भारतीय समाज में विवाह एक महत्वपूर्ण संस्था है बल्कि दूसरे शब्दों
में कहें तो परिवार की नींव यही है । वैसे तो ये मानव जाति में विवाह का
अस्तित्व पाया जाता है लेकिन जितनी विविधता हमारे समाज में पायी जाती है ,
उतनी कहीं और नहीं मिलेगी । एक ही देश में इतनी विभिन्नता और एक ही संस्था में विचारणीय और विस्मय का विषय हो सकता है लेकिन उनमें एक ही सम्बद्धता पायी जाती है और वह है परिवार संस्था में अटूट गठबंधन और सृष्टि के लिए एक सामाजिक , भावात्मक , आध्यात्मिक बंधन। हर रीति इसी उम्मीद के साथ पूरी की जाती है कि विवाह चिरस्थायी और प्रेमपूर्ण जीवन का मार्ग है।
विवाह में कुछ रिवाज होते हैं और जो प्रदेशों के अनुसार पृथक पृथक होते हैं और उन विभिन्नताओं में एक ही उद्देश्य निहित होता है कि युगल एक प्रेमपूर्ण पारिवारिक जीवन का निर्वाह करते हुए सृष्टि में अपना सहयोग देते रहेंगे। हम कुछ अलग रिवाजों को देखेंगे :--
महाराष्ट्रीय विवाह :-
मराठी संस्कृति के अनुसार विवाह में लडके वालों को बड़ा और लड़की वालों को बेचारा कभी नहीं समझा जाता है। उसे भी वही सम्मान मिलता है जो और स्थानों पर सिर्फ वर पक्ष को मिलता है। सबसे बड़ी रस्म जो वधु को सम्मान देती है वह है कन्या के पैर वर पक्ष के दंपत्ति में से पुरुष जल डालता है और स्त्री पैर धोती है और उसको साफ कपडे से पौंछ कर रोली में पानी डाल कर कन्या के पैरों में रंग लगाती है।
कन्या पक्ष से भी उसके माता पिता इसी क्रिया को दोहराते हैं और वर के पैर धोये जाते हैं और उनको पौंछा जाता है और रंग लगाया जाता है।
श्रीमंती पूजा :-- विवाह के एक रात पूर्व श्रीमंती पूजा होती है , जिसमें वर और कन्या दोनों शामिल किये जाते हैं और कन्या पक्ष वर को और वर पक्ष कन्या की पूजा करके कपडे मेवा आदि देते हैं। विवाह यहाँ पर दिन में होता है और वर एक रेशमी धोती और दुपट्टा धारण करता है और उसी में उसकी सप्तपदी आदि पूर्ण होती है।
बिडीची पंगत :-- एक विशेष रस्म होती है कि एक विशेष भोज दिया जाता है , जिसको बिडीची पंगत कहते हैं। इसमें भोज स्थल तक पहुँचने के लिए बहुत सुन्दर फूलों का कालीन बिछाया जाता है, जिस पर चल कर वर वधु और उसके घर वाले उस भोज के लिए जाते हैं और इसमें भोजन में छप्पन भोग की तरह सबके लिए विभिन्न व्यंजन तैयार करके परोसे जाते हैं और उसे समय वधु को कविता की कुछ पंक्तियाँ अपने पति के नाम को लेकर बोलनी होती हैं , तभी भोजन आरम्भ होता है।
आशीर्वाद :-- विवाह के बाद वर बधू आशीर्वाद के लिए बैठते हैं और इसमें सारे इष्ट मित्र और सगे सम्बन्धी शामिल होते हैं और वे आशीर्वाद के लिए वर वधु का सिर आपस में टकराते हैं और उन्हें आशीष देते हुए चले जाते हैं।
गृहप्रवेश :-- वधु के विदाई के बाद गृह प्रवेश के समय वह अपने साथ माँ अन्नपूर्णा और लड्डू गोपाल की चाँदी की मूर्तियां लेकर गृह प्रवेश करती है। इसका आशय कि घर धन धान्य से पूर्ण रहे और घर में बाल गोपाल के रूप में एक संरक्षक का आगमन भी हो।
बंगाली विवाह :
दोधी मंगल :-- विवाह के दिन, सूर्योदय होने के पूर्व, दोधी मंगल विधि निभाई जाती है। इसमें आठ से दस विवाहित स्त्रियाँ, वर वधू के साथ तालाब के पास जाती हैं और देवी गंगा को आमंत्रित करती हैं तथा कलश भर कर, जल अपने साथ ले जाती हैं, जिसे वर—वधू के स्नान हेतु, उपयोग में लाया जाता है।
