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गुरुवार, 16 अप्रैल 2020

कोरोना और महिलाओं की भूमिका !

           कोरोना के बारे में बहुत कुछ पढ़ रहे हैं लेकिन इसके पीछे घर , लॉक डाउन , कामकाजी लोगों का घर में सीमित हो जाना - उनकी जान बचने के लिए पर्याप्त है , लेकिन इस जान के साथ इंसान की बहुत सारी जरूरतें होती हैं और वह क्या हो सकती हैं? कल - कल क्या होगा और हम क्या करेंगे ? देश की आर्थिक स्थिति भी बहुत बड़ी करवट लेने के लिए तैयार हो चुकी है।
                     सरकार निम्न वर्ग के लिए व्यवस्था कर रही है और वे जी भी रहे हैं लेकिन कई वर्ग ऐसे भी हैं , जो करने की स्थिति में भी नहीं है और कल की चिंता में तनाव अवसाद की स्थिति में जा रहे हैं।  महिलायें भी जा रही हैं लेकिन फिर भी महिलाओं से अधिक पुरुषों को उबरने के लिए कुछ ठोस आश्वासन भी चाहिए क्योंकि वे उस उहापोह की स्थिति में आ जाते हैं कि इतने लम्बे समय के बाद वे क्या और कैसे मैनेज कर पाएंगे ?
                     कल मेरे पास एक महिला का फ़ोन आता है , जब से उसने मेरे नाती और बेटी की महीनों मालिश की थी , वह मुझे अपनी आत्मीय समझने लगी थी और फिर वह सब कुछ अपनी समस्याएं शेयर  कर लेती थी।  पति एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता है।  वह मालिश और शादी ब्याह का काम करती है।  तीन बेटियां हैं - जो हाई स्कूल , सातवें और पांचवी में पढ़ती हैं. उसको कुछ पैसों की जरूरत थी क्योंकि मालिश , शादी ब्याह सब बंद है।  कुछ कर्ज लेकर उसने मकान बनवा लिया था और हाथ खाली हो गया था।  इतने दिनों का लॉक डाउन और फिर बढ़ गया।  वैसे तो दूर दूर जाकर जच्चा और बच्चे की मालिश करके उसको एक घर से १०० रुपये मिल जाते थे लेकिन ऐसे में कोई काम नहीं है।  उसको सहायता कर दी लेकिन वह खुद्दार महिला बहुत ज्यादा लेना भी नहीं चाहती और उससे बड़ी समस्या पति की।  वह रात दिन सोचता रहता है कि अब क्या करूंगा ? फैक्ट्री वाले इसके बाद कितने लोगों को रखेंगे , उनके अगर आर्डर कैंसिल हो गए तो फिर नौकरी के भी लाले।
                      एक माध्यम वर्गीय परिवार की समस्या - एक अच्छे खासे चलते हुए व्यवसाय के लोग  आराम पसंद जिंदगी जीने के आदी होते हैं।  घर की महिलायें भी उसी वातावरण की आदी होती हैं।  इतने दिन से शोरूम बंद , आमदनी तो बंद है ही , साथ  शोरूम के कर्मचारियों को भी  पूरा नहीं तो आधा वेतन देना ही पड़ेगा।  घर के काम वालों को कम कर दिया , वह तो सुरक्षा की दृष्टि से किया गया लेकिन वेतन उन्हें देना है आखिर वह कहाँ से लायेंगे? आमदनी बंद खर्च कमोबेश वही । परिणाम कमाने वाला वर्ग तनाव और अवसाद में जा रहा है ।

अवसाद पुरुषों में :-
                           भारतीय समाज की संरचना और मानसिकता कभी बदल नहीं सकती । कमा कर लाना और खर्च पूरा करना पुरुष वर्ग की जिम्मेदारी है । व्यावसायिक वर्ग का पुरुष लॉक डाउन में अवसाद का शिकार हो रहे है । वह सुबह से रात तक शॉप या शोरूम में रहता है और आमदनी की गणना करके ही योजना बनाता है । अब आमदनी बंद और खुलने पर भी सामान्य होने में महीनों लगेंगे ।

महिलाओं की भूमिका :--   

           इस समय परिवार की महिलाओं का दायित्व बढ़ रहा है कि वे पति की काउंसलिंग करें कि वे उस अवसाद से निकल सकें । घर के खर्चे में कमी का आश्वासन दे सकती हैं , गृहस्थी वही चलाती है और स्वाभाविक है कि वे उसमें कमी करके मैनेज कर लेती है ।
            आने वाले समय में भी अपनी पार्टी, खरीदारी, सैर सपाटे पर अंकुश लगाने का आश्वासन भी पुरुषों की चिंताओं को कम कर सकता है । ये जो समय है वह वापस एक नये सिरे से बाजार के रुख को बदल देगा । इसे पुरुष से अधिक महिलायें अपने स्तर पर स्थिर स्थिति को सहजता से झेल सकती हैं ।

बच्चों की भूमिका :--
         
                              परिवार में आमदनी के जरिये कितने भी हों खर्चे के रास्ते भी उतने ही होते हैं । बच्चों के अपने अलग खर्च होते हैं । वे अपनी बाइक प्रयोग करते हैं या संस्थान की बस । वे अपने स्तर से मुखिया को आश्वस्त कर सकते हैं कि सामान्य होने तक वे अपने  मित्रों के साथ शेयर करके जायेंगे । अपने जेबखर्च को भी सीमित कर सकते हैं । पार्ट टाइम  जॉब कर अपना खर्च निकाल सकते हैं ।

          यह समय ऐसा है कि सिर्फ और सिर्फ परिवार वाले दृढ़ संबल बन सकते हैं । वक्त ये भी नहीं रहेगा । अपने परिवार का संबल बन कठिन समय निकालिये ।

1 टिप्पणी:

  1. लोगों में अवसाद का एक बहुत बड़ा कारण अपने काम के अलावा कोई शौक न रखना है. इस लॉकडाउन में न केवल व्यावसायी बल्कि नौकरीपेशा व्यक्ति भी परेशान है. जो लोग अपने परिवार के साथ सामंजस्य बनाये रखने की कला जानते रहे हैं, वे परेशान नहीं हैं. जो खुद के लिए अन्य काम भी रखते रहे हैं, वे अवसाद में नहीं हैं. जिनके पास एकमात्र काम उनकी आजीविका ही रही है, वे ज्यादा परेशान हैं.

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