखें। पुस्तके लिखे लेकिन उनको इस ब्लॉग पर भी साझा करें। कई ऐसे इलाके भी हैं जहाँ पर ऑनलाइन पुस्तकें नहीं पहुँच पाती है सो ऐसे लोगों को आसानी से पढ़ने का अवसर प्राप्त हो सके। साथ ही आप अगर दिन में ४ घंटे फेसबुक को देते हैं तो सिर्फ आधा घंटा ब्लॉगिंग को भी दें ताकि ये जारी रहे।
एक बार फिर अपने उन सभी ब्लॉग मित्रों को हार्दिक आभार जिन्होंने ने तब से लेकर आज तक उस मित्रता को कायम रखा है फिर भी जो घनिष्ठता ब्लॉग के समय में थी वो फेसबुक में नहीं है। तब सारे लोग लिखने और पढ़ने वाले ही होते थे और एक दूसरे से जुड़े हैं। हमारा ब्लॉग परिवार ऐसे ही पल्लवित और पुष्पित हो रहे।
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आज से नौ वर्ष पहले इस विधा से परिचित हुई थी और तब शायद फेसबुक से इतनी जुडी न थी क्योंकि स्मार्ट फ़ोन नहीं थे। थे तो लेकिन मेरे पास न था और साथ ही आइआइटी की नौकरी में समय भी न था। लेकिन ऑफिस के लंच में मैं अपने ब्लॉग पर लेखन जारी रखती थी और काम उसी तरह से कुछ न कुछ चलता ही रहा।
फेसबुक और ट्विटर के आने से लोगों को त्वरित कमेंट और प्रतिक्रिया आती थी और लोगों को वह अधिक भा गया था और थोड़े में अधिक मिलना हमारी फिदरत है। धीरे धीरे ब्लॉग का लिखना कम होता गया। बंद तो बिलकुल भी नहीं किया लेकिन स्मार्ट फ़ोन ने उसकी गति को मंद कर दिया। नौ वर्ष का समय बहुत लम्बा होता है। फिर से ब्लॉगिंग का जन्मदिन मनाया गया और १ जुलाई से इसको प्राणवायु लेकर जीवित रखने का संकल्प लिया और फिर से इसको लिखना आरम्भ कर दिया है। बस इसके इस लम्बे सफर ने बहुत सारे अच्छे मित्र और मार्गदर्शक दिए और सबकी शुक्रगुजार हूँ कि अभिव्यक्ति को एक ऐसा मंच मिला जिस पर किसी संपादक , समूह या व्यक्ति का कोई दबाव न था।
अपने साथ ही अपने ब्लॉगिंग से दूर हो गए मित्रों से अनुरोध है कि इस विधा को जारी रखें। पुस्तके लिखे लेकिन उनको इस ब्लॉग पर भी साझा करें। कई ऐसे इलाके भी हैं जहाँ पर ऑनलाइन पुस्तकें नहीं पहुँच पाती है सो ऐसे लोगों को आसानी से पढ़ने का अवसर प्राप्त हो सके। साथ ही आप अगर दिन में ४ घंटे फेसबुक को देते हैं तो सिर्फ आधा घंटा ब्लॉगिंग को भी दें ताकि ये जारी रहे।
एक बार फिर अपने उन सभी ब्लॉग मित्रों को हार्दिक आभार जिन्होंने ने तब से लेकर आज तक उस मित्रता को कायम रखा है फिर भी जो घनिष्ठता ब्लॉग के समय में थी वो फेसबुक में नहीं है। तब सारे लोग लिखने और पढ़ने वाले ही होते थे और एक दूसरे से जुड़े हैं। हमारा ब्लॉग परिवार ऐसे ही पल्लवित और पुष्पित हो रहे।
सही बात । शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (22-09-2017) को "खतरे में आज सारे तटबन्ध हो गये हैं" (चर्चा अंक 2735) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बधाई हो दीदी.
जवाब देंहटाएंआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ’दो विभूतियों का जन्मदिन मनाता देश - ब्लॉग बुलेटिन’ में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभकामनाएं!
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