बऊ भात :-- वधू का शंख नादों से घर में स्वागत किया जाता है। वधू, दूध से भरे कलश को पैर से गिराकर, घर में प्रवेश करती है। वधू अपने पति के घर, कुछ नहीं खाती, उसका भोजन पड़ोसी के घर से आता है। अगले दिन बऊ भात की रस्म निभाते हुए, वधू को नई थाली में खाना परोसा जाता है। शाम में सह—भोज का आयोजन किया जाता है, जिसमें वधू पांरपरिक बंगाली साड़ी तथा वर धोती धारण करता है।
पंजाबी विवाह :--
पंजाबी विवाह में एक सबसे अलग रस्म होती है वह है चूड़े की रस्म होती है। चूड़े कन्या के ननिहाल से आता है और इसमें लाल और सफेद रंग के २१ चूड़े होते हैं, जिन्हें पहनते वक़्त कन्या की आँखें बंद कर देती है ताकि वह शादी के पहले चूड़े को न देखे। चूड़ों को पहना कर उसको रूमाल से बाँध दिया जाता है ताकि वधु उनको न देखे। चूड़ों को शादी से पूर्व देखना अशुभ माना जाता है। शादी से पूर्ववधु की सहेलियां चूड़ों में कलीरे बांधती हैं और वे कलीरे उसकी सहेलियों के ऊपर हाथ हिला हिला कर गिराने का प्रयास करती है और जिसके सर पर गलीरे टूट कर गिर जाती हैं तो उसकी शादी जल्द होती है।
पूर्वांचल का विवाह :-
पूर्वांचल में बिहार , झारखण्ड और उत्तर प्रदेश का पूर्वी क्षेत्र भी आता है। इसमें कुछ रस्में सबसे अलग होती हैं। इसमें वर और वधु दोनों के ही स्वागत के लिए वर के गृह प्रवेश के समय दो टोकरी ली जाती है और वर के पैरों के आगे रखी जाती है और वह उन्हें मे पैर रखते हुए अंदर प्रवेश करता है। वह भूमि पर पैर न रखे।
ठीक यही क्रिया वधु के घर आने पर गृह प्रवेश के वक़्त की जाती है , घर की लक्ष्मी भूमि पर पैर रखते हुए अंदर प्रवेश नहीं कराते हैं। ये घर में वर और वधु को देने वाले सम्मान का प्रतीक होता है।
एक विशेष बात यहाँ पर और पायी जाती है कि यहाँ पर मांग में सिन्दूर डालने की रस्म के समय सिन्दूर नाक से पूरी मांग भरते हुए जाती है। इस प्रकार से मांग वहां पर हर पूजा , व्रत में भरी जाती है।
राजस्थानी विवाह :
विवाह के समय वर जब बारात लेकर कन्या के घर पहुँचता है तो घोड़ी पर बैठे हुए ही घर के दरवाज़े पर बँधे हुए तोरण को तलवार से छूता है जिसे तोरण मारना कहते हैं। तोरण एक प्रकार का मांगलिक चिह्न है। यह वर के शौर्य और वीरता का प्रतीक माना जाता है।
तमिल विवाह:--
तमिल विवाह को तभी पूर्ण माना जाता है , जब कि उनके बीच मालाओं का आदान प्रदान हो जाता है। तमिल विवाह में वर और वधु एक नहीं तीन मालाएं पहने होते हैं और इनमें एक विशेष माला होती है, खूबसूरत फूलों की गूँथी हुई माला , जिसका वर और वधु सबसे पहले एक दूसरे को पहनते हैं और बाद में अपनी शेष मालाएं भी आपस में बदल लेते हैं। इन वर मालाओं का आदान प्रदान ही विवाह संपन्न होने का प्रतीक है।
वहां पर मंगलसूत्र पहनाने का विशेष मुहूर्त होता है और सी के अनुसार बाकि रस्मों के लिए समय तय किया जाता है। मंगलसूत्र बांधने के समय वधु अपने पिता की गोद में बैठी होती है और वर उसको मंगलसूत्र पुष्प और अक्षत की वर्षा के बीच पहनता है।
कन्नड़ विवाह :--
कर्नाटक में विवाह बहुत ही सादगी से और शांतिपूर्ण ढंग से सम्पन्न होते हैं और विवाह की सारी रस्में दिन में ही सम्पन्न होती है। सिर्फ अपने लिए ही नहीं बल्कि वधु पक्ष के लिए भी बालों में फूलों के गजरे लगाने के लिए मंगाए जाते हैं।
