इस वर्ष नवरात्रि के दिनों में हमेशा की तरह कन्यायें खिलानी थी और इसके लिए मेरी मानस पुत्री रंजना यादव ने मुझसे एक ऐसी कार्यशाला करने का प्रस्ताव रखा कि मुझे उसकी सोच में एक नयी दिशा दिखाई दी। बच्चों को सब कुछ मुझे ही समझाना था। पहले सभी बच्चों को जो 3 वर्ष से ऊपर से लेकर १२ वर्ष तक के लडके और लड़कियां थीं। उनको पहले हमने एक वीडियों दिखाया जो अंग्रेजी में था और सभी बच्चे अंग्रेजी नहीं समझ सकते थे सो उनको चित्र्र का सन्दर्भ देते हुए अच्छे स्पर्श (good touch ) और बुरे स्पर्श (bad touch ) के विषय में बतलाया और उनके निजी अंगों (private parts ) के विषय में जानकारी दी।
समाज की वर्तमान स्थिति से सभी वाकिफ है। बच्चे चाहे बेटी हो या बेटे सभी असुरक्षित है बल्कि उम्र से बहुत बड़े लोगों से उनको ज्यादा खतरा बना हुआ है। नवरात्रि में हम कन्या पूजन करते है लेकिन कन्या मिलाना मुश्किल हो जाता है और कई घरों में तो भेजने से इंकार कर दिया जाता है। आखिर क्यों ? क्योंकि अब किसी को किसी पर भरोसा जो नहीं रहा। कन्या को भी लोग सिर्फ एक मादा के रूप में देखने जो लगे हैं। दोष किसका है ? हमारा ही है और इससे हम लड़ दूसरे तरीके से सकते हैं , हमें सिर्फ सोचने की जरूरत है कि हम उन्हें सुरक्षित रखने के लिए कैसे माहौल तैयार करें।
ऐसा नहीं है बाल यौन शोषण हमारे ज़माने में भी था लेकिन बाहर काम घर के अंदर अधिक था। कितने किस्से सामने आ जाते हैं ? आज जब कि हमारी पीढ़ी वरिष्ठों की श्रेणी में कड़ी है , तब हमें इसका रूप बहुत भयावह दिखाई देने लगा है क्योंकि अब लिंग और उम्र का कोई दायरा सुरक्षित नहीं रह गया है।
बच्चे इन सब चीजों से परिचित नहीं होते हैं और फिर किसी दूसरे के द्वारा स्पर्श किये जाने पर कुछ बता नहीं पाते हैं और एक दो बार की छोटी घटनाओं के बाद लोग बड़ी घटना को अंजाम दे देते हैं। इसलिए उनको इससे अवगत कराना बहुत जरूरी था। फिर कि उनके निजी अंगों को छूने का हक़ किसको होता है ? उनके इस विषय में परिवार के बाबा दादी , मम्मी पापा और दीदी भैया के बाद टीचर वह भी अगर महिला है तो। डॉक्टर भी मम्मी की उपस्थिति में ही छू सकता है।
इसके अतिरिक्त भी बच्चो को इस बात से आगाह किया कि वे किसी भी अनजान व्यक्ति या फिर दूर के रिश्तेदार पडोसी आदि के यह कहने पर कि मेरे साथ चलो मैं तुम्हें आइसक्रीम या चॉकलेट खिलाने ले चलता हूँ बगैर अपनी मम्मी और पापा की अनुमति के कभी नहीं जाना है।
अगर स्कूल में टॉयलेट के लिए जाना हो तो कभी पढाई के समय के बीच जाना नहीं चाहिए क्योंकि ये जगह पीछे की तरफ एकांत में होती है और उसे समय कोई टीचर या बच्चे बाहर नहीं होते हैं। सिर्फ स्कूल के नौकर या गार्ड ही रहते हैं तो लंच के समय में अपने और मित्रों के साथ जाना चाहिए।
अगर स्कूल की वैनवाला , बसवाला या रिक्शावाला भी वह अकेला हो तो उसके यह कहने पर कि वह कुछ काम निपटा कर घर छोड़ देगा तो उसके लिए राजी न हो। पडोसी आदि के घर कभी सिर्फ एक सदस्य के होने पर नहीं जाना चाहिए।
घर में अगर मम्मी पापा न हों और बच्चों को या बच्चे को घर में अकेला छोड़ कर कहीं गए हों तो उनके आने तक किसी के लिए भी दरवाजा नहीं खोलना चाहिए , भले ही वह कोई भी हो ( घर के सदस्य के अतिरिक्त ) या फिर कोई आकर कहता है कि मम्मी ने वहां बुलाया है तो भी नहीं।
बच्चों को पहली बार में दुष्कर्म के विषय में नहीं बताया बल्कि उनको कहा गया कि आज कल लोग अपहरण कर लेते हैं और फिर मम्मी पापा से पैसे मांगे हैं और न देने पर वह कुछ भी कर सकते हैं। कभी मार देते हैं या फिर और लोगों को दे देते हैं। भीख माँगने वाले लोगों के बीच छोड़ देते हैं।
इतना सब समझाने के बाद उन्होंने क्या समझा ? छोटे और बड़े सभी बच्चों से मैंने प्रश्न पूछे और उन बच्चों ने सही जानकारी प्रदान की यानि कि मैंने जो भी उन्हें समझाया था वह उनको कारण सहित याद रहा।
थोड़ा सा माहौल बदलने के लिए पूछा कि कौन क्या बना चाहता है ? ज्यादातर बच्चों ने टीचर बनने की इच्छा जाहिर की और कुछ बच्चों के डॉक्टर , सिर्फ दो बच्चे ऐसे थे जिन्होंने साइंटिस्ट और बायो टेक्नोलॉजी में पढ़ने की इच्छा जाहिर की। अभी उनकी दुनियां शायद इतनी थी। लेकिन ऐसी कार्यशाला अगले और महीनों में करने का विचार है जिसमें कि बच्चों को संस्कार और अपनी संस्कृति से परिचय कराने के विषय में सोचा है। सब नहीं तो कुछ ही सही अच्छी और सुरक्षित राह पर चलने के लिए सतर्क रहे यही कामना है।
\ इसके बाद कार्यशाला में उपस्थित 23 बच्चों को दही , जलेबी और समोसे खिलाये गए और उनको परंपरागत ढंग से रोली का टीका लगा कर स्नैक्स और रुपये देकर विदा कर दिया गया। कन्या भोज
जितना सुंदर ये लेख लिखा है उतनी ही सुंदरता और रोचकता से आपने इस विषय को समझाया। आत्मीय आभार #रेखा माँ।
जवाब देंहटाएंवाह। नयी सोच।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कार्यशाला |
जवाब देंहटाएंकन्याभोज के बहाने उम्दा कार्यशाला
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