हमारे अन्दर परोपकार की भावना का ह्रास हो रहा है और निजी स्वार्थ की भावना बलवती होती चली जा रही है . सिर्फ हम आत्मनिरीक्षण करके देखें तो इनमें से कुछ खूबियाँ हमारे अपने अन्दर ही मिल जायेंगी . भावनाओं के चलते हुए हमारे ऋषि - मुनियों ने वर्ष में कुछ ऐसे दिन रखे हैं जिनमें हम अपने संचित से कुछ दान कर पुण्य कमाते हैं . वैसे तो जरूरतमदों की सहायता करने के लिए किसी भी तिथि या पर्व की जरूरत नहीं होती है , निस्वार्थ भाव से किया गया दान और उस दान के सुपात्र का होना सबसे बड़ा पुण्य है.
ऐसे ही पर्वों में वैशाख माह की शुक्ल पक्ष की तृतीया को अक्षय तृतीया कहा गया है और इस दिन दान , जप - तप , हवन और तीर्थ स्थानों पर जाने का अक्षय फल देने वाला पर्व कहा गया है .
ग्रीष्म ऋतु में पड़ने वाले इस पर्व पर दान का विशेष महत्व है लेकिन इस पर्व पर शास्त्रों में वे वस्तुएं दान योग्य बताई गयीं है जिनसे मनुष्य पशु पक्षी गरमी से प्रकोप से बच सकें . इस दिन धार्मिक प्रवृत्ति वाले लोग सड़क के किनारे पानी के लिए प्याऊ लगवाते हैं . पक्षियों के लिए पेड़ की डाल पर मिटटी के बर्तनों में पानी भर कर टांग दिया जाता है . ग्रीष्म ऋतु में सर्वप्रथम आवश्यकता पानी और उसके बाद सत्तू को महत्व दिया गया है. इस तृतीया से ठीक पहले अमावस्या को सत्तू का सेवन आवश्यक माना गया है (उनके लिए जो इस बात को मानते हों ) वैसे बच्चे आज कल पिज़्ज़ा , बर्गर , चाउमीन को ही जानते हैं . ये देशी फ़ास्ट फ़ूड है जो सदियों से चलता चला आ रहा है . इस दिन सत्तू के दान का भी बहुत महत्व है क्योंकि सत्तू की स्वभाव ठंडा होता है और इसको पानी शक्कर या गुड के साथ घोल कर खाने से भूख के साथ गर्मी भी शांत होती है.
इसके अतिरिक्त छाता , चप्पल , सुराही आदि गर्मी से बचाने वाले जितने भी साधन होते हैं विशेष रूप से दान करने का विशेष पुण्य मिलता है और पुण्य न भी मिले एक मानव होते के नाते इस भीषण गर्मी में नंगे पैर धूप में चलने वाले को चप्पल या छाता मिल जाए तो उसकी जान को तो एक राहत मिलेगी और यही राहत किसी गरीब की आत्मा से निकले हुए भाव, उस दानकर्ता की मानवता को एक प्रणाम है .
इस अक्षय तृतीया का महत्व इसी रूप में जाना जाता है कि इस दिन किया गया दान , जप - ताप सभी अक्षय होता है और इससे प्राप्त पुण्य भी अक्षय होता है लेकिन समय के साथ और मानव की बढती हुई लालसा ने इसके स्वरूप को समय के अनुसार बदल लिया और आज चाहे इसे हम मार्केटिंग का एक तरीका कहें कि बड़े बड़े विज्ञापनों द्वारा जन सामान्य को इस दिन सोने की खरीदारी करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है और इस दिन विशेष छूट और लाभ का लालच देकर स्वयं के लिए संग्रह करने की प्रवृत्ति को भी प्रोत्साहन दिया जाने लगा है और भाव अभी वही है कि जो इस दिन जिस वास्तु का क्रय करेगा वह भी उसके लिए अक्षय बनी रहेगी .सोना खरीदो तो वह सदैव अक्षय रहेगा लेकिन अब ये औरों के लिए नहीं बल्कि अपनी जरूरत और अपनी संपत्ति को अक्षय रखने के लिए लिया जाता है. अपनी संपत्ति या स्वर्ण आभूषणों को अक्षय अवश्य रखिये लेकिन उस धन से कुछ प्रतिशत दान के लिए भी रखा जाय तो इसका अर्थ और भाव सार्थक होता नजर आयेगा . लेकिन इस पर्व का भाव और अर्थ कल और आज बदले है लेकिन वह व्यक्ति की बढाती हुई आर्थिक उपलब्धियों के अनुसार - एक सामान्य व्यक्ति आपको दान करता मिल जाएगा लेकिन एक संपन्न व्यक्ति बड़ी बड़ी कारों में ज्वेलर्स के यहाँ आभूषण खरीदते हुए मिल जाएंगे ।
इस बार बड़ी आफत ये है कि लॉकडाउन के कारण आम आदमी सत्तू , शक्कर और छाता दान करने में तो असमर्थ है लेकिन अमीरों के लिए ऑन लाइन सोने या जेवरात की खरीदारी करने के पूरे अवसर हैं । वह अक्षय रहेगा लेकिन सबसे बड़े पुण्य के भागीदार वे हैं जो इस समय खाना खिलाने का काम कर रहे हैं ।
अक्षय सिर्फ पुण्य, दान और जीव सेवा ही है , भौतिक वस्तुएं अक्षय नहीं हुआ करती ।
उपयोगी जानकारी।
जवाब देंहटाएंबधाई हो।
आभार ब्लॉगिंग को आप सबके कमेंट जिजीविषा भरेंगें ।
हटाएंअक्षय तृतीया की शुभकामनायें आपको.
जवाब देंहटाएंआपको भी ।
हटाएंबढ़िया जानकारी
जवाब देंहटाएंआभार ब्लॉग पर आने के लिए ।
हटाएंअक्षय तृतीया के धार्मिक और सामजिक महत्व पर अच्छा आलेख.
जवाब देंहटाएंआभार जेन्नी जी । अच्छा कदम ब्लॉगिंग की दिशा में ।
हटाएंअक्षय तृतीय की अच्छी जानकारी ... आज के दिन का शायद सबसे अधिक महत्त्व है हमारे सामाजिक जीवन में ...
जवाब देंहटाएंवर्षो से हमारे यहां मनाया जा रहा है फिर भी कई बातें नही जानते रहे ,उन सबकी जानकारी आपने दी ,धन्यवाद दीदी ,नमन,सुंदर लेख
जवाब देंहटाएंधार्मिक और सामजिक महत्व पर अच्छा आलेख
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