काशी यात्रा :-- कन्नड़ विवाह में एक रस्म सबसे अच्छी और मनोरंजक होती है। इसमें वर अपने घर वालों से क्रोधित होकर एक छड़ी , छाता और धोती पहन कर घर से काशी यात्रा के लिए निकल पड़ता है कि उसके लिए कोई वधु नहीं खोजता है और तब माँ बेटे को मन कर ले जाती है कि वह उसके विवाह को सम्पन्न कराएगी।
देवकार्य :-- विवाह कार्य गणपति के समक्ष सम्पन्न होता है और सब मंगलकारी हो ऐसी कामना वहां उपस्थित परिजनों के द्वारा की जाती। विवाह कार्य के दौरान शहनाई की धुन गूंजती रहती है। कार्य पूर्ण होने पर वर वधु दोनों एक दूसरे के सिर पर अक्षत डालते हैं , जो मंगला कामनाओं का ही प्रतीक होता है।
बुंदेलखंडी विवाह :--
मंडप गड़ाई :-- बुंदेलखंड प्रभाग में उत्तर प्रदेश का कुछ इलाका और कुछ मध्य प्रदेश का इलाका आता है और यहाँ पर कुछ विशेष रस्में होती हैं जो अन्य राज्यों में नहीं होती हैं। वैसे तो विवाह हंसी मजाक के बीच सभी जगह सम्पन्न होता है लेकिन यहाँ पर एक रस्म होती है मंडप गाड़ने की। पंडित द्वारा बताये विशेष मुहूर्त पर ही इसको गाड़ा जाता है और इस कार्य को घर के मान्य यानि कि वर या वधु के जीजा या फूफा गाड़ते हैं। इसके बदले उनको नेग दिया जाता है और उसके बाद हल्दी , पानी और उसमें तेल और चूना नीला कर पतला घोल बना कर उसमें दोनों हाथ को डूबा कर घर की महिलायें सब लुरुषों की पीठ पर थाप लगाती हैं और इसा समय कौन कैसे कपडे पहने है इसका कोई ध्यान नहीं रखा जाता है।
समधी को गालियां :-- आज से दो टीन दशक पहले शादी में एक दिन बारात रुकती थी और उस दिन बारातियों को कच्चा खाना अर्थात कढ़ी , चावल रोटी आदि का भोजन बधू के घर में कराया जाता था और फिर घर की महिलायें उनके लिए व्यंग्य पूर्ण गालियां गाती थीं और बदले में समधी उनको नेग देते थे।
जैसे देश में अनेकता में एकता है ठीक उसी तरह से रस्मों में भी विभिन्नता पाई जाती है फिर भी सब भारतीय संस्कृति का एक अंश हैं.
विवाह में कुछ रिवाज होते हैं और जो प्रदेशों के अनुसार पृथक पृथक होते हैं और उन विभिन्नताओं में एक ही उद्देश्य निहित होता है कि युगल एक प्रेमपूर्ण पारिवारिक जीवन का निर्वाह करते हुए सृष्टि में अपना सहयोग देते रहेंगे। हम कुछ अलग रिवाजों को देखेंगे :--
महाराष्ट्रीय विवाह :-
मराठी संस्कृति के अनुसार विवाह में लडके वालों को बड़ा और लड़की वालों को बेचारा कभी नहीं समझा जाता है। उसे भी वही सम्मान मिलता है जो और स्थानों पर सिर्फ वर पक्ष को मिलता है। सबसे बड़ी रस्म जो वधु को सम्मान देती है वह है कन्या के पैर वर पक्ष के दंपत्ति में से पुरुष जल डालता है और स्त्री पैर धोती है और उसको साफ कपडे से पौंछ कर रोली में पानी डाल कर कन्या के पैरों में रंग लगाती है।
कन्या पक्ष से भी उसके माता पिता इसी क्रिया को दोहराते हैं और वर के पैर धोये जाते हैं और उनको पौंछा जाता है और रंग लगाया जाता है।
श्रीमंती पूजा :-- विवाह के एक रात पूर्व श्रीमंती पूजा होती है , जिसमें वर और कन्या दोनों शामिल किये जाते हैं और कन्या पक्ष वर को और वर पक्ष कन्या की पूजा करके कपडे मेवा आदि देते हैं। विवाह यहाँ पर दिन में होता है और वर एक रेशमी धोती और दुपट्टा धारण करता है और उसी में उसकी सप्तपदी आदि पूर्ण होती है।
बिडीची पंगत :-- एक विशेष रस्म होती है कि एक विशेष भोज दिया जाता है , जिसको बिडीची पंगत कहते हैं। इसमें भोज स्थल तक पहुँचने के लिए बहुत सुन्दर फूलों का कालीन बिछाया जाता है, जिस पर चल कर वर वधु और उसके घर वाले उस भोज के लिए जाते हैं और इसमें भोजन में छप्पन भोग की तरह सबके लिए विभिन्न व्यंजन तैयार करके परोसे जाते हैं और उसे समय वधु को कविता की कुछ पंक्तियाँ अपने पति के नाम को लेकर बोलनी होती हैं , तभी भोजन आरम्भ होता है।
आशीर्वाद :-- विवाह के बाद वर बधू आशीर्वाद के लिए बैठते हैं और इसमें सारे इष्ट मित्र और सगे सम्बन्धी शामिल होते हैं और वे आशीर्वाद के लिए वर वधु का सिर आपस में टकराते हैं और उन्हें आशीष देते हुए चले जाते हैं।
गृहप्रवेश :-- वधु के विदाई के बाद गृह प्रवेश के समय वह अपने साथ माँ अन्नपूर्णा और लड्डू गोपाल की चाँदी की मूर्तियां लेकर गृह प्रवेश करती है। इसका आशय कि घर धन धान्य से पूर्ण रहे और घर में बाल गोपाल के रूप में एक संरक्षक का आगमन भी हो।
बंगाली विवाह :
दोधी मंगल :-- विवाह के दिन, सूर्योदय होने के पूर्व, दोधी मंगल विधि निभाई जाती है। इसमें आठ से दस विवाहित स्त्रियाँ, वर वधू के साथ तालाब के पास जाती हैं और देवी गंगा को आमंत्रित करती हैं तथा कलश भर कर, जल अपने साथ ले जाती हैं, जिसे वर—वधू के स्नान हेतु, उपयोग में लाया जाता है।
बऊ भात :-- वधू का शंख नादों से घर में स्वागत किया जाता है। वधू, दूध से भरे कलश को पैर से गिराकर, घर में प्रवेश करती है। वधू अपने पति के घर, कुछ नहीं खाती, उसका भोजन पड़ोसी के घर से आता है। अगले दिन बऊ भात की रस्म निभाते हुए, वधू को नई थाली में खाना परोसा जाता है। शाम में सह—भोज का आयोजन किया जाता है, जिसमें वधू पांरपरिक बंगाली साड़ी तथा वर धोती धारण करता है।
पंजाबी विवाह :--
पंजाबी विवाह में एक सबसे अलग रस्म होती है वह है चूड़े की रस्म होती है। चूड़े कन्या के ननिहाल से आता है और इसमें लाल और सफेद रंग के २१ चूड़े होते हैं, जिन्हें पहनते वक़्त कन्या की आँखें बंद कर देती है ताकि वह शादी के पहले चूड़े को न देखे। चूड़ों को पहना कर उसको रूमाल से बाँध दिया जाता है ताकि वधु उनको न देखे। चूड़ों को शादी से पूर्व देखना अशुभ माना जाता है। शादी से पूर्ववधु की सहेलियां चूड़ों में कलीरे बांधती हैं और वे कलीरे उसकी सहेलियों के ऊपर हाथ हिला हिला कर गिराने का प्रयास करती है और जिसके सर पर गलीरे टूट कर गिर जाती हैं तो उसकी शादी जल्द होती है।
पूर्वांचल का विवाह :-
पूर्वांचल में बिहार , झारखण्ड और उत्तर प्रदेश का पूर्वी क्षेत्र भी आता है। इसमें कुछ रस्में सबसे अलग होती हैं। इसमें वर और वधु दोनों के ही स्वागत के लिए वर के गृह प्रवेश के समय दो टोकरी ली जाती है और वर के पैरों के आगे रखी जाती है और वह उन्हें मे पैर रखते हुए अंदर प्रवेश करता है। वह भूमि पर पैर न रखे।
ठीक यही क्रिया वधु के घर आने पर गृह प्रवेश के वक़्त की जाती है , घर की लक्ष्मी भूमि पर पैर रखते हुए अंदर प्रवेश नहीं कराते हैं। ये घर में वर और वधु को देने वाले सम्मान का प्रतीक होता है।
एक विशेष बात यहाँ पर और पायी जाती है कि यहाँ पर मांग में सिन्दूर डालने की रस्म के समय सिन्दूर नाक से पूरी मांग भरते हुए जाती है। इस प्रकार से मांग वहां पर हर पूजा , व्रत में भरी जाती है।
राजस्थानी विवाह :
विवाह के समय वर जब बारात लेकर कन्या के घर पहुँचता है तो घोड़ी पर बैठे हुए ही घर के दरवाज़े पर बँधे हुए तोरण को तलवार से छूता है जिसे तोरण मारना कहते हैं। तोरण एक प्रकार का मांगलिक चिह्न है। यह वर के शौर्य और वीरता का प्रतीक माना जाता है।
तमिल विवाह:--
तमिल विवाह को तभी पूर्ण माना जाता है , जब कि उनके बीच मालाओं का आदान प्रदान हो जाता है। तमिल विवाह में वर और वधु एक नहीं तीन मालाएं पहने होते हैं और इनमें एक विशेष माला होती है, खूबसूरत फूलों की गूँथी हुई माला , जिसका वर और वधु सबसे पहले एक दूसरे को पहनते हैं और बाद में अपनी शेष मालाएं भी आपस में बदल लेते हैं। इन वर मालाओं का आदान प्रदान ही विवाह संपन्न होने का प्रतीक है।
वहां पर मंगलसूत्र पहनाने का विशेष मुहूर्त होता है और सी के अनुसार बाकि रस्मों के लिए समय तय किया जाता है। मंगलसूत्र बांधने के समय वधु अपने पिता की गोद में बैठी होती है और वर उसको मंगलसूत्र पुष्प और अक्षत की वर्षा के बीच पहनता है।
कन्नड़ विवाह :--
कर्नाटक में विवाह बहुत ही सादगी से और शांतिपूर्ण ढंग से सम्पन्न होते हैं और विवाह की सारी रस्में दिन में ही सम्पन्न होती है। सिर्फ अपने लिए ही नहीं बल्कि वधु पक्ष के लिए भी बालों में फूलों के गजरे लगाने के लिए मंगाए जाते हैं।
काशी यात्रा :-- कन्नड़ विवाह में एक रस्म सबसे अच्छी और मनोरंजक होती है। इसमें वर अपने घर वालों से क्रोधित होकर एक छड़ी , छाता और धोती पहन कर घर से काशी यात्रा के लिए निकल पड़ता है कि उसके लिए कोई वधु नहीं खोजता है और तब माँ बेटे को मन कर ले जाती है कि वह उसके विवाह को सम्पन्न कराएगी।
देवकार्य :-- विवाह कार्य गणपति के समक्ष सम्पन्न होता है और सब मंगलकारी हो ऐसी कामना वहां उपस्थित परिजनों के द्वारा की जाती। विवाह कार्य के दौरान शहनाई की धुन गूंजती रहती है। कार्य पूर्ण होने पर वर वधु दोनों एक दूसरे के सिर पर अक्षत डालते हैं , जो मंगला कामनाओं का ही प्रतीक होता है।
बुंदेलखंडी विवाह :--
मंडप गड़ाई :-- बुंदेलखंड प्रभाग में उत्तर प्रदेश का कुछ इलाका और कुछ मध्य प्रदेश का इलाका आता है और यहाँ पर कुछ विशेष रस्में होती हैं जो अन्य राज्यों में नहीं होती हैं। वैसे तो विवाह हंसी मजाक के बीच सभी जगह सम्पन्न होता है लेकिन यहाँ पर एक रस्म होती है मंडप गाड़ने की। पंडित द्वारा बताये विशेष मुहूर्त पर ही इसको गाड़ा जाता है और इस कार्य को घर के मान्य यानि कि वर या वधु के जीजा या फूफा गाड़ते हैं। इसके बदले उनको नेग दिया जाता है और उसके बाद हल्दी , पानी और उसमें तेल और चूना नीला कर पतला घोल बना कर उसमें दोनों हाथ को डूबा कर घर की महिलायें सब लुरुषों की पीठ पर थाप लगाती हैं और इसा समय कौन कैसे कपडे पहने है इसका कोई ध्यान नहीं रखा जाता है।
समधी को गालियां :-- आज से दो टीन दशक पहले शादी में एक दिन बारात रुकती थी और उस दिन बारातियों को कच्चा खाना अर्थात कढ़ी , चावल रोटी आदि का भोजन बधू के घर में कराया जाता था और फिर घर की महिलायें उनके लिए व्यंग्य पूर्ण गालियां गाती थीं और बदले में समधी उनको नेग देते थे।
जैसे देश में अनेकता में एकता है ठीक उसी तरह से रस्मों में भी विभिन्नता पाई जाती है फिर भी सब भारतीय संस्कृति का एक अंश हैं.
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (12-12-2018) को "महज नहीं संयोग" (चर्चा अंक-3183)) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
Bahut sundar jaankari hai. Aabhar. Cgsociety, Weheartit & Warriorforum
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